कलकत्ता हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: शुभेंदु अधिकारी के खिलाफ 15 FIR रद्द, ‘सुरक्षा कवच’ हटा, SIT करेगी शेष मामलों की जाँच
कलकत्ता हाईकोर्ट ने विपक्ष नेता शुभेंदु अधिकारी पर दर्ज 15 FIRs खारिज कर दीं और पुलिस कार्रवाई से बचाने वाली ‘सुरक्षा’ समाप्त कर दी। बाकी गंभीर मामलों की जांच अब SIT करेगी, राज्य सरकार कोर्ट अनुमति बिना भी अब नई FIR दर्ज कर सकेगी।
कलकत्ता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी को मिली लंबी ‘अंतरिम सुरक्षा’ को खत्म करते हुए उनके खिलाफ राज्यभर में दर्ज 15 प्राथमिकी (FIRs) पूरी तरह रद्द करने का आदेश दिया है। न्यायालय ने CBI व राज्य पुलिस की संयुक्त SIT से शेष चार गंभीर मामलों की निष्पक्ष जाँच कराने का आदेश भी दिया। अब अधिकारी के खिलाफ बिना कोर्ट की अनुमति के भी पुलिस नई FIR दर्ज कर सकती है, जिससे राज्य की राजनीति में हलचल तेज हो गई है।
मामले की पृष्ठभूमि:
दिसंबर 2022 में जस्टिस राजशेखर मान्था की बेंच ने शुभेंदु अधिकारी को ‘सुरक्षा कवच’ देते हुए निर्देश दिया था कि उनके खिलाफ कोई भी नई FIR दर्ज करने से पहले कोर्ट की अनुमति जरूरी होगी; साथ ही 26 लंबित मामलों में कठोर कार्रवाई पर रोक थी।
दावा था कि अधिकारी के खिलाफ सत्तारूढ़ दल के दबाव में राज्यभर के थानों में कई FIR दर्ज हो रही थी, जिससे उन्हें ‘राजनीतिक प्रतिशोध’ का सामना करना पड़ रहा था। हालिया आदेश में हाईकोर्ट ने कहा कि अंतरिम राहत/कवच अनिश्चितकाल तक नहीं चल सकते, कानून सबके लिए बराबर है और कोई विशेषाधिकार प्राप्त नहीं हो सकता।
कोर्ट आदेश का विश्लेषण:
जस्टिस जय सेनगुप्ता की एकल पीठ ने 24 अक्तूबर 2025 को फैसला देते हुए 15 प्राथमिकी रद्द घोषित कीं।
4 प्रमुख मामलों की जाँच के लिए CBI और राज्य पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों वाली SIT गठित करने को कहा गया (जैसे- नौकरी घोटाला और धमकी के आरोप)। कोर्ट ने कहा कि अगर विपक्षी नेता या उनके वकील को कोई आपत्ति या तर्क प्रस्तुत करना है, तो वे लिखित में अगले सोमवार तक रख सकते हैं। अब इस आदेश के बाद राज्य पुलिस उच्च न्यायालय की अनुमति बिना भी नई FIR दर्ज कर सकती है।
विधिक और राजनीतिक असर:
अदालत के मुताबिक, कोई भी अंतरिम सुरक्षा आदेश अनंतकाल तक जारी नहीं रह सकता, कानून का समान अनुप्रयोग ही न्याय प्रणाली का आधार है। राज्य सरकार ने बार-बार माँग की थी कि शुभेंदु को जो संरक्षण मिला है, वह अनुचित रूप से कार्रवाई में बाधा पहुँचाता है। अदालत का आदेश चुनावी मौसम और विपक्षी राजनीति के लिहाज़ से बड़ा झटका माना जा रहा है, अब अधिकारी के खिलाफ कड़ी पुलिस/ कानूनी कार्रवाई संभव है।
भाजपा ने फैसले को ‘राजनीतिक प्रतिशोध का खतरा’ बताया, जबकि सत्तारूढ़ पक्ष ने न्याय की समानता की पुनः पुष्टि माना।
महत्वपूर्ण तथ्य:
SIT में दो SP स्तर के अफसर के साथ, CBI व राज्य पुलिस से 5-5 अधिकारी होंगे, और आरोपों की गहन निष्पक्ष जाँच होगी। कुछ मामले केवल तकनीकी त्रुटियों/प्रक्रियात्मक आधार पर ही रद्द हुए, बाकी आरोपों पर जाँच अभी चलेगी। यह आदेश बंगाल राजनीति की नई दिशा तय कर सकता है ।
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