सरलता में गहराई रचने वाले रचनाकार : विनोद कुमार शुक्ल

सुशील कुमार पाण्डेय

Mar 23, 2025 - 11:33
Mar 28, 2025 - 09:42
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सरलता में गहराई रचने वाले रचनाकार : विनोद कुमार शुक्ल
सरलता में गहराई रचने वाले रचनाकार विनोद कुमार शुक्ल को 59वाँ ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने की घोषणा 22 मार्च 2025 को हुई, जो हिंदी साहित्य और छत्तीसगढ़ के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है। 88 वर्षीय शुक्ल, जो छत्तीसगढ़ के राजनांदगाँव में 1 जनवरी 1937 को जन्मे, हिंदी साहित्य के एक ऐसे रचनाकार हैं जिन्होंने अपनी सादगी, मौलिकता और संवेदनशीलता से साहित्यिक जगत को समृद्ध किया। यह पुरस्कार, जो भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान माना जाता है, उन्हें हिंदी साहित्य में उनके अद्वितीय योगदान, सृजनात्मकता और विशिष्ट लेखन शैली के लिए प्रदान किया गया है। इसके साथ ही, वे छत्तीसगढ़ के पहले साहित्यकार बन गए हैं जिन्हें यह प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हुआ।
शुक्ल का लेखन आम जीवन की साधारण घटनाओं में असाधारण सुंदरता और गहराई खोजता है। उनकी रचनाओं में एक जादुई यथार्थवाद झलकता है, जो पाठकों को रोजमर्रा की जिंदगी के नए आयामों से परिचित कराता है। उनके उपन्यास जैसे नौकर की कमीज़, दीवार में एक खिड़की रहती थी, और खिलेगा तो देखेंगे हिंदी साहित्य में मील के पत्थर माने जाते हैं। नौकर की कमीज़ पर मणि कौल ने फिल्म बनाई, जो उनकी रचना की गहरी संवेदनशीलता को दर्शाती है, वहीं दीवार में एक खिड़की रहती थी को 1999 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनकी कविताएँ, जैसे लगभग जय हिंद, वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहनकर विचार की तरह, और सब कुछ होना बचा रहेगा, उनकी भाषिक सादगी और भावनात्मक गहराई का प्रमाण हैं।
ज्ञानपीठ पुरस्कार की घोषणा के बाद शुक्ल ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा, “यह भारत का, साहित्य का बहुत बड़ा पुरस्कार है। इतना बड़ा पुरस्कार मिलना मेरे लिए खुशी की बात है। मुझे कभी नहीं लगा कि यह पुरस्कार मिलेगा।” उनकी यह विनम्रता उनकी रचनाओं की तरह ही उनकी शख्सियत को दर्शाती है। उन्होंने यह भी बताया कि वे आज भी लेखन के प्रति समर्पित हैं और विशेष रूप से बच्चों के लिए छोटी-छोटी रचनाएँ लिखना पसंद करते हैं, क्योंकि यह उन्हें सुख देता है।
शुक्ल का साहित्य मध्यवर्गीय जीवन की बारीकियों, प्रकृति के साथ मानव के रिश्ते और लोकआख्यानों को आधुनिक संदर्भों में पिरोने का अनूठा संगम है। उनकी रचनाओं का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है, जिसमें अंग्रेजी, जर्मन, इतालवी और मराठी शामिल हैं। 2023 में उन्हें पेन/नाबोकोव पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था, जो उनकी अंतरराष्ट्रीय पहचान का प्रमाण है।
यह पुरस्कार न केवल शुक्ल की व्यक्तिगत उपलब्धि है, बल्कि हिंदी साहित्य और छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर के लिए भी गर्व का विषय है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इसे छत्तीसगढ़ के लिए गौरव का क्षण बताते हुए कहा कि उनकी रचनाएँ छत्तीसगढ़ की माटी की खुशबू को देश-दुनिया तक पहुँचाती हैं। शुक्ल का लेखन हमें यह सिखाता है कि साहित्य में सादगी और संवेदना ही सबसे बड़ी ताकत होती है। इस सम्मान के साथ, उनकी साहित्यिक यात्रा नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा बनकर उभरती है, जो यह बताती है कि सच्ची रचना वही है जो मनुष्य के जीवन को स्पर्श करे और उसे समृद्ध बनाए।

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I