मानकर कॉलेज में हिंदी पखवाड़ा पर व्याख्यान एवं सांस्कृतिक आयोजन
मानकर कॉलेज, वर्धमान में हिंदी विभाग द्वारा हिंदी पखवाड़ा 2025 के अंतर्गत एकल व्याख्यान और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता डॉ. संजय जायसवाल ने "जनभाषा, विवाद और हिंदी" विषय पर व्याख्यान देते हुए हिंदी की लोकधर्मी और समावेशी प्रकृति पर प्रकाश डाला। अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रो. तरुण राय ने हिंदी को सांस्कृतिक पहचान बताया। छात्राओं ने भावनात्मक काव्य-पाठ प्रस्तुत किए। वक्ताओं ने हिंदी को संवाद, समावेशिता और एकता की भाषा बताया। कार्यक्रम ने हिंदी के व्यावहारिक महत्व और भाषाई सौहार्द का संदेश दिया।

समावेशिता और लोक-संस्कृति की पक्षधर है हिंदी
20 सितंबर, वर्धमान। मानकर कॉलेज के हिंदी विभाग द्वारा हिंदी पखवाड़ा 2025 के उपलक्ष्य में एकल व्याख्यान एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम का भव्य आयोजन किया गया। कार्यक्रम का आयोजन कॉलेज के सभागार रवींद्र हॉल में किया गया, जहां बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं, शिक्षकों और अतिथियों की उपस्थिति रही।
कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन और इतिहास विभाग के प्रोफेसर सोमनाथ नायक द्वारा तुलसी और कबीर के भक्ति गीतों की संगीतमय प्रस्तुति से हुई, जिससे वातावरण भावपूर्ण और प्रेरणादायक बन गया।
अध्यक्षीय वक्तव्य में समावेशिता पर जोर
कॉलेज के टीचर-इन-चार्ज प्रोफेसर तरुण कुमार राय ने अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए कहा कि हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक पहचान है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि हिंदी को केवल किसी एक दिन या पखवाड़े तक सीमित न रखें, बल्कि इसे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपनाएं।
संवाद की आवश्यकता पर बल
हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. मकेश्वर रजक ने स्वागत भाषण में कहा कि हिंदी के साथ-साथ सभी भाषाओं का सम्मान आवश्यक है। आज के समय में विवाद की नहीं, संवाद की जरूरत है। उन्होंने भाषाई विविधता में एकता की भावना को रेखांकित किया।
हिंदी की पृष्ठभूमि और सांस्कृतिक महत्व
डॉ. पूजा गुप्ता, हिंदी विभाग की शिक्षिका ने हिंदी की ऐतिहासिक और सामाजिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हिंदी वह सांस्कृतिक डोर है, जो पूरे देश को जोड़ती है। उन्होंने कहा कि हिंदी को अन्य भाषाओं के साथ सामंजस्य बनाकर आगे बढ़ाना चाहिए।
“भाषा संवाद का माध्यम है, विवाद का नहीं”
विभाग के शिक्षक धर्मेंद्र कुमार ने अपने वक्तव्य में स्पष्ट किया कि भाषा किसी भी प्रकार के विवाद का विषय नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि भाषाएं आपसी संवाद, सह-अस्तित्व और विकास का माध्यम हैं।
मुख्य व्याख्यान: हिंदी की लोकधर्मी प्रकृति
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता विद्यासागर विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. संजय जायसवाल रहे। उन्होंने ‘जनभाषा, विवाद और हिंदी’ विषय पर गहन व्याख्यान देते हुए कहा कि हिंदी का विरोध राजनीतिक साजिशों का परिणाम है। उन्होंने कहा, “हिंदी एक समावेशी लोक-संस्कृति की आवाज़ है, जिसे किसानों, मजदूरों, भक्त कवियों और आमजन ने सींचा है। यह भाषा कभी भी किसी विशेष वर्ग की नहीं रही, बल्कि यह सबकी रही है।”
डॉ. जायसवाल ने इस बात पर विशेष बल दिया कि हिंदी को औपचारिक आयोजनों से बाहर निकालकर व्यावहारिक धरातल पर जीवंत बनाए रखने की आवश्यकता है।
उन्होंने हिंदी की उदारता को रेखांकित करते हुए कहा कि हिंदी ने उर्दू, संस्कृत, फारसी, अंग्रेज़ी और क्षेत्रीय भाषाओं से शब्द लेकर खुद को समृद्ध किया है।
छात्राओं की सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ
कार्यक्रम के दौरान हिंदी विभाग की छात्राओं — ज्योति, अंकिता, मुन्नी और अंजलि कुमारी ने अपने आलेख और काव्य पाठ प्रस्तुत किए। इन प्रस्तुतियों में हिंदी के प्रति उनका भावनात्मक जुड़ाव और रचनात्मक अभिव्यक्ति स्पष्ट झलकी।
अन्य वक्ताओं की सहभागिता
डॉ. संयोगिता वर्मा ने कुशल संचालन करते हुए कहा कि भाषा केवल संप्रेषण का माध्यम नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण की आधारशिला है।
बांग्ला विभाग के प्रोफेसर डॉ. अरिजीत भट्टाचार्य ने हिंदी की सर्वव्यापकता और विविधता को रेखांकित करते हुए इसे एकता की भाषा बताया।
आयोजन की समाप्ति और धन्यवाद ज्ञापन
कार्यक्रम के अंत में प्रोफेसर बैजू कुमार नोनिया ने सभी अतिथियों, प्रतिभागियों, छात्रों और आयोजन समिति को धन्यवाद ज्ञापित किया।
अतिथियों का स्वागत विभाग की शिक्षिका डॉ. पूनम शर्मा द्वारा किया गया।
इस अवसर पर कॉलेज के विभिन्न संकायों के शिक्षकगण और छात्र-छात्राएं बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। कार्यक्रम ने न केवल हिंदी भाषा की महत्ता को रेखांकित किया, बल्कि भाषाई समावेशिता और संस्कृति के प्रति जागरूकता भी बढ़ाई।
What's Your Reaction?






