टूटते रिश्ते, बढ़ते अपराध और वैवाहिक जीवन का संकट

मेरठ कांड, अलीगढ़ का सास-दामाद प्रकरण और अन्य घटनाएँ हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या हमारा समाज सही दिशा में जा रहा है? प्रेम और रिश्तों की आड़ में अपराध का शगल बन जाना न केवल रिश्तों की पवित्रता को ठेस पहुँचाता है, बल्कि समाज की नींव को भी कमजोर करता है। यह समय है कि हम व्यक्तिगत स्वार्थ और क्षणिक सुख की चाह को छोड़कर रिश्तों में विश्वास, संवाद और नैतिकता को प्राथमिकता दें। अन्यथा, टूटते रिश्तों और बढ़ते अपराधों का यह सिलसिला हमें एक ऐसी राह पर ले जाएगा, जहाँ से वापसी मुश्किल होगी।

Apr 6, 2025 - 06:30
Apr 22, 2025 - 09:04
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टूटते रिश्ते, बढ़ते अपराध और वैवाहिक जीवन का संकट

आज का समाज एक ऐसे दौर से गुजर रहा है, जहाँ वैवाहिक रिश्तों की पवित्रता और विश्वास की नींव कमजोर पड़ती जा रही है। तलाक की बढ़ती दर, रिश्तों में विश्वासघात और प्रेम के नाम पर अपराध की घटनाएँ न केवल सामाजिक मूल्यों को चुनौती दे रही हैं, बल्कि मानवीय संवेदनाओं को भी कुंद कर रही हैं। मेरठ, अलीगढ़ और अन्य शहरों से सामने आ रही हालिया घटनाएँ इस बात का स्पष्ट प्रमाण हैं कि प्रेम की संज्ञा देकर लोग वैवाहिक जीवन के इतर जाकर किस हद तक अपराध की राह चुन रहे हैं। यह प्रवृत्ति न केवल चिंताजनक है, बल्कि समाज के लिए एक गंभीर चेतावनी भी है।

मेरठ कांड: उत्तर प्रदेश के मेरठ से हाल के महीनों में कई ऐसी घटनाएँ सामने आई हैं जो रिश्तों की बुनियाद पर प्रहार करती हैं व जिन्होंने वैवाहिक रिश्तों की नींव को हिला दिया है। सौरभ राजपूत हत्याकांड इसका ज्वलंत उदाहरण है, जहाँ पत्नी मुस्कान ने अपने प्रेमी साहिल के साथ मिलकर अपने पति की निर्मम हत्या कर दी। शव को टुकड़ों में काटकर ड्रम में बंद करने की क्रूरता ने समाज को झकझोर कर रख दिया। इसके अलावा, एक अन्य मामले में पत्नी रविता ने अपने प्रेमी अमरदीप के साथ मिलकर पति अमित की हत्या की और इसे साँप के काटने का रूप देने की कोशिश की। पोस्टमार्टम ने गला घोंटने की सचाई उजागर की, और दोनों अपराधी सलाखों के पीछे पहुँचे।

 

 

इन घटनाओं में एक समानता स्पष्ट है: अवैध संबंध को प्रेम की संज्ञा देकर विश्वासघात, जो अंततः अपराध की ओर लेकर जाता है। मेरठ के ही एक अन्य मामले में, एक पति ने अपनी पत्नी पर अवैध संबंधों के आरोप लगाते हुए दावा किया कि वह अपने प्रेमियों के साथ मिलकर उसकी हत्या की साजिश रच रही है। यह मामला भले ही हत्या तक न पहुँचा हो, लेकिन यह दर्शाता है कि वैवाहिक जीवन में अविश्वास और संदेह कितना गहरा चुका है।

 

अलीगढ़ का सास-दामाद प्रकरण: नैतिक पतन का प्रतीक अलीगढ़ की एक घटना ने रिश्तों की परिभाषा को ही तार-तार कर दिया। यहाँ एक महिला अपने होने वाले दामाद राहुल के साथ फरार हो गई। यह घटना केवल विश्वासघात तक सीमित नहीं है; महिला ने बेटी की शादी के लिए जुटाए गए 5 लाख रुपये के गहने और 3.5 लाख रुपये नकद भी साथ ले लिए। इस मामले में जेठानी के खुलासे ने और भी गंभीर तथ्य सामने लाए, जिसमें दावा किया गया कि महिला अपने पति जितेंद्र की हत्या की साजिश रच रही थी।

 

 

 

पति जितेंद्र ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि वह तलाक नहीं चाहते, क्योंकि उनके छोटे बच्चों को माँ की जरूरत है। यह बयान दर्शाता है कि जहाँ एक ओर विश्वासघात और अपराध की घटनाएँ बढ़ रही हैं, वहीं कुछ लोग अभी भी रिश्तों को बचाने की कोशिश में जुटे हैं। लेकिन, सवाल यह है कि जब रिश्तों की नींव ही छल और स्वार्थ पर टिकी हो, तो क्या उन्हें बचाना संभव है?

तलाक और टूटते रिश्ते: सामाजिक बदलाव या नैतिक पतन? तलाक की बढ़ती दर और वैवाहिक रिश्तों में टूटन के पीछे कई कारण हैं। आधुनिक जीवनशैली, व्यक्तिगत स्वतंत्रता की चाह, आर्थिक दबाव और संवाद की कमी ने रिश्तों को कमजोर किया है। लेकिन, इन सबके बीच प्रेम के नाम पर अपराध की ओर बढ़ना एक खतरनाक प्रवृत्ति है। मेरठ, औरैया, बरेली और बेंगलुरु जैसी जगहों पर हुई घटनाएँ  दर्शाती हैं कि अवैध संबंध और प्रेम के बहाने लोग न केवल अपने जीवनसाथी को धोखा दे रहे हैं, बल्कि हत्या जैसे जघन्य अपराध भी कर रहे हैं।

 

औरैया में शादी के मात्र 15 दिन बाद पत्नी प्रगति ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर पति दिलीप की हत्या कर दी, ताकि वह उसकी संपत्ति हथिया सके। बरेली में रेखा ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर पति को जहर देकर और गला घोंटकर मार डाला, और इसे आत्महत्या का रूप देने की कोशिश की। ये घटनाएँ दर्शाती हैं कि प्रेम और विश्वास के नाम पर स्वार्थ और लालच कितना हावी हो चुका है।

 

 

समाज और व्यवस्था की भूमिका: इन घटनाओं को केवल व्यक्तिगत अपराध के रूप में देखना पर्याप्त नहीं है। यह समाज में गहरे बैठे नैतिक पतन, संवादहीनता और मूल्यों के क्षरण का परिणाम है। शिक्षा, जागरूकता और काउंसलिंग के माध्यम से वैवाहिक रिश्तों को मजबूत करने की जरूरत है। साथ ही, कानून व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए पुलिस प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने से ही अपराध की मानसिकता के बढ़ावाको रोका जा सकना संभव है। ज्यादातर अपराध पुलिस में शिकायत होने के बाद कार्रवाई न होने या विलंब के कारण घटित होती हैं।   

हालाँकि पुलिस और प्रशासन ने मेरठ और कुछ मामलों में त्वरित कार्रवाई की है, लेकिन यह केवल एक उदाहरण है। समाज को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। परिवारों को बच्चों में नैतिक मूल्यों का संस्कार देना होगा, ताकि रिश्तों की गरिमा बनी रहे। साथ ही, वैवाहिक जीवन में संवाद और विश्वास को बढ़ावा देने के लिए सामाजिक और मनोवैज्ञानिक समर्थन की भी जरूरत है।

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I