साहित्यक साध्वी: डॉ. मीरा सिन्हा के जन्मदिवस पर एक श्रद्धांजलिपूर्ण अभिवंदन
मुक्तांचल पत्रिका की संपादक, संस्कृत वांग्मय की अनवरत साधिका, सेवानिवृत्त प्राध्यापिका एवं साहित्य की निर्मल सेविका डॉ. मीरा सिन्हा जी के जन्मदिवस पर यह लेख एक शिष्य, एक सहकर्मी, एक संस्कृतकर्मी की ओर से उनके प्रति कृतज्ञ और साहित्यिक नमन है। यह लेख न केवल उनके योगदान को स्मरण करता है, बल्कि उनके जीवन-दर्शन की झलक भी देता है।

प्रणाम हे शब्दों की दीप्त साधिका!
मैं, सुशील कुमार पाण्डेय, मुक्तांचल का प्रबंध संपादक, अपने हृदय की अतल गहराइयों से नमन करता हूँ अपनी गुरु, मार्गदर्शिका, साहित्य-सेवी डॉ. मीरा सिन्हा जी को, जिनका जन्मदिवस हमारे लिए केवल एक तिथि नहीं, एक साहित्यिक तीर्थ है।
आज जब आप जीवन की एक और मधुर वेला में प्रवेश कर रही हैं, तब एक शिष्य के लिए यह केवल बधाई का क्षण नहीं, बल्कि स्मरण और समर्पण का पर्व है। आपने जिस समर्पण से साहित्य को साधा, जिस गरिमा से शैक्षिक जीवन को जिया, और जिस कोमलता से मुक्तांचल को दिशा दी, वह हम सबके लिए मार्ग है, मान है और प्रेरणा है।
आपका जीवन एक ऐसी वसुधा है, जिसमें साहित्य की सजगता और नारी सृजनशीलता की सहज गरिमा एक साथ फली-फूली है। आपने शब्दों को केवल लिखा नहीं, उन्हें साधा है, उन्हें संवारा है, और सबसे बड़ी बात उन्हें सार्थक किया है।
आप 'मुक्तांचल' की आत्मा हैं। इस पत्रिका में जो भी चेतना है, उसका स्पंदन आपके स्पर्श से ही संभव हुआ है। आपके संपादन में केवल भाषा नहीं बोलती वह संस्कार और संवेदना बनकर पाठकों तक पहुँचती है।
मैंने आपको एक प्राध्यापिका के रूप में नहीं, एक तपस्विनी के रूप में देखा है, जो निरंतर शब्दों के यज्ञ में आहुति देती रही हैं, बिना किसी पुरस्कार की अपेक्षा के। आपकी मुस्कान में ममता है, आपकी दृष्टि में विवेक, और आपकी चुप्पी में वह गहराई, जो केवल सिद्ध साधकों के भाग्य में होती है।
आपके जन्मदिवस पर हम यही कामना करते हैं कि आपकी वाणी में सदा रस बना रहे, आपका स्वास्थ्य उत्तम बना रहे, और ‘मुक्तांचल’ आपकी चेतना से सदा आलोकित होता रहे। आप दीर्घायु हों यही ईश्वर से प्रार्थना है।
साष्टांग प्रणाम!
सुशील कुमार पाण्डेय
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