गाजीपुर तरांव माइनर घोटाला: 30 साल से सूखी नहर में ‘कागज़ी सफाई’, लाखों खर्च
गाजीपुर की तरांव माइनर में 2020 में 1300 मीटर सफाई दिखाकर लाखों रुपये खर्च। पाँच साल की शिकायतों के बाद DC मनरेगा की जाँच में नहर पूरी तरह सिल्ट से भरी मिली। दिव्य प्रकाश राय की शिकायत पर कार्रवाई शुरू।
स्पेशल रिपोर्ट | गाजीपुर, भांवरकोल। ग्राम पंचायत बलुआ टप्पे शाहपुर में 30 साल से अनुपयोगी पड़ी तरांव माइनर की ‘काग़ज़ी सफाई’ ने यूपी की ग्रामीण विकास व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। 2020 में कोरोना काल के दौरान इस माइनर की 1300 मीटर सिल्ट सफाई दिखाकर लाखों रुपये खर्च कर दिए गए, लेकिन जमीनी स्थिति इससे बिलकुल उलट निकली। पाँच साल से लगातार अनियमितताओं के खिलाफ लड़ रहे शिकायतकर्ता दिव्य प्रकाश राय की शिकायत के बाद आख़िरकार जाँच शुरू हुई। शुक्रवार को डीसी मनरेगा विजय कुमार यादव मौके पर पहुँचे, नहर की वास्तविक स्थिति देखी, किसानों से पूछताछ की, और ग्रामीणों के बयान दर्ज किए।
जाँच का पहला दृश्य: माइनर पूरी तरह सिल्ट से भरी, ‘सफाई’ सिर्फ कागज़ों में जाँच के दौरान जो तस्वीर सामने आई, वह प्रशासनिक दावों के उलट थी।
नहर 30 साल से सूखी
ग्रामीण किसानों ने कहा, “तीस साल से माइनर में एक बूंद पानी नहीं आया। सफाई तो दूर, नहर का अस्तित्व तक खत्म हो चुका है।”
माइनर में मिट्टी–सिल्ट भरी मिली
जिन हिस्सों में 2020 में ‘सफाई’ दिखाकर पेमेंट हुआ, वे आज भी पूरी तरह सिल्ट से भरे, झाड़ियों से घिरे, और मिट्टी से बंद पाए गए।
अतिरिक्त खर्च का कोई स्पष्ट रिकॉर्ड नहीं
जाँच टीम को यह भी पता चला कि 1300 मीटर सफाई पर कितनी राशि खर्च हुई, न तो लघुडाल विभाग बता सका, न पंचायत। शिकायतकर्ता दिव्य प्रकाश राय, पाँच वर्ष की लगातार लड़ाई का परिणाम गाजीपुर का यह मामला कोई अचानक उठी शिकायत नहीं है।
2020 से 2025 तक निरंतर संघर्ष
कोरोना काल में ‘गतिविधि प्रमाण’, फर्जी GPS फोटो, मनरेगा फंडिंग की अनियमितताएँ, RTI पर गलत सूचना, भुगतान रिकॉर्ड में विसंगतियाँ इन सभी को दिव्य प्रकाश राय पाँच वर्षों से उठा रहे हैं।
22 अक्तूबर 2025 की अंतिम शिकायत ने मामला उछाला
राय ने 22 अक्तूबर को CDO को विस्तृत शिकायत भेजकर कहा, “30 साल से सूखी माइनर को कोरोना काल में सफाई दिखाकर लाखों रुपये निकाल लिए। यह संगठित भ्रष्टाचार है।” इसके बाद CDO संतोष कुमार वैश्य ने जाँच उपयुक्त श्रम एवं रोजगार/डीसी मनरेगा विजय कुमार यादव को सौंपी।
जाँच टीम की मौजूदगी और ग्रामीणों के बयान
जाँच के दौरान उपस्थित रहे, BDO भांवरकोल महेंद्र प्रसाद यादव, ग्राम प्रधान रामलाल प्रजापति, सचिव महताब आलम, लेखपाल रामलाल राम, ग्रामीण प्रतिनिधि व अन्य कर्मचारी। किसानों की समान राय, “तीन दशक से पानी नहीं आया, नहर का कोई काम ही नहीं। फिर सफाई कैसे हो गई?”
मुख्य तथ्य: पंचायत अकेले सफाई नहीं करा सकती थी
लघुडाल विभाग की मंजूरी के बिना पंचायत किसी माइनर की सफाई नहीं करा सकती, लेकिन 2020 में पेमेंट पंचायत स्तर से दिखा दिया गया। यही सबसे बड़ा संदेह पैदा करता है कि क्या विभागीय रिकॉर्ड फर्जी बनाए गए?, क्या भूस्थल सत्यापन बिना किए भुगतान कर दिया गया?, क्या माइनर के नाम पर ‘कागज़ी विकास कार्य’ दिखाकर धन निकाला गया?
क्यों यह मामला इतना बड़ा है?
यह सिर्फ एक नहर की सफाई का विवाद नहीं, यह ग्रामीण विकास, मनरेगा फंडिंग और लघुडाल विभाग में प्रणालीगत भ्रष्टाचार का संकेत देता है। राय की शिकायत के शब्दों में,“सूखी नहर को साफ दिखाकर लाखों निकालना सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं, यह जनता के अधिकारों की खुली लूट है।”
अगले कदम, क्या होगा अब?
1. डीसी मनरेगा जाँच रिपोर्ट जिलाधिकारी को भेजेंगे।
2. रिकॉर्ड सत्यापन, GPS एनालिसिस और भुगतान लेज़र की जाँच होगी।
3. FIR या SIT जाँच की सिफारिश संभव।
4. पंचायत, लघुडाल, मनरेगा तीनों विभागों पर जवाबदेही तय की जाएगी।
5. 2020–2025 तक किए गए संबंधित भुगतान और RTI रिकॉर्ड के क्रॉस-ऑडिट की भी ज़रूरत पड़ेगी।
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