मेरी असली कीमत | हिंदी कविता | सुशील कुमार पाण्डेय ‘निर्वाक’ की कविता
इस संवेदनशील कविता में कवि सुशील कुमार पाण्डेय ‘निर्वाक’ ने आत्ममूल्य, आत्म-सम्मान और जीवन की सच्ची रोशनी को अभिव्यक्त किया है। जानिए क्यों असली कीमत दूसरों की नज़रों में नहीं, बल्कि हमारे भीतर छिपी है।

मेरी असली कीमत
कभी दिल से निभाए रिश्ते,
कभी आत्मा से किया समर्पण,
फिर भी मिला जवाब,
उपेक्षा और तिरस्कार।
जैसे मेरी मौजूदगी का
कोई हिसाब ही न हो।
सबसे बड़ा दर्द यही है,
जब अपना ही कोई
मेरी मेहनत को अनदेखा करे,
मेरे जज़्बातों को हल्का समझे।
दिल पूछता है,
क्या मैं काबिल नहीं?
क्या मेरी कोई कीमत नहीं?
पर मैं जानता हूँ,
मेरी असली कीमत बाहर नहीं,
मेरे भीतर है।
वह रोशनी,
वह चमक
जो किसी तुलना से नहीं मापी जा सकती।
जिसे देखने के लिए
सच्ची नज़र चाहिए।
अगर कोई मुझे पत्थर समझे
तो दोष मेरा नहीं,
उसकी नज़रों का है
जो हीरे की पहचान नहीं कर पाईं।
तो क्यों मैं अपना वक़्त
उन पर गँवाऊँ
जो मुझे समझने के लायक ही नहीं?
अब मैंने ठान लिया है,
मैं खुद को स्वीकार करूँगा,
अपनी सीमाएँ तय करूँगा,
अपना समय अपनी रूह के निखार में लगाऊँगा।
अब मुझे किसी को साबित कुछ नहीं करना,
मेरी उपलब्धियाँ
एक दिन खुद बोल उठेंगी।
अगर कोई मेरी कद्र नहीं करता
तो समझूँगा,
भगवान ने मेरी राह से
एक बोझ हटा दिया।
अब मेरी यात्रा हल्की है,
अब मेरा आकाश खुला है।
नफ़रत क्यों पालूँ?
वह तो मुझे और तोड़ देगी।
बस इतना करूँगा,
दूरी बना लूँगा,
और अपनी चमक
उनके सामने बिखेरूँगा
जो सच में मेरी रोशनी से
प्रेरित होते हैं।
हाँ,
यह दुनिया हर बार
मेरी कीमत नहीं पहचानेगी,
पर मैं जानता हूँ
मेरा मूल्य अमूल्य है।
और मेरी सबसे बड़ी जीत यही है,
कि मैं अपनी रौशनी में जियूँ,
चाहे कोई देखे या न देखे।
सुशील कुमार पाण्डेय ‘निर्वाक’
संपर्क: 25-26, रोज मेरी लेन, हावड़ा - 711101, मो,: 88 20 40 60 80 / 9681 10 50 70
ई-मेल : aapkasusheel@gmail.com
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