पृथ्वी दिवस - पर्यावरणीय क्षरण के विरुद्ध जागरूकता का आह्वान
पृथ्वी दिवस 2025 हमें याद दिलाता है कि हमारा ग्रह एक आपातकालीन स्थिति में है। पर्यावरणीय क्षरण के आंकड़े हमें चेतावनी देते हैं कि यदि हमने अभी कार्रवाई नहीं की, तो भविष्य में अपूरणीय क्षति होगी। यह समय है कि हम व्यक्तिगत और सामूहिक स्तर पर अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करें। जैसा कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा, "हमें जलवायु नरक की ओर जाने वाली सड़क से निकलने की आवश्यकता है।" आइए, इस पृथ्वी दिवस पर संकल्प लें कि हम अपने ग्रह को संरक्षित करने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे, क्योंकि यह न केवल हमारा घर है, बल्कि हमारी भावी पीढ़ियों की विरासत भी है।

हर वर्ष 22 अप्रैल को विश्वभर में पृथ्वी दिवस (Earth Day) मनाया जाता है, जो हमें हमारे ग्रह की सुंदरता और उसकी नाजुकता की याद दिलाता है। 1970 में अमेरिकी सीनेटर गेलॉर्ड नेल्सन द्वारा शुरू किया गया यह आंदोलन आज 190 से अधिक देशों में एक अरब से ज्यादा लोगों को पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित करता है। 2025 का पृथ्वी दिवस, जिसका वैश्विक थीम है "Our Power, Our Planet", नवीकरणीय ऊर्जा और पर्यावरणीय स्थिरता के लिए सामूहिक कार्रवाई पर केंद्रित है। यह अवसर हमें पर्यावरणीय क्षरण (Environmental Degradation) के भयावह आंकड़ों पर विचार करने और तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
पर्यावरणीय क्षरण: एक चिंताजनक चित्र : पर्यावरणीय क्षरण आज मानवता के समक्ष सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, विश्व की 40% भूमि पहले ही क्षरण का शिकार हो चुकी है, जिसका सीधा प्रभाव 3.2 अरब लोगों पर पड़ रहा है। यह क्षरण मृदा की उर्वरता में कमी, जैव विविधता हानि, और खाद्य सुरक्षा पर संकट के रूप में प्रकट हो रहा है। 2000 से 2015 के बीच, पृथ्वी की 20% भूमि क्षेत्र में क्षरण हुआ, जिसके परिणामस्वरूप पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं में भारी कमी आई।
जलवायु परिवर्तन इस संकट को और गहरा रहा है। 2024 को इतिहास का सबसे गर्म वर्ष घोषित किया गया, जिसमें वैश्विक औसत तापमान प्री-इंडस्ट्रियल स्तर से 1.60 डिग्री सेल्सियस ऊपर दर्ज किया गया। इसके परिणामस्वरूप समुद्र स्तर में प्रतिवर्ष 2.5 मिमी की वृद्धि, ग्लेशियरों का पिघलना, और चरम मौसमी घटनाएँ जैसे सूखा, बाढ़ और तूफान बढ़ रहे हैं। भारत जैसे देशों में, जहाँ 92% आबादी प्रदूषित हवा में साँस ले रही है, वायु प्रदूषण के कारण प्रतिवर्ष 70 लाख से अधिक समयपूर्व मृत्यु हो रही हैं।
जैव विविधता हानि भी एक गंभीर समस्या है। रेड लिस्ट इंडेक्स के अनुसार, पिछले 25 वर्षों में 10% प्रजातियों के विलुप्त होने का जोखिम बढ़ा है, और अनुमानतः 10 लाख प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं। वनों की कटाई भी चिंताजनक गति से जारी है; 2000 से 2015 के बीच 58 मिलियन हेक्टेयर वन क्षेत्र नष्ट हो चुका है, जो केन्या के आकार के बराबर है। इसके अलावा, प्लास्टिक प्रदूषण का संकट गहराता जा रहा है। यदि यही स्थिति रही, तो 2040 तक जलीय पारिस्थितिक तंत्र में प्लास्टिक कचरे की मात्रा तिगुनी हो जाएगी।
भारत का संदर्भ: भारत में पर्यावरणीय क्षरण के प्रभाव विशेष रूप से गंभीर हैं। *ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क के अनुसार, यदि विश्व की पूरी आबादी भारत की तरह संसाधनों का उपभोग करे, तो हमें 1.7 पृथ्वियों की आवश्यकता होगी। नदियों और जलाशयों का प्रदूषण, वायु गुणवत्ता में गिरावट, और अनियंत्रित शहरीकरण ने स्थिति को और जटिल बना दिया है। उदाहरण के लिए, दिल्ली और अन्य महानगरों में PM10 और PM2.5 के स्तर अक्सर WHO के सुरक्षित दिशानिर्देशों से कई गुना अधिक रहते हैं। इसके अतिरिक्त, भारत में 40% मृदा अपने कार्बनिक पदार्थ का न्यूनतम स्तर (3-6%) खो चुकी है, जिससे कृषि उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
पृथ्वी दिवस: जागरूकता से कार्रवाई की ओर : पृथ्वी दिवस केवल जागरूकता का अवसर नहीं, बल्कि कार्रवाई का आह्वान है। व्यक्तिगत स्तर पर, हम एकल-उपयोग प्लास्टिक को कम करने, पौधरोपण, और पुनर्चक्रण जैसी आदतें अपना सकते हैं। सामूहिक रूप से, सरकारों और संगठनों को नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश, वन संरक्षण, और सख्त पर्यावरण नीतियों को लागू करने की आवश्यकता है। पेरिस समझौते जैसे वैश्विक समझौतों को लागू करने में भारत जैसे देशों की भूमिका महत्वपूर्ण है।
शिक्षा भी एक शक्तिशाली हथियार है। क्लाइमेट लिटरेसी को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करना भावी पीढ़ियों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक बनाएगा। इसके साथ ही, स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना, जैसे कि वियतनाम में USAID रिड्यूसिंग पॉल्यूशन प्रोजेक्ट की तरह, डेटा-आधारित कार्रवाई योजनाओं को बढ़ावा दे सकता है।
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