भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना: क्यों 9 दिसंबर एक वैश्विक आंदोलन बन चुका है

भ्रष्टाचार लोकतंत्र और विकास की सबसे बड़ी चुनौती है। जानें कैसे अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस नागरिकों को सशक्त बनाता है, क्यों पारदर्शिता और शिक्षा अनिवार्य हैं, और यह लड़ाई केवल सरकार नहीं, हर नागरिक की है।

Dec 9, 2025 - 07:13
Dec 8, 2025 - 17:24
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भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना: क्यों 9 दिसंबर एक वैश्विक आंदोलन बन चुका है
अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस पर विशेष

भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना: सिर्फ जिम्मेदारी नहीं, एक अनिवार्य सामाजिक जरूरत

जब न्याय कमजोर पड़ जाए और पारदर्शिता धुंधला जाए, तब भ्रष्टाचार से लड़ाई जरूरी हो जाती है। आज सिस्टम की गलियों में घुसा यह विष हमें याद दिलाता है कि अब हर नागरिक स्वयं प्रहरी बनकर इससे लड़े।

भ्रष्टाचार आज भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए सबसे गहरी और जटिल चुनौती बन चुका है, एक ऐसी चुनौती जो न केवल प्रशासन को खोखला करती है, बल्कि समाज की आत्मा को भी संक्रमित कर देती है। हम अकसर भ्रष्टाचार को ‘कुछ लोगों का अपराध’ समझकर उससे दूरी बना लेते हैं, लेकिन सचाई यह है कि यह बीमारी हमारी रोजमर्रा की जिंदगी के हर मोड़ पर दिखाई देती है। सरकारी दफ्तरों के काउंटर से लेकर अस्पतालों के इमरजेंसी वार्ड तक, स्कूलों की प्रवेश प्रक्रिया से लेकर सड़क निर्माण परियोजनाओं तक जहाँ भी नागरिक और व्यवस्था का सामना होता है, भ्रष्टाचार की छाया मंडराती दिखाई देती है। ऐसे समय में 9 दिसंबर को मनाया जाने वाला अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस (International Anti-Corruption Day) सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि एक वैश्विक चेतना का प्रतीक है। यह दिन याद दिलाता है कि भ्रष्टाचार किसी एक देश या संस्था की समस्या नहीं, यह विश्व की सबसे बड़ी मानवाधिकार चुनौती भी है, विकास की सबसे बड़ी बाधा भी और लोकतंत्र की सबसे बड़ी परीक्षा भी।

भ्रष्टाचार: समाज की नसों में उतर चुका विष

भ्रष्टाचार को केवल रिश्वत लेने-देने तक सीमित समझना उसकी गंभीरता को कम आंकना होगा। यह एक सिस्टमेटिक वायरस है, जो संस्थानों में भरोसा खत्म करता है, सामाजिक ढाँचे को तोड़ता है, और नागरिकों के भीतर असहायता और अन्याय की भावना पैदा करता है। जब आप किसी अपराध के शिकार होकर थाना में FIR लिखवाने जाते हैं और वहाँ आपकी शिकायत नहीं ली जाती, वह भ्रष्टाचार है। जब सरकारी स्कूल के बच्चे किताबें और यूनिफॉर्म पाने से वंचित रह जाते हैं, वह भ्रष्टाचार है। जब अस्पताल में पैसे देकर बिस्तर लेना ‘सामान्य प्रक्रिया’ बन जाती है, वह भ्रष्टाचार है। जब सड़कें हर बरसात में टूट जाती हैं, क्योंकि ठेके में करोड़ों का घोटाला हुआ था, वह भ्रष्टाचार है। जब किसी गरीब को पेंशन, राशन या इलाज का अधिकार पाने के लिए दलालों पर निर्भर होना पड़ता है, वह भ्रष्टाचार की क्रूरता है। यह विष केवल आर्थिक नुकसान नहीं करता; यह लाखों सपनों, अवसरों, अधिकारों और संभावनाओं को मार देता है। संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक और ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल वर्षों से चेतावनी देते आ रहे हैं कि भ्रष्टाचार राजनीति और अर्थव्यवस्था का नहीं, समाज की आत्मा का संकट है और जब समाज की आत्मा घायल होती है, तो लोकतंत्र स्वयं कमजोर पड़ जाता है।

भारत की सचाई: जटिल प्रक्रियाओं का जाल और रिश्वत की मजबूरी

भारत में भ्रष्टाचार की जड़ें प्रशासनिक ढाँचे की जटिलताओं में गहराई से धंसी हुई हैं। एक साधारण नागरिक को भी किसी काम के लिए जन्म प्रमाणपत्र से लेकर खाता-खतौनी, पुलिस FIR/सत्यापन से लेकर सरकारी योजना तक ऐसी प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है, जिनका उद्देश्य अकसर सेवा से अधिक ‘वसूलने’ का अवसर बन जाता है। कुछ प्रमुख कारण- कागजी प्रक्रियाओं की लंबी कतारें। मध्यस्थों और दलालों का नेटवर्क। जवाबदेही की कमी। राजनीतिक-प्रशासनिक सांठगांठ। शिकायत तंत्र का कमजोर होना। भ्रष्टाचार की सामाजिक स्वीकार्यता ‘कुछ न दो तो काम नहीं होगा’। यह स्थिति गरीब और मध्यम वर्ग दोनों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन चुकी है। यह वह वर्ग है जिसे व्यवस्था पर सबसे अधिक निर्भर रहना पड़ता है और वही सबसे अधिक पीड़ित भी होता है।

लेकिन भ्रष्टाचार की कहानी सिर्फ निराशा की नहीं है

अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस हमें निराशा नहीं, बल्कि उम्मीद का संदेश देता है। यह याद दिलाता है कि परिवर्तन केवल कानूनों या संस्थाओं से नहीं आता, वह नागरिकों के साहस, जागरूकता और भागीदारी से आता है। आज डिजिटल पारदर्शिता के युग में ऑनलाइन शिकायत पोर्टल, RTI, सोशल ऑडिट, डिजिटल भुगतान, ई-गवर्नेंस, पब्लिक-डोमेन इन्वेस्टिगेशन नागरिकों को वह ताकत दे रहे हैं, जिसकी वजह से भ्रष्टाचार को छिपाना पहले जितना आसान नहीं रहा। हर नागरिक जब भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाता है, वह अकेला नहीं लड़ता, वह पूरे समाज की ओर से लड़ता है।

शिक्षा: भ्रष्टाचार विरोधी सबसे शक्तिशाली हथियार

भ्रष्टाचार एक दिन में पैदा नहीं होता; यह धीरे-धीरे समाज की मानसिकता में घुलता है। इसीलिए इसका स्थायी समाधान भी मानसिकता में बदलाव से ही संभव है और इसके लिए शिक्षा सबसे बड़ा हथियार है। युवा पीढ़ी को यह सिखाना कि ईमानदारी कमजोरी नहीं, शक्ति है। नैतिकता केवल किताबों की बात नहीं, जीवन का आधार है। अवसर का दुरुपयोग सिर्फ अपराध नहीं, समाज के खिलाफ षड्यंत्र है। गलत बात को चुपचाप सहना भी भ्रष्टाचार का हिस्सा बनना है। जब स्कूल-कॉलेजों में पारदर्शिता, नैतिकता, संविधान और जवाबदेही की शिक्षा दी जाती है, तब आने वाले अधिकारी, नेता और नागरिक भ्रष्टाचार के प्रति अधिक संवेदनशील और जवाबदेह बनते हैं।

कानून महत्वपूर्ण हैं, लेकिन मानसिकता उससे भी बड़ी ताकत है

लोकपाल, लोकायुक्त, सतर्कता आयोग, CAG, RTI ये सभी भ्रष्टाचार विरोधी मजबूत दीवारें हैं। लेकिन अगर समाज खुद ईमानदारी का समर्थन न करे, तो कानून कितने ही कठोर क्यों न हों, भ्रष्टाचार पूरी तरह समाप्त नहीं हो सकता। क्योंकि भ्रष्टाचार केवल ‘अपराध’ नहीं, यह ‘आदत’ भी है। और आदत को तोड़ने के लिए कानून के साथ-साथ सामाजिक नैतिकता की आवश्यकता होती है।

भ्रष्टाचार: एक वैश्विक महामारी, लेकिन उपचार भी वैश्विक है

संयुक्त राष्ट्र ने भ्रष्टाचार को सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने की सबसे बड़ी बाधा बताया है। इसका असर निवेश पर, अर्थव्यवस्था पर, शिक्षा पर, स्वास्थ्य पर, महिला और बाल सुरक्षा पर, सामाजिक समानता पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। भारत सहित तमाम देशों में लोकतंत्र तभी सुरक्षित है, जब नागरिक जागृत हों, संस्थाएँ पारदर्शी हों और व्यवस्था जवाबदेह हो।

अब चुनाव हमारे हाथ में है, चुप रहें या बदलाव बनें

भ्रष्टाचार आज भी जीत रहा है, क्योंकि समाज अकसर चुप रहता है। लेकिन हर बार जब कोई नागरिक रिश्वत देने से इनकार करता है, गलत काम की शिकायत दर्ज करता है, अपने अधिकारों के लिए लड़ता है, पारदर्शिता की माँग करता है तो उस एक कदम से व्यवस्था का चक्र बदलने लगता है। अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस हमें यही संदेश देता है कि परिवर्तन की शुरुआत सरकार से नहीं, नागरिक से होती है। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई किसी एक व्यक्ति, सरकार या संस्था की लड़ाई नहीं, यह हर नागरिक की जिम्मेदारी है। और जब नागरिक उठता है, तो सिस्टम झुकता है।

9 दिसंबर हमें याद दिलाता है कि भ्रष्टाचार से लड़ने की ताकत किसी किताब, कानून या दफ्तर में नहीं, वह ताकत हमारे भीतर है।

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