आदतों से परे जीवन | हिंदी कविता | सुशील कुमार पाण्डेय ‘निर्वाक’ की कविता
मनुष्य का जीवन मुक्त और संभावनाओं से भरा है, पर आदतें उसे जकड़ देती हैं। यह कविता बताती है कि जीवन तभी जीवित है जब वह जागरूक, प्रवाही और परिवर्तनशील है।
आदतों से परे जीवन
प्रियजनों,
मनुष्य का जीवन एक अद्भुत संभावना है,
पर वही मनुष्य
अपनी ही बनाई जंजीरों में बँधकर
उस संभावना को खो देता है।
हम सोचते हैं,
हम जी रहे हैं,
पर जीवन कहाँ?
सिर्फ़ आदतें हैं,
सुबह का वही उठना,
वही रास्ता,
वही शब्द,
वही क्रोध,
वही हँसी
मानो यांत्रिक पुर्ज़े घूम रहे हों,
और हम स्वयं अपने ही कैदख़ाने के प्रहरी।
जीवन तो मुक्त था
जीवन तो एक नदी था,
निरंतर बदलता हुआ,
पर आदतें उसे बाँध देती हैं
पत्थरों की तरह,
और नदी सूख जाती है।
सुशील कुमार पाण्डेय ‘निर्वाक’
संपर्क: 25-26, रोज मेरी लेन, हावड़ा - 711101,
मो.: 88 20 40 60 80 / 9681 10 50 70
ई-मेल : aapkasusheel@gmail.com
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