यूपी सरकार ने बदले पांच इंजीनियरिंग कॉलेजों के नाम: संस्थागत पहचान में बड़ा बदलाव
उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश के पाँच प्रमुख सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों का नाम बदलने का निर्णय लिया है। यह बदलाव संस्थानों की पहचान, क्षेत्रीय योगदान और भावनात्मक जुड़ाव को ध्यान में रखते हुए किया गया है। सरकार का उद्देश्य इन कॉलेजों को स्थानीय गौरव, सांस्कृतिक विरासत और विशिष्ट पहचान से जोड़ना है।

लखनऊ, 29 जून 2025 : उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश के पाँच प्रमुख राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेजों का नाम बदलने का निर्णय लिया है। यह कदम राज्य सरकार की उस नीति का हिस्सा है, जो शैक्षणिक संस्थानों को स्थानीय इतिहास, संस्कृति, और नायकों से जोड़ने की दिशा में उठाया जा रहा है। तकनीकी शिक्षा विभाग ने इस संबंध में आधिकारिक अधिसूचना जारी कर दी है।
यह नाम परिवर्तन केवल प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि इससे संस्थानों की स्थानीय पहचान, सांस्कृतिक गौरव, और भविष्य की ब्रांडिंग को लेकर भी नई दिशा तय की जा रही है। सरकार ने स्पष्ट किया है कि संस्थानों की प्रशासनिक संरचना, पाठ्यक्रम, फैकल्टी, या डिग्री की मान्यता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
बयान के अनुसार, नाम परिवर्तनों की सूची:
1. राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज, प्रतापगढ़ → भारत रत्न बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज
2. राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज, मीरजापुर → सम्राट अशोक राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज
3. राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज, बस्ती → भारत रत्न सरदार वल्लभभाई पटेल राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज
4. राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज, गोंडा → माँ पाटेश्वरी देवी राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज
5. राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज, मैनपुरी → लोकमाता देवी अहिल्याबाई होल्कर राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज
सरकार की मंशा: स्थानीय गौरव और सांस्कृतिक चेतना
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने बीते वर्षों में कई जिलों और संस्थानों के नाम बदले हैं ताकि उन्हें स्थानीय नायकों, धार्मिक-सांस्कृतिक प्रतीकों और ऐतिहासिक विरासत से जोड़ा जा सके। यह कदम उसी शृंखला का हिस्सा है।
राज्य सरकार के प्रवक्ता के अनुसार, “यह बदलाव केवल नाम का नहीं है, बल्कि इन संस्थानों को स्थानीय समाज के साथ गहरे जुड़ाव और सम्मानजनक पहचान देने का प्रयास है। छात्र अब स्वयं को एक ऐसे संस्थान से जुड़ा पाएंगे जिसका नाम उनके क्षेत्र की पहचान को प्रतिबिंबित करता है।”
शैक्षणिक और सामाजिक प्रतिक्रिया: मिला-जुला रुख
इस निर्णय पर शैक्षणिक जगत की प्रतिक्रियाएं मिश्रित रही हैं:
समर्थन में:
स्थानीय जनप्रतिनिधियों और सांस्कृतिक संगठनों ने नाम परिवर्तन का स्वागत करते हुए कहा कि इससे छात्रों और समुदाय के बीच गर्व की भावना बढ़ेगी।
कुछ विशेषज्ञों ने कहा कि यह कदम ‘लोकल-टू-ग्लोबल’ विजन को प्रोत्साहित करता है।
आलोचना में:
कुछ छात्रों और शिक्षकों ने चिंता व्यक्त की कि नाम परिवर्तन से डिग्री के प्रमाणीकरण, रोजगार या प्रतियोगी परीक्षाओं में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
कुछ आलोचकों ने इसे सरकार की 'सांकेतिक राजनीति' बताते हुए कहा कि इससे संस्थानों की शैक्षणिक गुणवत्ता पर ध्यान कम हो जाता है।
क्या बदलेगा और क्या नहीं?
राज्य सरकार ने स्पष्ट किया है कि:
संस्थान का UGC/AICTE से संबद्धता यथावत रहेगी।
डिग्री की वैधता, पाठ्यक्रम, और प्रशासनिक प्रक्रिया में कोई बदलाव नहीं होगा।
संस्थानों को नए नाम के अनुसार बोर्ड, वेबसाइट, और प्रमाणपत्रों में संशोधन करना होगा।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में बदलाव की पड़ताल
भारत में संस्थानों का नाम स्थानीय नायकों और सांस्कृतिक प्रतीकों पर रखने की परंपरा नई नहीं है। IIT मद्रास, IIM अहमदाबाद जैसे संस्थानों ने भी समय के साथ स्थानीय संदर्भ और पहचान को प्राथमिकता दी है। यूपी सरकार का यह निर्णय भी 'शैक्षणिक संस्थाओं का भारतीयकरण' की ओर बढ़ते कदम के रूप में देखा जा सकता है।
नाम से आगे की कहानी
संस्थानों के नाम बदलना एक गहन प्रतीकात्मक और प्रशासनिक प्रक्रिया है। यह जरूरी है कि इन बदलावों के साथ-साथ शिक्षा की गुणवत्ता, शोध की सुविधा, और छात्रों के भविष्य को लेकर भी गंभीरता बरती जाए। यदि नाम के साथ संस्थान की पहचान, साख और उपलब्धियाँ भी विकसित हों, तो यह बदलाव वास्तव में सार्थक सिद्ध हो सकता है।
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