मैं झुकता हूँ | हिंदी कविता | सुशील कुमार पाण्डेय 'निर्वाक' की कविता
‘मैं झुकता हूँ’ एक ऐसी कविता है जो अहंकार और विनम्रता के बीच की महीन रेखा को उजागर करती है। सुशील कुमार पाण्डेय ‘निर्वाक’ बताते हैं कि सच्चा झुकाव वही है जो करुणा, प्रकाश और मानवता के लिए हो, पद या पाखंड के लिए नहीं।

मैं झुकता हूँ
मैं झुकता हूँ,
उस प्रकाश के आगे
जहाँ अंधकार की परछाई भी
सचाई से डरती है।
मैं झुकता हूँ,
उस ज्ञान के वृक्ष के नीचे
जिसकी छाँव में
सदियों की प्यास बुझती है।
मैं झुकता हूँ,
उन साधारण कदमों के सामने
जिनमें अहंकार की धूल नहीं,
बल्कि परिश्रम का उजास बसा है।
मैं झुकता हूँ,
उन आँखों के आगे
जिन्होंने आँसुओं में भी
करुणा को सँभाल रखा है।
पर मैं नहीं झुकता
उनके आगे
जो पद की ऊँचाई पर खड़े होकर
नीचे की ज़मीन को भूल जाते हैं।
मैं नहीं झुकता
उन हाथों के आगे
जिन्होंने स्वर्ण का अहंकार
मानवता की नाड़ी पर रख दिया है।
मैं नहीं झुकता
उन चेहरों के आगे
जिन्होंने पाखंड की परतों में
सत्य को ढँक दिया है।
मैं झुकता हूँ तो केवल वहाँ
जहाँ मनुष्यता मुस्कुराती है,
जहाँ आत्मा का दर्पण
निर्मल और पारदर्शी है।
जहाँ विनम्रता, सेवा और करुणा
जीवन की अंतिम संहिता है।
सुशील कुमार पाण्डेय ‘निर्वाक’
संपर्क: 25-26, रोज मेरी लेन, हावड़ा - 711101, मो,: 88 20 40 60 80 / 9681 10 50 70
ई-मेल : aapkasusheel@gmail.com
What's Your Reaction?






