एक अधूरी मोहब्बत: संजीव कुमार और हेमा मालिनी की भावनात्मक प्रेम कहानी
संजीव कुमार और हेमा मालिनी की प्रेम कहानी बॉलीवुड की उन कहानियों में से एक है, जो दिल को छूती है, परंतु दिल मिल नहीं पाती। यह सिर्फ एक अभिनेता और अभिनेत्री की निजी ज़िंदगी का प्रसंग नहीं, बल्कि उस दौर की सोच, पारिवारिक मान्यताओं और फिल्मी दुनिया की जटिलताओं का प्रतिबिंब है। यह कहानी बताती है कि सच्चा प्रेम केवल मिलन में नहीं, बल्कि सम्मान और समझदारी में भी होता है और कभी-कभी, वही प्रेम अधूरा रहकर भी अमर बन जाता है।

9 जुलाई 1938 इसी दिन जन्मे थे हिन्दी सिनेमा के एक गंभीर, संवेदनशील और बहुमुखी अभिनेता संजीव कुमार। उनके अभिनय की सादगी और गहराई ने उन्हें दर्शकों के दिलों का बादशाह बना दिया। पर उनके निजी जीवन में एक ऐसी अधूरी दास्तां थी, जिसे जानकर आज भी दिल भीग जाता है और वो थी हेमा मालिनी से उनका निस्वार्थ प्रेम।
कहानी की शुरुआत: ‘सीता और गीता’ का सेट, और एक हादसा
इस प्रेम कहानी की शुरुआत होती है 1972 की सुपरहिट फिल्म सीता और गीता से, जब हेमा मालिनी और संजीव कुमार पहली बार एक साथ स्क्रीन शेयर कर रहे थे। गाना "हवा के साथ साथ..." की शूटिंग महाबलेश्वर में हो रही थी। दोनों स्केटिंग में अनाड़ी थे, शूट के दौरान गिरते-पड़ते दोनों को हँसी-मज़ाक ने करीब ला दिया। लेकिन उसी दौरान एक ट्रॉली दुर्घटना हुई, जिसमें दोनों गंभीर रूप से घायल होने से बाल-बाल बचे। उस दर्दनाक, परंतु सौभाग्यशाली हादसे के बाद दोनों के बीच रिश्तों की डोर बंधने लगी। एक-दूसरे की फिक्र, देखभाल और भावनात्मक लगाव ने प्रेम की चुपचाप नींव रख दी।
पारिवारिक स्वीकार्यता और मधुर संबंध
संजीव कुमार की माँ शांताबेन, जो कि पहले किसी भी अभिनेत्री को बहू बनाने के खिलाफ थीं, वे हेमा मालिनी के व्यवहार से इतना प्रभावित हुईं कि उन्होंने इस रिश्ते को मंजूरी दे दी। हेमा जी जब भी उनसे मिलतीं, सिर ढककर पैर छूतीं। संजीव कुमार की बहन गायत्री पटेल भी बताती हैं कि हेमा को सभी घरवाले पसंद करने लगे थे। यह सब होते हुए भी एक व्यक्ति था जो इस रिश्ते से पूरी तरह संतुष्ट नहीं था और वो थीं हेमा की माँ, जया चक्रवर्ती।
करियर बनाम विवाह - दो पीढ़ियों की टकराहट
जया चक्रवर्ती ने साफ़ कह दिया था कि हेमा शादी के बाद भी फिल्मों में काम करेंगी। यह बात जरीवाला परिवार (संजीव का परिवार) को मंज़ूर नहीं थी। संजीव कुमार चाहते थे कि हेमा पारिवारिक जीवन को प्राथमिकता दें। वहीं हेमा एक स्थापित अभिनेत्री थीं और अपना करियर छोड़ना उनके लिए आत्मसमर्पण के समान था। दोनों परिवारों की संस्कृतियां, दृष्टिकोण और प्राथमिकताएं अब आमने-सामने आ चुकी थीं।
राजेश खन्ना की एंट्री और चालाकी
इसी दौरान राजेश खन्ना, जो खुद भी हेमा में रुचि रखते थे और संजीव कुमार के साथ तीव्र प्रतिद्वंदिता में थे, इस स्थिति का फायदा उठाने की सोचते हैं। उन्होंने एक फंडरेज़र प्रीमियर में हेमा को अपने साथ आमंत्रित किया, जबकि उन्हें मालूम था कि संजीव भी वहाँ मौजूद होंगे। प्रीमियर के दिन जब संजीव कुमार स्टेज पर थे, तभी राजेश खन्ना हेमा का हाथ पकड़कर ऑडियंस की लाइन में बैठ गए। यह दृश्य देखकर संजीव कुमार का दिल टूट गया।
संबंधों में दरार और संवादहीनता
उस रात के बाद से संजीव कुमार और हेमा के बीच सब कुछ बदल गया। संजीव कुमार ने बात करना बंद कर दिया। हेमा ने कई बार संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन असफल रहीं। अंततः वो खुद उनके घर गईं, बात करने। संजीव कुमार ने उनसे आखिरी बार पूछा - "क्या तुम शादी के बाद फ़िल्में छोड़ दोगी?" जब हेमा ने मना कर दिया, तो संजीव बोले - "फिर तुम मुझे हमेशा के लिए छोड़ दो।" यहीं पर एक खूबसूरत रिश्ता, बिना किसी झगड़े के, चुपचाप टूट गया।
एक कलाकार की संवेदना और समर्पण
प्रीमियर के अगले ही दिन, संजीव कुमार को अनामिका फिल्म के ‘बाहों में चले आओ...’ गीत की शूटिंग करनी थी। वो पहुँचे भी समय पर सजग, और भावनात्मक रूप से टूटे हुए। लेकिन, उन्होंने एक भी शॉट खराब नहीं किया। साथी कलाकार जया भादुडी हैरान रह गईं कि इतना दुख झेलकर भी कोई इतने समर्पण से अभिनय कर सकता है।
एक प्रेम जो अमर रह गया
संजीव कुमार और हेमा मालिनी की यह कहानी न तो क्लासिक प्रेम कहानी है, न ही इसमें कोई खलनायक है। इसमें हैं केवल दो सच्चे लोग अपने-अपने आदर्शों और मूल्यों के साथ। ये एक ऐसी कहानी है जो हमें सिखाती है कि प्रेम में कभी-कभी त्याग, परिस्थिति और समय ज़्यादा निर्णायक होते हैं।
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