भारतीय एवं पश्चिमी संस्कृति में फादर्स डे की प्रासंगिकता

फादर्स डे एक ऐसा अवसर है, जब हम पिता के त्याग, समर्पण और अदृश्य स्नेह को पहचानने का प्रयास करते हैं। पश्चिम में यह दिन एक व्यक्तिगत उत्सव बन गया है, जबकि भारत में यह परंपरा, दायित्व और पारिवारिक मर्यादाओं से जुड़ी गहन समझ का अवसर बनता है। इस लेख में हम देखेंगे कि बदलते सामाजिक ढाँचे में पितृत्व की भूमिका किस तरह से पुनर्परिभाषित हो रही है।

Jun 15, 2025 - 11:35
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भारतीय एवं पश्चिमी संस्कृति में फादर्स डे की प्रासंगिकता
फादर्स डे पर विशेष

फादर्स डे हर साल जून के तीसरे रविवार को मनाया जाता है। यह दिन दुनिया भर में पिता के प्रति कृतज्ञता, प्रेम और सम्मान प्रकट करने का माध्यम बन चुका है। जहाँ पश्चिमी देशों में यह दिन उपहारों, संदेशों और छुट्टी के रूप में मनाया जाता है, वहीं भारत जैसे देश में यह धीरे-धीरे एक सामाजिक मनोविज्ञान और सांस्कृतिक विश्लेषण का अवसर बन रहा है। फादर्स डे, जिसे हिंदी में पितृ दिवसभी कहा जाता है, आज दुनिया भर में पिता और पितृत्व को सम्मान देने का एक प्रमुख अवसर बन चुका है। हालाँकि, यह पर्व मूलतः पश्चिमी संस्कृति से आया है, लेकिन भारतीय समाज में पिता के महत्व और उनके प्रति श्रद्धा की परंपरा सदियों पुरानी है।

भारतीय पौराणिक ग्रंथों में पिता का महत्व

भारतीय संस्कृति में पिता को भगवान के समान माना गया है। शास्त्रों में कहा गया है-पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिता हि परमं तपः- अर्थात पिता ही धर्म हैं, पिता ही स्वर्ग हैं और पिता ही सर्वोच्च तपस्या हैं। महाभारत में पिता की महिमा का इस प्रकार बखान किया गया है कि पिता के प्रसन्न होने पर सभी देवता प्रसन्न हो जाते हैं। पिता के वचन का पालन करने वाला कभी दीन-हीन नहीं होता। रामायण में अयोध्या काण्ड में पिता की सेवा और उनकी आज्ञा का पालन करने को सबसे बड़ा धर्म बताया गया है-न तो धर्म चरणं किंचिदस्ति महत्तरम्, यथा पितरि शुश्रुषा तस्य वा वचनक्रिपा

भारतीय पौराणिक कथाओं में पिता-पुत्र संबंधों के कई उदाहरण मिलते हैं। भगवान राम ने अपने पिता दशरथ की आज्ञा का पालन करते हुए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार किया। इसी प्रकार महाभारत में भीष्म पितामह ने अपने पिता शांतनु के वचन का पालन करते हुए आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लिया और हस्तिनापुर की रक्षा की। इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि पिता की आज्ञा और आदर को भारतीय संस्कृति में सर्वोच्च स्थान दिया गया है।

पिता को वटवृक्ष की तरह माना गया है, जिसकी छाया में संतान सुरक्षित और संरक्षित रहती है। शास्त्रों में पिता को हमारे जीवन का गुरु भी माना गया है। माता पहली गुरु होती है, लेकिन पिता से ही हम संघर्ष, पुरुषार्थ और जीवन की सही दिशा सीखते हैं। पिता अपने पुत्र के प्रति उदार और दयालु होता है, और उसकी सबसे बड़ी इच्छा यही होती है कि उसकी संतान उससे भी बेहतर जीवन जिए।

पश्चिमी संस्कृति में फादर्स डे का इतिहास और महत्व

पश्चिमी देशों में फादर्स डे की शुरुआत अपेक्षाकृत नई है। इसकी शुरुआत सोनोरा स्मार्ट डॉड ने 1910 में की थी, जो वॉशिंगटन राज्य की निवासी थीं। वे मदर्स डे से प्रेरित होकर अपने पिता को सम्मान देना चाहती थीं, जो एक सिविल वॉर के अनुभवी सैनिक थे और जिन्होंने छह बच्चों को अकेले पाला था। उनकी पहल से 19 जून 1910 को स्पोकेन में पहला आधिकारिक फादर्स डे मनाया गया। धीरे-धीरे यह परंपरा पूरे अमेरिका और फिर अन्य देशों में फैल गई।

फादर्स डे पश्चिमी समाज में पिता की भूमिका, उनके मार्गदर्शन, अनुशासन, प्रेम और समर्थन को सम्मानित करने का दिन है। यह दिन इस बात को रेखांकित करता है कि पिता बच्चे के विकास, संस्कार और व्यक्तित्व निर्माण में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चाहे वह जैविक पिता हो या जीवन में चुना गया संरक्षक, पिता-तुल्य व्यक्ति रोल मॉडल, रक्षक और मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हैं।

यूरोप के कैथोलिक देशों में फादर्स डे का उत्सव मध्यकाल से ही 19 मार्च को संत जोसेफ के दिन मनाया जाता रहा है, जिन्हें ईसाई परंपरा में यीशु के पिता के रूप में पूजा जाता है। इस प्रकार, पश्चिमी संस्कृति में भी पितृत्व को धार्मिक और सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण माना गया है।

भारतीय और पश्चिमी परिप्रेक्ष्य में फादर्स डे की प्रासंगिकता

भारतीय और पश्चिमी संस्कृति में फादर्स डे की प्रासंगिकता में कुछ समानताएँ और कुछ अंतर हैं। दोनों ही संस्कृतियों में पिता को सम्मान, प्रेम और आदर दिया जाता है। लेकिन, भारतीय संस्कृति में पिता का स्थान कुछ अलग है। यहाँ पिता को भगवान के समान माना जाता है और उनकी आज्ञा का पालन करना सर्वोच्च धर्म माना गया है। पश्चिमी संस्कृति में भी पिता को सम्मान दिया जाता है, लेकिन यह सम्मान अधिकतर उनके प्रति आभार, प्रेम और मार्गदर्शन के लिए होता है, न कि धार्मिक या आध्यात्मिक स्तर पर।

भारतीय पौराणिक ग्रंथों में पिता-पुत्र संबंधों के जो उदाहरण हैं, वे पश्चिमी साहित्य में उतने प्रमुखता से नहीं मिलते। भारतीय परंपरा में पिता की आज्ञा का पालन करना, उनकी सेवा करना और उनके प्रति समर्पण दिखाना एक धार्मिक कर्तव्य है। वहीं, पश्चिमी समाज में फादर्स डे पर पिता को उपहार देना, उनके साथ समय बिताना और उन्हें सम्मानित करना मुख्य ध्येय है।

आधुनिक समय में फादर्स डे की भूमिका

आधुनिक समय में फादर्स डे की प्रासंगिकता और बढ़ गई है। आज के दौर में जब परिवारों में दूरियाँ बढ़ रही हैं, संयुक्त परिवार टूट रहे हैं और पारिवारिक संबंधों में तनाव बढ़ रहा है, फादर्स डे एक ऐसा अवसर है जो पिता और संतान के बीच के बंधन को मजबूत करता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि पिता हमारे जीवन में कितने महत्वपूर्ण हैं, चाहे वह भारतीय संस्कृति के अनुसार भगवान के समान हों या पश्चिमी संस्कृति के अनुसार एक मार्गदर्शक और रक्षक।

भारतीय समाज में आज भी पिता को परिवार का मुखिया और निर्णायक माना जाता है। लेकिन, आधुनिकता के साथ पिता-पुत्र संबंधों में भी बदलाव आया है। आज पिता अपने बच्चों के साथ दोस्ताना रिश्ता बनाने लगे हैं, उनकी भावनाओं को समझने लगे हैं और उनके साथ समय बिताने की कोशिश करते हैं। फादर्स डे जैसे अवसर इस बदलाव को और मजबूत करते हैं।

फादर्स डे की प्रासंगिकता भारतीय और पश्चिमी दोनों ही समाजों में अलग-अलग रूपों में है। भारतीय पौराणिक ग्रंथों में पिता को भगवान के समान माना गया है और उनकी आज्ञा का पालन करना सर्वोच्च धर्म है। वहीं, पश्चिमी समाज में फादर्स डे पिता के प्रति आभार, प्रेम और सम्मान प्रकट करने का एक आधुनिक अवसर है। दोनों ही संस्कृतियों में पिता की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है और फादर्स डे जैसे दिन इस महत्व को और बल देते हैं।

आज के दौर में जब परिवार और समाज में तनाव बढ़ रहा है, फादर्स डे हमें याद दिलाता है कि पिता हमारे जीवन के सबसे बड़े सहारा और मार्गदर्शक हैं। चाहे वह भारतीय पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान के समान हों या पश्चिमी संस्कृति के अनुसार एक प्रेमपूर्ण मार्गदर्शक, पिता का स्थान हमेशा सर्वोच्च रहेगा।

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I