शहीद-ए-आज़म भगत सिंह की 118वीं जयंती: क्रांति, विचार और आज का भारत
शहीद-ए-आज़म भगत सिंह की 118वीं जयंती पर विशेष संपादकीय: जानिए उनके जीवन, क्रांतिकारी विचारों, संघर्ष, जेल जीवन और शहादत की कहानी। क्या आज का भारत उनके सपनों के अनुरूप है?

भारत के स्वतंत्रता संग्राम की गाथा केवल वीरता और बलिदान की दास्तान नहीं है, बल्कि यह विचारों, संघर्ष और सामाजिक चेतना की भी कथा है। इस गाथा में शहीद-ए-आज़म भगत सिंह का नाम सबसे अग्रणी और अमर है। वे केवल एक क्रांतिकारी ही नहीं थे, बल्कि एक गहरे चिंतक, समाज सुधारक और वैज्ञानिक दृष्टि से संपन्न दार्शनिक भी थे। उनकी 118वीं जयंती पर यह आवश्यक है कि हम उन्हें सिर्फ एक ‘शहीद’ के रूप में याद न करें, बल्कि उनके विचारों और दृष्टिकोण को वर्तमान समाज की कसौटी पर परखें।
जीवन की झलक: बचपन से क्रांति तक
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर (अब पाकिस्तान में) के बंगा गाँव में हुआ। उनका परिवार पहले से ही देशभक्ति और क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़ा था। उनके चाचा अजीत सिंह और पिता किशन सिंह अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ सक्रिय थे। घर के इन संस्कारों ने बालक भगत के भीतर आज़ादी का जज़्बा भर दिया।
कहा जाता है कि जलियांवाला बाग नरसंहार (1919) ने उनकी आत्मा को झकझोर दिया। 12 वर्ष के इस बालक ने उस स्थान से मिट्टी लेकर अपने जीवन को देश की मुक्ति के लिए समर्पित कर दिया। लाला लाजपत राय, बिपिन चंद्र पाल और अन्य नेताओं से प्रेरित होकर वे जल्दी ही राष्ट्रीय चेतना से ओतप्रोत हो गए।
क्रांतिकारी विचारधारा: समाजवाद और वैचारिक क्रांति
प्रारंभिक दौर में वे गदर पार्टी और अन्य क्रांतिकारी आंदोलनों से प्रभावित हुए, परंतु धीरे-धीरे उनका झुकाव मार्क्सवाद और समाजवाद की ओर हुआ। भगत सिंह ने समझा कि राजनीतिक स्वतंत्रता अधूरी है यदि सामाजिक और आर्थिक समानता स्थापित न हो। वे स्पष्ट रूप से कहते थे- “क्रांति की तलवार विचारों की सान पर तेज़ होती है।” उनके लेखों और भाषणों से स्पष्ट है कि वे हिंसा को अंतिम लक्ष्य नहीं मानते थे। "बम और पिस्टल" उनके लिए केवल शोषणकारी व्यवस्था को झकझोरने का प्रतीक थे, जबकि असली उद्देश्य एक नई वैचारिक चेतना जगाना था। वे मजदूरों, किसानों और शोषित वर्गों की मुक्ति को स्वतंत्रता का वास्तविक स्वरूप मानते थे।
संघर्ष और आंदोलन: ऐतिहासिक घटनाओं का विश्लेषण
भगत सिंह का नाम कई महत्वपूर्ण घटनाओं से जुड़ा है, जिनमें सबसे उल्लेखनीय हैं-
साइमन कमीशन का विरोध (1928): लाला लाजपत राय की मृत्यु ने भगत सिंह और उनके साथियों को झकझोर दिया। सांडर्स वध इसी का परिणाम था, जिसे उन्होंने ब्रिटिश अत्याचार के खिलाफ प्रतिशोध स्वरूप अंजाम दिया।
एसेंबली बम कांड (1929): भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने बम फेंककर यह संदेश दिया कि "हमारे कान खोलो, हम मौन नहीं रहेंगे।" इस बम में मारने की मंशा नहीं, बल्कि विचारों को झकझोरने की इच्छा थी।
क्रांतिकारी संगठन: हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) से जुड़कर उन्होंने क्रांति को व्यवस्थित और वैचारिक दिशा दी। इन घटनाओं ने उन्हें केवल एक जांबाज योद्धा ही नहीं, बल्कि राष्ट्रव्यापी चेतना का प्रतीक बना दिया।
जेल जीवन और दर्शन
जेल में बिताए दिनों ने उनके व्यक्तित्व को और भी प्रखर बना दिया। उन्होंने न केवल लेखन किया, बल्कि गहन अध्ययन भी किया। ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ’ जैसे लेख उनके तर्कशील और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रमाण हैं। उनकी भूख हड़ताल ने जेलों में कैदियों के अधिकारों के मुद्दे को राष्ट्रीय बहस बना दिया। अंग्रेज़ सरकार को झुकना पड़ा। उनका यह संघर्ष केवल राजनीतिक कैदियों के लिए नहीं, बल्कि समग्र मानवता और न्याय की लड़ाई थी।
शहादत और प्रभाव
23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को लाहौर जेल में फाँसी दी गई। वे 23 वर्ष की अल्पायु में ही अमर हो गए। उनकी शहादत ने युवाओं में ऐसी ज्वाला जगाई कि अंग्रेज़ी हुकूमत हिल उठी। उस दौर के हर छात्र, मजदूर और किसान के लिए वे प्रेरणा का स्रोत बन गए। उनकी फाँसी पर रवींद्रनाथ टैगोर ने कहा था कि भारत ने अपने सबसे तेजस्वी पुत्र को खो दिया है।
विचारों की आज की प्रासंगिकता
आज का भारत आर्थिक असमानता, जातिवाद, सांप्रदायिकता और राजनीतिक अवसरवाद से जूझ रहा है। ऐसे में भगत सिंह की विचारधारा पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है।
सामाजिक समानता: उन्होंने जाति और धर्म से ऊपर उठकर इंसानियत को सर्वोपरि माना।
वैज्ञानिक सोच: उन्होंने अंधविश्वास और अज्ञान के खिलाफ तर्कशीलता और शिक्षा को हथियार बनाया।
राजनीतिक दृष्टि: उन्होंने चेताया था कि सत्ता परिवर्तन ही पर्याप्त नहीं, बल्कि व्यवस्था परिवर्तन आवश्यक है।
क्या हमने उनके सपनों को पूरा किया?
आज जब हम चारों ओर देखते हैं तो यह सवाल उठता है, क्या हम भगत सिंह के सपनों का भारत बना पाए हैं? जहाँ उन्होंने वर्गहीन समाज की कल्पना की थी, वहीं अमीरी-गरीबी की खाई आज और चौड़ी हो गई है। जहाँ उन्होंने सांप्रदायिक सद्भाव का आह्वान किया था, वहाँ आज भी धार्मिक और जातिगत विभाजन राजनीति का हथियार बने हुए हैं। जहाँ उन्होंने शिक्षा और तर्कशीलता पर जोर दिया था, वहाँ आज भी अंधविश्वास और अज्ञान समाज को जकड़े हुए हैं। स्पष्ट है कि हमने उनके सपनों को आंशिक रूप में ही साकार किया है।
आह्वान
शहीद-ए-आज़म भगत सिंह की 118वीं जयंती पर हमें यह प्रण लेना चाहिए कि हम उन्हें केवल श्रद्धांजलि देकर नहीं, बल्कि उनके विचारों को व्यवहार में उतारकर सच्चा सम्मान देंगे।
आज ज़रूरत है
जाति, धर्म और क्षेत्रीयता की संकीर्णताओं से ऊपर उठने की।
आर्थिक और सामाजिक समानता स्थापित करने की।
शिक्षा, तर्कशीलता और वैज्ञानिक दृष्टि को जीवन का आधार बनाने की।
भ्रष्टाचार, अन्याय और शोषण के खिलाफ आवाज़ बुलंद करने की।
भगत सिंह ने कहा था, “क्रांति की गूँज केवल गवर्नमेंट को उखाड़ फेंकना नहीं है, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में अन्याय और असमानता को खत्म करना है।”
उनकी 118वीं जयंती पर यही सबसे बड़ा संकल्प होना चाहिए कि हम एक ऐसा भारत बनाएँ, जो वास्तव में न्याय, समानता और भाईचारे पर आधारित हो। यही उनकी सच्ची विरासत है और यही हमारी सच्ची जिम्मेदारी। भगत सिंह आज भी हमारे बीच विचारों की तरह जीवित हैं। वे केवल शहीद नहीं, बल्कि भविष्य की दिशा दिखाने वाले दीपस्तंभ हैं। यदि हम अपने भीतर क्रांति की वह चिनगारी जला पाएँ, तो निश्चित ही हम उनके सपनों का भारत गढ़ सकते हैं।
“वे जिंदा हैं, जब तक इस धरती पर अन्याय के खिलाफ एक आवाज़ भी उठती है।”
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