यूपी हापुड दुष्कर्म मामला: जाँच में घोर अनियमितता, मृतक माँ का बयान दर्ज कर आरोपी बरी, SI पर कार्रवाई

हापुड़ में एक विवादित दुष्कर्म मामले में SI अनमोद कुमार ने मृतक मां का कथित बयान दर्ज किया, जिसमें “मेरी बेटी मेंटली डिस्ट्रब” होने का दावा था। अदालत ने इस आधार पर आरोपियों को बरी कर दिया, दरोगा सस्पेंड।

Oct 5, 2025 - 21:44
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यूपी हापुड दुष्कर्म मामला: जाँच में घोर अनियमितता, मृतक माँ का बयान दर्ज कर आरोपी बरी, SI पर कार्रवाई
SI अनमोद कुमार

 

हापुड़, उत्तर प्रदेश। उत्तर प्रदेश के हार्पुर जिले में एक अत्यंत विवादित दुष्कर्म मामले ने सुर्खियाँ बंटोर ली हैं, जहाँ सहायक निरीक्षक (SI) अनमोद कुमार द्वारा कथित रूप से मृतक माँ का बयान केस डायरी में दर्ज कर लिया गया। इस बयान में दावा किया गया कि “मेरी बेटी दिमाग से थोड़ी मेंटली डिस्टर्ब है”, जिसे अदालत द्वारा स्वीकार करने से आरोपियों को दोषमुक्ति मिलने का अवसर मिला। इस पूरे घटनाक्रम ने पुलिस जाँच प्रणाली और न्याय व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

मामला: कैसे शुरू हुआ

 पीड़िता ने आरोप लगाया कि उसके साथ दुष्कर्म किया गया।

 जाँच के दौरान SI अनमोद कुमार ने मृतक माँ का कथित बयान लिख डाला, जिसमें यह तथ्य शामिल था कि मृतक माँ ने यह कहा था कि बेटी मानसिक रूप से ठीक नहीं है।

 यह बयान कोर्ट / केस डायरी में प्रस्तुत किया गया।

 इस दावे को आधार बना कर, आरोपियों के वकीलों ने इसे सशक्त डिफेंस के रूप में इस्तेमाल किया।

 अदालत ने इस कथित बयान के भरोसे आरोपियों को दुष्कर्म के आरोप से बरी कर दिया।

 कानूनी और नैतिक प्रश्न

1. मृतक-गवाह की वैधता

   आमतौर पर, मृतक व्यक्ति की गवाही दी नहीं जा सकती। मृतक का बयान तभी स्वीकार हो सकता है यदि वह मृत्यु से पूर्व दर्ज कर दिया गया हो और विधिसम्मत गवाही का दर्जा हो।

2. Mental health की दलील

   यदि किसी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को दोषमुक्ति हेतु तर्क के रूप में पेश किया जाता है, तो यह साबित करना होगा कि वास्तव में मानसिक विकार था और वह अपराध कार्य करने की स्थिति में था। केवल आरोप लगाने से इसे स्वीकृति नहीं मिल सकती।

3. तथ्यों की असंगतता और पुष्टि की कमी

   क्या अन्य गवाह, मेडिकल रिपोर्ट, फोरेंसिक सबूत आदि मिले?

   क्या पीड़िता खुद अदालत में बयान दे सकी?

   क्या पुलिस ने मूल स्रोत दस्तावेज़ सुरक्षित रखे?

4. अन्वेषक पर कार्रवाई

   रिपोर्ट के अनुसार, उस दरोगा को सस्पेंड कर दिया गया है। यह प्रारंभिक कदम है, पर जाँच पूरी होनी चाहिए क्या जाँच दर्जी है, क्या दबाव तो नहीं?

5. न्यायपालिका की भूमिका

   न्यायालय को उच्च स्तर की सावधानी बरतनी चाहिए, विशेष रूप से जब दलीलें विवादास्पद और अभियुक्तों की जमानत से जुड़ी हों।

संभावित गहराई में घटनाएँ

 जाँच एजेंसी (उच्च अधिकारी, डीआईजी स्तर) को इस मामले की फोरेंसिक विशेषज्ञ समिति से पुनः जाँच करानी चाहिए।

 पीड़िता के अधिकार व सुरक्षा की निगरानी हो, साथ ही उसके परिवार को कानूनी सहायता प्रदान हो।

 मीडिया व नागरिक समाज को इस तरह के मामलों पर सतर्क रहना चाहिए और निष्पक्ष रिपोर्टिंग करना चाहिए।

 न्यायायिक प्रणाली में सुधारों की माँग, ऐसे मामलों में विशेष जाँच दल (SIT) या सीबीआई हस्तक्षेप हो सकता है।

यह मामला न केवल एक घोर अन्याय का संकेत है, बल्कि यह उस पूरक सच को उजागर करता है: जब संस्थाएँ पुलिस, न्यायपालिका अपनी जिम्मेदारियों से चूक जाएँ, तो व्यक्ति की रक्षा कैसे होगी? मृतक माँ का कथित बयान, जिसमें मानसिक विकार का उल्लेख था, यदि शत-प्रतिशत सत्य हो भी, तब भी वह अकेले आरोपियों को निर्दोष सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता। इस घटना ने हमें न्याय व्यवस्था की कमियों की याद दिलाई है और यह कि लड़ाई सिर्फ अदालतों तक सीमित नहीं है, बल्कि सच को सामने लाने, दबाव डालने और संरचनात्मक सुधार लाने की है।

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I