रंगशिल्पी का नया प्रयोग: रूसी कथा पर आधारित हिंदी साइंस फिक्शन नाटक ‘उभयचर’ का पोस्टर हुआ जारी
कोलकाता की प्रमुख नाट्य संस्था ‘रंगशिल्पी’ ने अपने आगामी और अत्यंत प्रयोगात्मक नाटक ‘उभयचर’ का पोस्टर भारतीय भाषा परिषद में विधिवत जारी किया। यह नाटक रूसी लेखक अलेक्जेंडर बेलायेव की विश्व प्रसिद्ध साइंस फिक्शन कथा पर आधारित है। 'उभयचर' एक अद्वितीय प्रयास है, जिसमें बांग्लाभाषी कलाकारों द्वारा हिंदी रंगमंच की प्रस्तुति की जाएगी। यह नाटक अगस्त मध्य तक मंच पर प्रस्तुत किया जाएगा।

कोलकाता, 6 जुलाई। कोलकाता की प्रतिष्ठित नाट्य संस्था 'रंगशिल्पी' ने अपने आगामी हिंदी नाटक ‘उभयचर’ का पोस्टर भारतीय भाषा परिषद में विधिवत जारी किया। इस अवसर पर मंच पर उपस्थित थे, परिषद निदेशक प्रो. शंभुनाथ, वरिष्ठ रंगकर्मी मृत्युंजय श्रीवास्तव, सुशील कांति, निर्देशक प्लाबन बसु, संस्कृति कर्मी डॉ. संजय जायसवाल, और कलकत्ता विश्वविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. राजश्री शुक्ला।
रूसी लेखक अलेक्जेंडर बेलायेव द्वारा लिखित इस कथा को रंगशिल्पी की टीम ने हिंदी रंगमंच के लिए रूपांतरित किया है। यह नाटक न केवल दूसरे विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि में रचा गया है, बल्कि इसका कथानक विज्ञान और कल्पना के सशक्त संगम से भी युक्त है।
रंगशिल्पी, जो पिछले दो दशकों से कोलकाता में हिंदी नाट्य परंपरा का महत्वपूर्ण केंद्र बना हुआ है, एक बार फिर अपने नवीन प्रयोग से दर्शकों को चौंकाने और सोचने को मजबूर करने जा रहा है।
निर्देशन की बागडोर संभाली है प्लाबन बसु ने, जबकि संगीत में पाश्चात्य शास्त्रीय रचनाओं का सधा हुआ संयोजन किया है दिशारी चक्रवर्ती ने।
प्रकाश योजना का भार संभाल रहे हैं शशांक मंडल और मानस भट्टाचार्य, जबकि मंच सज्जा की जिम्मेदारी जय चन्द्र चन्द के पास है।
अंग विन्यास की कलात्मक जिम्मेदारी निभा रहे हैं पेद्रो सुदीप्त कुंडू और गीत का स्वर दिया है सुचन्दा भट्टाचार्य ने।
अभिनय मंडली में शामिल हैं:
हिंदी रंगमंच के अनुभवी कलाकार सुशील कांति, शक्ति चक्रवर्ती, सोमनाथ चक्रवर्ती, बांग्ला नाटक व सिनेमा से जुड़े कलाकार साग्निक, शांत स्वरुप, स्वागता, आभेरी नाथ, पार्थ सारथी, भूमिका और रंजन सेनगुप्ता।
प्रो. शंभुनाथ ने कहा, "रंगशिल्पी की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह संस्था बांग्ला भाषी कलाकारों के साथ हिंदी नाटक प्रस्तुत करती है।"
श्री मृत्युंजय श्रीवास्तव ने इसे "हिंदी रंगमंच के लिए नया और दुर्लभ प्रयास" बताया।
प्रो. राजश्री शुक्ला ने कहा कि "यह नाटक न केवल अंतरराष्ट्रीय साहित्य को हिंदी मंच पर लाने का प्रयास है, बल्कि यह रंगशिल्पी की हिंदी प्रतिबद्धता का प्रमाण भी है।"
डॉ. संजय जायसवाल ने रंगशिल्पी की नाट्य साधना को "कोलकाता की हिंदी सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा" बताया और सभी को इस नाटक को देखने का निमंत्रण दिया।
‘उभयचर’ नाटक न केवल एक साहित्यिक प्रयोग है, बल्कि यह सांस्कृतिक सेतु भी है, जिसमें रूसी कथावस्तु, बांग्ला कलाकार, और हिंदी रंगमंच मिलकर एक नए रंगनाट्य क्षितिज का निर्माण कर रहे हैं। यह प्रस्तुति भारतीय रंगमंच में भाषा, शैली और दृष्टिकोण के स्तर पर एक नई लकीर खींचने वाली है।
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