राम से राष्ट्र की संकल्पना – समकालीन परिप्रेक्ष्य में एक चिंतन
भारत में सामाजिक असमानता, सांप्रदायिक तनाव और अपराध की बढ़ती घटनाएँ रामराज्य की अवधारणा के विपरीत हैं। इसे साकार करने के लिए शिक्षा, नैतिक मूल्यों, सशक्त कानून व्यवस्था और सामाजिक-आर्थिक समानता पर ध्यान देना होगा। रामराज्य केवल शासक की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हर नागरिक का कर्तव्य है, और इसके लिए हमें समावेशी, नैतिक और सहानुभूतिपूर्ण समाज की दिशा में काम करना होगा।

राम और रामराज्य की संकल्पना भारतीय संस्कृति, दर्शन और सामाजिक चेतना का एक ऐसा आधारभूत तत्व है, जो सदियों से हमें प्रेरित करता रहा है। राम केवल एक धार्मिक नायक या पौराणिक चरित्र नहीं हैं; वे एक आदर्श शासक, एक कर्तव्यनिष्ठ पुत्र, और एक मर्यादित व्यक्तित्व के प्रतीक हैं, जिनके जीवन से हम नैतिकता, न्याय और समानता के मूल्य सीखते हैं। रामराज्य की अवधारणा एक ऐसे राष्ट्र की परिकल्पना है, जहाँ हर नागरिक को सम्मान, सुरक्षा और समृद्धि प्राप्त हो, एक ऐसा समाज जहाँ कोई भूखा न सोए, कोई अन्यायग्रस्त न रहे। लेकिन 2025 के भारत में, जब हम सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, राम से प्रेरित राष्ट्र की संकल्पना को नए सिरे से समझने और लागू करने की आवश्यकता है।
रामराज्य का मूल विचार : जैसा कि रामायण में वर्णित है, एक ऐसी व्यवस्था की बात करता है, जहाँ "न दरिद्रः कश्चित्, न च दीनः कश्चन" अर्थात् न कोई गरीब हो, न कोई दुखी। यह एक ऐसा शासन है, जहाँ कानून का पालन सर्वोपरि हो, और सबसे कमजोर व्यक्ति को भी त्वरित और निष्पक्ष न्याय मिले। लेकिन आज के भारत में इस आदर्श की तुलना करें, तो कई क्षेत्रों में हम इसे हासिल करने से दूर नजर आते हैं। हाल ही में लखनऊ में एक भाई द्वारा अपनी बहन के साथ बलात्कार की घटना ने समाज को झकझोर दिया। यह घटना न केवल एक परिवार की त्रासदी है, बल्कि यह उन सामाजिक और व्यवस्थागत खामियों को भी उजागर करती है, जो रामराज्य की कल्पना के विपरीत हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के 2021 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में प्रतिदिन औसतन 86 बलात्कार के मामले दर्ज होते हैं, और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य इस सूची में अग्रणी हैं। यह स्थिति स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि हमें महिलाओं की सुरक्षा, सामाजिक जागरूकता और कानूनी सुधारों की दिशा में अभी बहुत काम करना बाकी है।
केवल शासक ही नहीं हमारा भी कर्तव्य : रामराज्य केवल शासक की जिम्मेदारी तक सीमित नहीं है; यह समाज के हर व्यक्ति से नैतिकता, कर्तव्यनिष्ठा और सहानुभूति की अपेक्षा करता है। राम ने स्वयं अपने जीवन में कठिनतम परिस्थितियों में भी सत्य और मर्यादा का पालन किया। लेकिन आज का भारत, जहाँ भ्रष्टाचार, सांप्रदायिक तनाव, और सामाजिक असमानता जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं, राम के इन आदर्शों से दूर होता दिखाई देता है। लखनऊ की घटना पर सोशल मीडिया की प्रतिक्रियाएं इस बात का प्रमाण हैं कि हमारी सामाजिक चेतना अभी भी संकीर्णता और रूढ़ियों से ग्रस्त है। कई लोगों ने इस घटना को धार्मिक आधार पर सामान्यीकरण करने की कोशिश की, जो रामराज्य के समावेशी और समरसतापूर्ण दृष्टिकोण के विपरीत है। रामराज्य में किसी भी तरह की संकीर्णता, भेदभाव या अन्याय के लिए कोई स्थान नहीं है।
आज के परिप्रेक्ष्य में : राम से प्रेरित राष्ट्र की संकल्पना को साकार करने के लिए हमें कुछ ठोस कदम उठाने होंगे। पहला, हमें शिक्षा और नैतिक मूल्यों पर जोर देना होगा। रामायण को केवल एक धार्मिक ग्रंथ के रूप में नहीं, बल्कि एक सामाजिक और नैतिक दस्तावेज के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए, जो हमें सहानुभूति, समानता और कर्तव्य की शिक्षा देता है। दूसरा, कानून व्यवस्था को सशक्त करना होगा। लखनऊ की घटना में पुलिस की त्वरित कार्रवाई सराहनीय है, लेकिन हमें ऐसी व्यवस्था की जरूरत है, जो अपराध को रोकने में सक्षम हो, न कि केवल सजा देने में। तीसरा, सामाजिक और आर्थिक असमानता को दूर करना होगा। रामराज्य में सुख और समृद्धि की शुरुआत सबसे निचले पायदान से होती है। लेकिन आज भारत में गरीबी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक असमान पहुंच जैसी समस्याएं इस आदर्श को चुनौती देती हैं।
भारत में रामराज्य : आधुनिक भारत में रामराज्य की संकल्पना को लागू करने के लिए हमें तकनीकी और आर्थिक प्रगति के साथ-साथ सामाजिक और नैतिक प्रगति पर भी ध्यान देना होगा। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी प्रगति समावेशी हो और किसी को पीछे न छोड़े। रामराज्य का सपना तभी साकार होगा, जब हम सभी चाहे वह सरकार हो, नागरिक हों, या सामाजिक संगठन अपने कर्तव्यों को समझें और एक-दूसरे के प्रति प्रेम, विश्वास और सम्मान की भावना को बढ़ावा दें।
सच्चा रामराज्य : राम से राष्ट्र की संकल्पना कोई काल्पनिक या अतार्किक विचार नहीं है। यह एक व्यावहारिक और प्रासंगिक दृष्टिकोण है, जो हमें एक बेहतर, अधिक समृद्ध और समरसतापूर्ण भारत की ओर ले जा सकता है। हमें राम के जीवन से प्रेरणा लेते हुए स्वयं को एक आदर्श नागरिक बनाना होगा, तभी हम उस राष्ट्र का निर्माण कर पाएंगे, जहाँ हर व्यक्ति सुखी, सुरक्षित और सम्मानित हो एक सच्चा रामराज्य।
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