वर्चुअल बनाम व्यक्तिगत उपस्थिति: उत्तर प्रदेश सूचना आयोग की कार्यप्रणाली पर नया विवाद
रविशंकर ने तीन द्वितीय अपीलों को एक ही अंतरिम आदेश में सम्मिलित करना विधि-विरोधी बताया। रविशंकर ने आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त राजकुमार विश्वकर्मा को पत्र लिखकर आयोग परिसर में कथित ‘जूता कांड’ के बाद सुरक्षा चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने वर्चुअल सुनवाई और दस्तावेज़ प्रतियाँ उपलब्ध कराने की माँग की।
लखनऊ/प्रयागराज: उत्तर प्रदेश सूचना आयोग में रविशंकर नामक अपीलकर्ता ने सुरक्षा और विधिक अधिकारों को ध्यान में रखते हुए तीन द्वितीय अपीलों से संबंधित एक विवादास्पद मामला उठाया है। रविशंकर ने आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त राजकुमार विश्वकर्मा को पत्र लिखकर बताया कि उनके खिलाफ जारी अंतरिम आदेश दिनांक 09/09/2025 में तीन भिन्न-भिन्न अपीलों —
1. द्वितीय अपील संख्या S01/A/0141/2024 (पंजीकरण संख्या A-20240400375)
2. द्वितीय अपील संख्या S01/A/0249/2024 (पंजीकरण संख्या A-20240500154)
3. द्वितीय अपील संख्या S01/A/0059/2024 (पंजीकरण संख्या A-20240100009) को एक ही आदेश में सम्मिलित किया गया, जो कि उनके अनुसार विधि-विरोधी और न्यायसंगत प्रक्रिया के विपरीत है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के विपरीत उपस्थिति का दबाव
रविशंकर ने पत्र में उल्लेख किया कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट के निम्न आदेशों के विपरीत व्यक्तिगत उपस्थिति के लिए मजबूर किया जा रहा है:
Kishan Chand Jain vs Union of India & Ors. (Writ Petition No. 360/2021), निर्णय दिनांक 09/10/2023
Manoj Singh Negi vs राज कुमार विश्वकर्मा & Ors., अवमानना याचिका (सिविल) संख्या 107/2025, निर्णय दिनांक 28/04/2025
उन्होंने कहा कि अनुपस्थित रहने पर उनकी पत्रावली को ‘दाखिल दफ्तर’ कर देने की चेतावनी दी गई है, जो सूचना कानून और विधिक प्रक्रिया के स्पष्ट उल्लंघन के अंतर्गत आता है।
सुरक्षा संबंधी गंभीर चिंता
रविशंकर ने अप्रैल 2025 में आयोग परिसर में हुए कथित ‘जूता कांड’ का हवाला देते हुए बताया कि अधिवक्ता दीपक शुक्ला, निवासी प्रयागराज के साथ मारपीट और झूठी एफआईआर दर्ज करने जैसी घटनाएँ पूर्व में आयोग में घटित हुई थीं। इस कारणवश उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत रूप से आयोग में उपस्थित होना उनके लिए असुरक्षित है। इसके बावजूद, यदि आयोग उन्हें संपूर्ण सुरक्षा, कुशल व्यवहार, और मुख्य द्वार से प्रवेश से लेकर बाहर निकलने तक ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग के साथ सुनवाई की लिखित गारंटी प्रदान करता है और इसकी सीडी उपलब्ध कराता है, तो वह दिनांक 30 अक्तूबर 2025 को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के लिए तैयार हैं। अन्यथा उन्होंने ऑनलाइन / वर्चुअल सुनवाई और उनके लिखित/मौखिक कथनों को रिकॉर्ड पर लेने की माँग की है।
विपक्षी पक्ष की जानकारी और अन्य मुद्दे
रविशंकर ने यह भी उल्लेख किया कि अंतरिम आदेश में विपक्षी जनसूचना अधिकारी के प्रतिनिधि के रूप में नैन्सी शुक्ल, नायब तहसीलदार, तहसील सोरांव, प्रयागराज को उपस्थित दर्शाया गया है। परंतु, संबंधित दिनांक पर उन्हें कोई सूचना/पत्राचार नहीं मिला। रविशंकर का दावा है कि आयोग द्वारा कई बार उनकी अनुपस्थिति को आधार बनाकर अपीलों को जबरन खारिज किया गया, जबकि भ्रष्टाचार के आरोपित अधिकारियों को बार-बार अवसर प्रदान किया गया। इसके अलावा उनके लिखित अभिकथनों को अंतरिम आदेश में सम्मिलित नहीं किया गया।
रविशंकर की माँगें
1. तीनों अपीलों को अलग-अलग अंतरिम आदेश में सुनवाई का अवसर देना।
2. दिनांक 09 सितंबर 2025 की सुनवाई में विपक्षी द्वारा उपलब्ध कराई गई दस्तावेज़ों की प्रतियां ईमेल पर भेजना।
3. सुरक्षा और ऑनलाइन / वर्चुअल सुनवाई की व्यवस्था।
4. विधि के अनुरूप उनके लिखित और मौखिक अभिकथनों को रिकॉर्ड पर लेना।
रविशंकर का पत्र उत्तर प्रदेश सूचना आयोग में प्रक्रियात्मक अनियमितताओं, सुरक्षा की कमी, और न्यायसंगत सुनवाई के अभाव को उजागर करता है। उनके अनुसार, यदि आयोग उनकी माँगों को मान्यता नहीं देता है, तो यह सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के उल्लंघन के साथ-साथ न्याय के मूलभूत सिद्धांतों का भी हनन होगा। इसके पहले भी कई अपीलार्थियों ने ऐसे गंभीर आरोप उत्तर प्रदेश मुख्य सूचना आयुक्त राजकुमार विश्वकर्मा पर पूर्व में लगाया है।
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