गुरुग्राम पुलिस पर यौन उत्पीड़न के आरोप: महिला वकील की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार से माँगा जवाब, जाँच रोकने से इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुग्राम के पुलिसकर्मियों द्वारा यौन और शारीरिक उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली एक महिला वकील की याचिका पर हरियाणा सरकार को नोटिस जारी किया है। याचिका में एफआईआर की स्वतंत्र जाँच और संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की माँग की गई थी। याचिकाकर्ता तीस हजारी बार एसोसिएशन की सदस्य हैं और उन्होंने आरोप लगाया है कि पुलिस थाने में उनके साथ दुर्व्यवहार, अवैध हिरासत और जहर पिलाने की कोशिश की गई।

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने गुरुग्राम पुलिस पर यौन और शारीरिक उत्पीड़न के आरोपों पर विचार करते हुए हरियाणा सरकार को नोटिस जारी किया और चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया।
महिला वकील ने याचिका में गुरुग्राम सेक्टर 50 थाने में 21 मई, 2025 को हुई कथित घटना की सीबीआई या दिल्ली पुलिस जैसी स्वतंत्र एजेंसी से जाँच की माँग की थी। उन्होंने बताया कि वे एक वैवाहिक विवाद के सिलसिले में अपने मुवक्किल के साथ थाने गई थीं, जहाँ पुलिस अधिकारियों ने उन्हें अवैध रूप से हिरासत में लिया, हमला किया और पीने के लिए संदिग्ध पदार्थ देने की कोशिश की।
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि उनके खिलाफ बदले की कार्रवाई में गुरुग्राम पुलिस ने IPC की कई गंभीर धाराओं के तहत झूठी एफआईआर दर्ज की। उन्होंने बताया कि न तो कोई गिरफ्तारी ज्ञापन दिया गया और न ही परिजनों को सूचित किया गया। उन्होंने दिल्ली और गुरुग्राम में दो अलग-अलग एफआईआर भी दर्ज कराई है।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस जाँच पर रोक लगाने की याचिकाकर्ता की माँग को अस्वीकार कर दिया और कहा कि उन्हें पुलिस जाँच में सहयोग करना चाहिए। कोर्ट ने कहा, "आप यह याचिका केवल इसलिए लाई हैं, क्योंकि आप खुद वकील हैं।"
पीठ ने यह भी कहा कि एफआईआर की प्रति नहीं मिलने जैसी शिकायत के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना अत्यधिक है और इसके लिए उन्हें मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट से संपर्क करना चाहिए था।
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