उप-राष्ट्रपति धनखड़ बोले: न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा मामले की आंतरिक समिति की जांच में नहीं है कानूनी वैधता
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि न्यायपालिका में पारदर्शिता, जवाबदेही और कानूनी प्रक्रिया के महत्व को रेखांकित किया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि केवल आंतरिक जांच से न्यायिक भ्रष्टाचार जैसे गंभीर मामलों का समाधान नहीं हो सकता, बल्कि इसके लिए कानूनी और वैज्ञानिक जांच आवश्यक है, ताकि न्याय व्यवस्था में आम जनता का विश्वास बना रहे।

भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच के लिए गठित तीन न्यायाधीशों की आंतरिक समिति की वैधता पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि इस समिति की जाँच का न तो कोई संवैधानिक आधार है, न ही कानूनी वैधता, और सबसे अहम यह कि इसका कोई ठोस परिणाम नहीं निकल सकता। धनखड़ ने इस मामले में एफआईआर दर्ज न होने पर भी चिंता जताई और न्यायिक जवाबदेही के लिए गहन, वैज्ञानिक और पारदर्शी जाँच की माँग की। साथ ही, उन्होंने 1991 के सुप्रीम कोर्ट के के वीरास्वामी फैसले की समीक्षा की आवश्यकता बताई, जिससे न्यायपालिका को 'अभेद्य सुरक्षा कवच' मिल गया है और जवाबदेही कमजोर हुई है। उपराष्ट्रपति ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा प्रारंभिक रिपोर्ट सार्वजनिक करने की सराहना की, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि जब तक दोषियों को न्याय के कटघरे में नहीं लाया जाता, तब तक व्यवस्था में सुधार संभव नहीं है।
मुख्य बिंदु
- आंतरिक समिति की जाँच पर सवाल: उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि तीन न्यायाधीशों की आंतरिक समिति की जाँच का कोई संवैधानिक या कानूनी आधार नहीं है और यह प्रक्रिया प्रशासनिक स्तर तक सीमित है, जिससे इसकी वैधता और प्रभावशीलता पर प्रश्नचिह्न लगते हैं।
- एफआईआर और पारदर्शिता की कमी: उन्होंने पूछा कि जब आम नागरिकों के खिलाफ तुरंत आपराधिक कार्रवाई होती है, तो इस मामले में एफआईआर दर्ज करने में देरी क्यों हो रही है। साथ ही, समिति द्वारा इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य या धन के स्रोत व उद्देश्य की जानकारी सार्वजनिक न होने पर भी चिंता जताई।
- के वीरास्वामी जजमेंट की समीक्षा की माँग: धनखड़ ने 1991 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले (के वीरास्वामी बनाम भारत संघ) को 'अभेद्य सुरक्षा कवच' बताते हुए कहा कि इससे न्यायाधीशों के खिलाफ कार्रवाई में बाधा आती है और जवाबदेही कमजोर होती है। उन्होंने इस फैसले की समीक्षा की आवश्यकता पर बल दिया।
- व्यवस्था में सुधार की जरूरत: उपराष्ट्रपति ने कहा कि जब तक दोषियों को न्याय के कटघरे में नहीं लाया जाता, तब तक सिस्टम की छवि नहीं सुधरेगी। उन्होंने गहन, वैज्ञानिक और निष्पक्ष जाँच की आवश्यकता बताई, जिससे सच्चाई सामने आ सके और आमजन का भरोसा बहाल हो।
- पूर्व CJI की सराहना: धनखड़ ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा प्रारंभिक रिपोर्ट सार्वजनिक डोमेन में रखने की सराहना की, जिससे कुछ हद तक संस्थागत विश्वास बहाल हुआ।
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