अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सुप्रीम कोर्ट सख्त : उच्च न्यायालय को खेद या माफी माँगने का अधिकार नहीं

सीबीएफसी से स्वीकृत फिल्मों पर प्रतिबंध की बढ़ती प्रवृत्ति को लेकर उच्चतम न्यायालय ने कड़ा रुख अपनाया है। कर्नाटक में अभिनेता कमल हासन की फिल्म रिलीज़ विवाद पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति मनमोहन ने साफ कहा कि "उच्च न्यायालय को खेद या माफी मांगने का कोई अधिकार नहीं था।" उन्होंने कहा कि अदालत को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए थी। न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां ने भी बॉम्बे हाईकोर्ट के ऐतिहासिक फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि महात्मा गांधी जैसे महापुरुषों पर सम्मान जताना ठीक है, लेकिन आलोचना पर रोक नहीं लगाई जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि केवल भावनाओं के आधार पर किसी स्वीकृत फिल्म या रचनात्मक अभिव्यक्ति पर रोक लगाना असंवैधानिक होगा।

Jun 18, 2025 - 12:30
Jun 18, 2025 - 12:59
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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सुप्रीम कोर्ट सख्त : उच्च न्यायालय को खेद या माफी माँगने का अधिकार नहीं
कर्नाटक हाई कोर्ट और कमल हासन

नई दिल्ली | 17 जून 2025 : भारतीय न्यायपालिका ने एक बार फिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में अपना स्पष्ट और सख्त रुख जाहिर किया है। अभिनेता कमल हासन की फिल्म की रिलीज़ को लेकर चल रहे विवाद पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अदालतों का काम समाज में विचारों की अभिव्यक्ति को रोकना नहीं, बल्कि संविधान और कानून के दायरे में उसे सुरक्षित रखना है।

मामले की पृष्ठभूमि : क्या है पूरा विवाद?

दरअसल, याचिकाकर्ता एम. महेश रेड्डी द्वारा दायर याचिका में कर्नाटक में कमल हासन की फिल्म की तत्काल रिलीज़ की माँग की गई थी। याचिका में कहा गया कि फिल्म को केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) से मंजूरी मिल चुकी है, इसके बावजूद राज्य में विरोध के चलते इसकी रिलीज़ रुकी हुई है।

याचिकाकर्ता के वकील ए वेलन ने कोर्ट से गुज़ारिश की कि राज्य सरकार को तुरंत फिल्म रिलीज़ करने का आदेश दिया जाए। जवाब में राज्य सरकार के वकील डी एल चिदानंद ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कमल हासन ने राज्य थियेटर एसोसिएशन के साथ मिलकर विवाद सुलझाने पर सहमति जताई है।

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?

मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के रवैये पर सवाल खड़े किए। न्यायमूर्ति मनमोहन ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा—

"उच्च न्यायालय को खेद या माफी माँगने का कोई अधिकार नहीं था। कानून के शासन के संरक्षक और अधिकारों के रक्षक के रूप में उसे इस मुद्दे पर विचार करना चाहिए था कि क्या सीबीएफसी द्वारा मंजूरी प्राप्त फिल्म को राज्य के सिनेमाघरों में रिलीज करने की अनुमति दी जानी चाहिए।"

उन्होंने आगे कहा—

"समाज में कुछ न कुछ गड़बड़ है। यदि कोई व्यक्ति किसी भाषा के बारे में गलत बयान देता है, तो बुद्धिजीवियों और जनता को इस पर बहस करनी चाहिए, सबूत पेश करने चाहिए और उसे गलत साबित करना चाहिए। अदालतों का काम सेंसर बनना नहीं है।"

पूर्व मामलों का संदर्भ : ‘मी नथूराम गोडसे बोलतोय’ और इमरान प्रतापगढ़ी

न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां ने भी इस मामले में पूर्व प्रासंगिक निर्णयों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा किबॉम्बे हाईकोर्ट ने पहले भी महाराष्ट्र और केरल सरकार द्वारा नाटक ‘मी नथूराम गोडसे बोलतोय’ पर लगाए गए प्रतिबंध को हटाने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस आदेश को बरकरार रखा था।

इसके अतिरिक्त उन्होंने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ कविता मामले में दायर याचिका खारिज करने के फैसले का भी हवाला दिया।

"महात्मा गांधी पूजनीय हो सकते हैं। लेकिन लोगों को उनके बारे में अपने विचार व्यक्त करने से नहीं रोका जा सकता। इसी तरह, CBFC द्वारा मंजूरी प्राप्त फिल्म को सिर्फ, इसलिए प्रदर्शित होने से नहीं रोका जा सकता क्योंकि कथित विवादास्पद बयान के कारण लोगों की भावनाएँ अभिनेता के खिलाफ हैं।"

अभिव्यक्ति बनाम भावनाएँ  : अदालत का सख्त संदेश

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि सिर्फ इस आधार पर कि किसी समुदाय या समूह की भावनाएँ  आहत हो रही हैं, एक कलात्मक रचना या फिल्म को रोका नहीं जा सकता। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Article 19(1)(a)) भारतीय लोकतंत्र का मूल आधार है और इसे केवल उन्हीं परिस्थितियों में सीमित किया जा सकता है, जहाँ स्पष्ट रूप से कानून व्यवस्था बिगड़ने का खतरा हो, वह भी न्यायिक परीक्षण के बाद।

क्या होगा आगे?

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई गुरुवार के लिए तय की है। तब तक अदालत का यह स्पष्ट संदेश पूरे देश में विचार और बहस का विषय बना हुआ है।

साहित्य, कला और सिनेमा हमेशा से समाज की सोच को आईना दिखाने का माध्यम रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संरक्षण के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है, विशेषकर वर्तमान दौर में जब कला, सिनेमा और साहित्य बार-बार भावनाओं के नाम पर प्रतिबंधित किए जाते हैं।

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I