पृथ्वी की पुकार: विकास और संरक्षण के बीच संतुलन का समय

5 जून को मनाया जाने वाला विश्व पर्यावरण दिवस अब केवल प्रतीकात्मक उत्सव नहीं रह गया है, बल्कि यह वैश्विक चेतना का दिन बन गया है। वर्ष 2025 का विषय – 'हमारी भूमि, हमारा भविष्य ' हमें भूमि क्षरण, मरुस्थलीकरण और जल संकट जैसी गंभीर चुनौतियों पर पुनर्विचार करने को बाध्य करता है। इस संपादकीय में पर्यावरणीय संकट की वर्तमान स्थिति, भारत की भूमिका, वैश्विक प्रयासों और आवश्यक नीति-सुधारों पर बात की गई है।

Jun 7, 2025 - 08:10
Jun 7, 2025 - 08:12
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पृथ्वी की पुकार: विकास और संरक्षण के बीच संतुलन का समय
हमारी भूमि, हमारा भविष्य

5 जून, विश्व पर्यावरण दिवस केवल एक प्रतीकात्मक तिथि नहीं, बल्कि समूचे विश्व के लिए आत्मनिरीक्षण का दिवस बन चुका है। यह वह दिन है, जब हम अपने पर्यावरणीय आचरण, नीतियों और दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करते हैं। इस वर्ष 2025 का वैश्विक विषय था: 'हमारी भूमि, हमारा भविष्य' (Land Restoration, Desertification & Drought Resilience) जो हमें इस कटु सच्चाई की ओर ले जाता है कि भूमि क्षरण, मरुस्थलीकरण और जल संकट अब भविष्य की नहीं, वर्तमान की समस्याएँ  हैं।

भूमि का क्षरण: सभ्यता के लिए संकट

संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार, हर साल लगभग 10 मिलियन हेक्टेयर भूमि बंजर हो जाती है। यह केवल मिट्टी की ऊपज क्षमता का ह्रास नहीं है, बल्कि इसके पीछे छिपा है

 खाद्य संकट,

 पारिस्थितिक असंतुलन,

 जलवायु परिवर्तन की तीव्रता में वृद्धि,

 और मानव पलायन जैसी गम्भीर चुनौतियाँ।

IPCC की 2023 की रिपोर्ट चेतावनी देती है कि यदि 2030 तक ग्लोबल वार्मिंग 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक हुई, तो खाद्य, जल और भूमि सुरक्षा पर विकट प्रभाव पड़ेगा।

भारत का परिदृश्य: चुनौती और अवसर

भारत विश्व का सातवां सबसे बड़ा देश होने के साथ-साथ एक जलवायु-संवेदनशील क्षेत्र भी है। यहां की लगभग 30% भूमि किसी न किसी रूप में क्षरण की चपेट में है।

भारत की प्रमुख पर्यावरणीय चुनौतियाँ:

1. भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण: राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में रेत का फैलाव।

2. जल संकट: भूजल स्तर खतरनाक रूप से नीचे जा रहा है विशेषकर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में।

3. वायु प्रदूषण: दिल्ली-एनसीआर सहित 100 से अधिक शहरों की वायु गुणवत्ता अस्वास्थ्यकर स्तर पर है।

4. वनक्षेत्र में गिरावट: अवैध खनन, निर्माण और लकड़ी की कटाई ने जैवविविधता पर गंभीर असर डाला है।

परंतु, भारत में आशा की किरणें भी हैं:

मिशन LiFE (Lifestyle for Environment): प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रस्तावित, यह मिशन लोगों की जीवनशैली को प्रकृति-संगत बनाने का आह्वान करता है।

 इंटरनेशनल सोलर अलायंस (ISA): भारत की अगुवाई में सौर ऊर्जा पर वैश्विक साझेदारी। नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन और ईवी नीति भारत को ऊर्जा संक्रमण की राह पर ले जा रही हैं।

अब क्या करना होगा?

1. नीति और समाज का समन्वय:

केवल सरकारी योजनाओं से परिवर्तन नहीं आएगा। सामूहिक चेतना और स्थानीय भागीदारी आवश्यक है। जैविक खेती, जल संरक्षण, वृक्षारोपण आदि को जन-आंदोलन बनाना होगा।

2. विकास की परिभाषा में परिवर्तन:

GDP बढ़ाने के साथ हमें 'Green GDP' और 'Gross Environmental Product (GEP)' की अवधारणा अपनानी होगी।

3. शहरों का पुनर्चिन्तन:

'स्मार्ट सिटी' केवल डिजिटल नहीं, बल्कि स्मार्ट इनवायरमेंट सिटी भी होनी चाहिए। हरियाली, वर्षाजल संग्रह, अपशिष्ट प्रबंधन और वायु गुणवत्ता मापन अनिवार्य किया जाए।

4. शिक्षा और युवा भागीदारी:

विद्यालयों और कॉलेजों में पर्यावरणीय जागरूकता अनिवार्य पाठ्यक्रम बने। ग्रीन ब्रिगेड जैसी युवा इकाइयाँ हर ब्लॉक स्तर पर बनाई जाएँ।

 5. अंतरराष्ट्रीय उत्तरदायित्व:

विकसित देशों द्वारा ग्रीन फंड और तकनीकी सहायता के वादों को ईमानदारी से लागू किया जाए।

यह समय निर्णायक है

हमें यह स्वीकारना होगा कि हम प्रकृति के स्वामी नहीं, भागीदार हैं। जिस प्रकार हमने तकनीक, उद्योग और शहरीकरण में उन्नति की, अब हमें उसी दृढ़ता से प्रकृति के पुनरुद्धार में लगना होगा। सामूहिक उत्तरदायित्व, नीति-सुधार और नागरिक चेतना ही इस संकट का उत्तर है।

यह केवल एक दिन की अपील नहीं, आने वाली पीढ़ियों की सुरक्षा की लड़ाई भी है।

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I