डॉक्टर: भरोसे की आखिरी दीवार
‘राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस’ केवल डॉक्टरों को धन्यवाद कहने का दिन नहीं, बल्कि उनके बहुआयामी योगदान, मानसिक और सामाजिक चुनौतियों तथा नीति-निर्माण में उनकी भूमिका को समझने और सम्मान देने का अवसर है। यह लेख भारत में डॉक्टरों की भूमिका, चिकित्सा पेशे की कठिनाइयाँ, डॉक्टरों की सुरक्षा व मानसिक स्वास्थ्य की ज़रूरतों और स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार की आवश्यकता को रेखांकित करता है। डॉक्टर न केवल जीवन रक्षक होते हैं, बल्कि वे समाज की भरोसे की आखिरी दीवार हैं, जिनका संरक्षण और सम्मान समाज की प्राथमिक जिम्मेदारी है।

हर वर्ष 1 जुलाई को भारत में राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस मनाया जाता है। यह दिन केवल चिकित्सा पेशे से जुड़े लोगों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करने का अवसर ही नहीं है, बल्कि भारतीय समाज में चिकित्सकों की बहुआयामी भूमिका, उनकी चुनौतियों और स्वास्थ्य व्यवस्था की दिशा पर एक गहन आत्ममंथन करने का भी उपयुक्त अवसर है।
यह दिवस भारत के महान चिकित्सक, स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता डॉ. बिधान चंद्र रॉय की स्मृति को समर्पित है, जिनकी जयंती और पुण्यतिथि दोनों ही इसी दिन पड़ती हैं। वे इस बात का जीवंत उदाहरण थे कि किस प्रकार चिकित्सा, सेवा, नेतृत्व और नैतिकता का समागम किसी एक जीवन में संभव है।
चिकित्सा: एक पेशा नहीं, एक प्रतिबद्धता
भारतीय संस्कृति में वैद्य या चिकित्सक को 'द्वितीय देवता' का स्थान दिया गया है। ‘वैद्यो नारायणो हरिः’ अर्थात वैद्य स्वयं नारायण के समान हैं। परंतु आधुनिक संदर्भों में जब समाज तकनीक, बाजार और सूचना की तीव्रता से जूझ रहा है, डॉक्टर की भूमिका केवल रोग के उपचार तक सीमित नहीं रह गई है।
आज का डॉक्टर:
स्वास्थ्य सलाहकार है,
अनुसंधानकर्ता है,
नीति निर्माता के सहयोगी हैं,
शिक्षक और मार्गदर्शक है,
और सबसे बढ़कर, वह समाज का नैतिक स्तंभ है।
वह जीवन और मृत्यु के बीच एक मौन सेतु की तरह खड़ा होता है, जहाँ विश्वास, विज्ञान और संवेदना का संतुलन ही उसकी पहचान है।
डॉक्टरों के कंधों पर कितनी जिम्मेदारियाँ?
डॉक्टरों का कार्यक्षेत्र सीमित नहीं होता। एक शिशु के जन्म से लेकर किसी वृद्ध की अंतिम साँस तक, डॉक्टर जीवन चक्र के हर मोड़ पर सक्रिय रहता है। महामारी, प्राकृतिक आपदाएँ, युद्ध या दंगे हर आपातकाल में डॉक्टर सबसे आगे खड़े होते हैं। उन्होंने COVID-19 के दौरान जिस साहस और प्रतिबद्धता का परिचय दिया, वह इतिहास में अमिट रहेगा।
लेकिन यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि इन्हीं डॉक्टरों को आज अनेक समस्याओं और अपमानजनक स्थितियों का सामना करना पड़ता है?
डॉक्टरों के समक्ष खड़ी वास्तविक चुनौतियाँ
1. शैक्षणिक और मानसिक बोझ:
एमबीबीएस से लेकर सुपर स्पेशलाइजेशन तक की यात्रा वर्षों की कठिन पढ़ाई, नींद की बलि, परीक्षा का तनाव और आर्थिक दबाव से भरी होती है।
2. कार्यस्थल का तनाव और असमानता:
सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर को भारी मरीजभार, सीमित संसाधनों और प्रशासनिक दबावों के बीच कार्य करना पड़ता है। वहीं निजी क्षेत्र में भी ‘प्रोफ़ेशनल’ अपेक्षाओं का आर्थिक दबाव चिकित्सकीय नैतिकता को चुनौती देता है।
3. सुरक्षा की गंभीर कमी:
पिछले कुछ वर्षों में डॉक्टरों पर हमले की घटनाएँ देशभर में बढ़ी हैं। मृत्यु के क्षणों से जूझते परिजनों की निराशा और ग़ुस्सा अक्सर डॉक्टरों पर उतरता है जो न केवल अमानवीय है, बल्कि व्यावसायिक नैतिकता पर भी कुठाराघात है।
4. सामाजिक सम्मान में गिरावट:
कभी जिन्हें समाज देवता मानता था, आज उनका पेशा संदेह और व्यवसायिक दृष्टि से देखा जाने लगा है। इसका कारण केवल कुछ गलत उदाहरण नहीं, बल्कि संपूर्ण स्वास्थ्य व्यवस्था की खामियाँ भी हैं।
समाज और सरकार की जिम्मेदारियाँ
नीतिगत सुधार आवश्यक हैं
डॉक्टरों के लिए विशेष सुरक्षा कानूनों को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।
चिकित्सा शिक्षा की लागत को वाजिब और सुलभ बनाया जाना चाहिए ताकि प्रतिभाशाली विद्यार्थी बिना आर्थिक तनाव के इस पेशे में प्रवेश कर सकें।
सरकारी अस्पतालों को संसाधन-संपन्न बनाना होगा, ताकि डॉक्टरों को बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष न करना पड़े।
मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान दें
डॉक्टर भी इंसान हैं। 24x7 सेवाएँ देने वाले इन पेशेवरों को कभी-कभी स्वयं चिकित्सा-सहायता, परामर्श और मनोवैज्ञानिक समर्थन की आवश्यकता होती है। परंतु यह विषय आज भी भारत में उपेक्षित है। डॉक्टरों के लिए विशेष ‘वेलनेस प्रोग्राम्स’ और कार्य-जीवन संतुलन पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
सम्मान लौटाएँ
शिक्षकों की तरह डॉक्टरों को भी आर्थिक से अधिक सामाजिक सम्मान चाहिए। मीडिया, सिनेमा और राजनीतिक विमर्श में चिकित्सकों की भूमिका को सकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
युवाओं के लिए प्रेरणा बनें डॉक्टर
आज जब करियर विकल्प असीमित हैं, तब चिकित्सा क्षेत्र में आने वाले छात्रों को सेवा की भावना, मानवता का दृष्टिकोण और विज्ञान में आस्था के साथ प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस एक अवसर है कि हम मेडिकल छात्रों को यह बताएँ "तुम्हारा पेशा केवल नौकरी नहीं, यह राष्ट्रनिर्माण की आधारशिला है।"
राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस: औपचारिकता से संकल्प की ओर
यह दिवस केवल प्रतीकात्मक नहीं होना चाहिए। इस दिन हमें हर अस्पताल, मेडिकल कॉलेज और समुदाय में संवाद करने की आवश्यकता है:
डॉक्टरों की समस्याएँ सुनने की,
उनकी उपलब्धियों का सम्मान करने की,
और उनके साथ एक सहयोगी स्वास्थ्य प्रणाली की कल्पना साझा करने की।
क्योंकि डॉक्टर किसी एक मरीज के नहीं, पूरे समाज के स्वास्थ्य का संवाहक होता है।
भरोसे की आखिरी दीवार
डॉक्टर वह आखिरी व्यक्ति होता है जिससे एक बीमार, एक माँ, एक पिता या एक बुज़ुर्ग जीवन की उम्मीद बाँधता है। इस भरोसे को नष्ट करने का अर्थ है - समाज की आत्मा को कमज़ोर करना।
राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस हमें यह स्मरण कराता है कि सिर्फ रोगियों का नहीं, बल्कि डॉक्टरों का भी इलाज करना हमारी सामाजिक जिम्मेदारी है।
तो आइए, इस 1 जुलाई को धन्यवाद के साथ-साथ एक वादा करें कि हम डॉक्टरों को वह सुरक्षा, सम्मान और सहयोग देंगे, जिसके वे वास्तव में पात्र हैं।
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