धान से दुनिया तक: भारत का पोषण क्रांति अभियान
पोर्ट मोरेस्बी में पहुँचे 20 टन भारतीय फोर्टिफाइड चावल ने भारत की वैश्विक पोषण नेतृत्व क्षमता को नई पहचान दी है। छत्तीसगढ़ की मिलों से लेकर पीएनजी और अफ्रीका तक, भारत का चावल अब कुपोषण के खिलाफ दुनिया की सबसे बड़ी उम्मीद बन रहा है। पढ़ें यह गहन और असरदार संपादकीय।
धान से दुनिया तक: भारत का पोषण क्रांति अभियान, स्कूल की थाली से वैश्विक मंच तक भारत का नेतृत्व
5 नवंबर 2025 की सुबह पोर्ट मोरेस्बी के बंदरगाह पर उतरे भारतीय कंटेनरों ने दुनिया को एक नया संदेश दिया, खाद्य सुरक्षा अब सिर्फ पेट नहीं भरती, बल्कि भविष्य बनाती है। इन कंटेनरों में भरा था फोर्टिफाइड चावल 20 टन, 20 लाख उम्मीदें, 20 लाख संभावनाएँ। पापुआ न्यू गिनी के बच्चों के लिए यह केवल भोजन नहीं, बल्कि कुपोषण के खिलाफ पहली ठोस जीत थी।
पीएनजी में हर दूसरा बच्चा विकास में पीछे है 49.5% स्टंटिंग और 14.1% वेस्टिंग। ऐसे देश में भारत का फोर्टिफाइड चावल किसी दान की तरह नहीं, बल्कि साझेदारी की तरह पहुँचा, एक ऐसा मॉडल जिसे भारत ने वर्षों की मेहनत, वैज्ञानिक शोध और ठोस नीति के सहारे गढ़ा है।
फोर्टिफाइड चावल: विज्ञान का वह दाना जिसने दुनिया को चौंका दिया
छत्तीसगढ़, रायपुर, कोरबा और बिलासपुर की मिलों में 45 दिनों तक गूँजती मशीनें सिर्फ उत्पादन नहीं कर रही थीं; वे स्वास्थ्य का निर्माण कर रही थीं।
- 100 किलो चावल में सिर्फ 1 किलो एफआरके मिलाकर ही पोषकता 8–10 गुना बढ़ जाती है।
- स्वाद वही, रंग वही, लेकिन प्रभाव क्रांतिकारी।
- हर दाने में आयरन, फोलिक एसिड, विटामिन B-12 कुपोषण के सबसे बड़े दुश्मन।
भारत की 925 फोर्टिफिकेशन मिलों का यह नेटवर्क आज दुनिया की सबसे बड़ी पोषण आपूर्ति शृंखला बन चुका है। एफएसएसएआई के +एफ लोगो से प्रमाणित, डब्ल्यूएचओ-कोडेक्स मानकों पर खरा उतरता यह चावल अब कई देशों की पहली पसंद है।
स्कूल की थाली ने बदला स्कूल का भविष्य
जब पीएनजी के स्कूलों में पहला ट्रक पहुँचा, तो बच्चों की तालियाँ सिर्फ स्वागत नहीं, बदलाव का संगीत बन गईं। जहाँ पहले बच्चे थककर कक्षा में सो जाते थे, अब वे फुटबॉल खेलते हैं, दौड़ते हैं, और पूरी ऊर्जा के साथ पढ़ाई करते हैं। स्थानीय अधिकारियों ने एक उल्लेखनीय बात कही, “यह चावल हमारे बच्चों की हाइट बढ़ाने का सबसे सस्ता और सबसे असरदार तरीका है।” यह वही मिशन है जिसका प्रयोग भारत अपने 800 जिलों की पीडीएस दुकानों में कर चुका है। अब यह मॉडल सीमाओं के बाहर भी फैल रहा है।
भारत का वैश्विक नेतृत्व: चावल से स्वास्थ्य तक
भारत ने पिछले साल कोस्टा रिका को 12 टन एफआरके भेजा था। आज
- पीएनजी
- घाना
- मलावी
- नाइजीरिया
इन सबकी सरकारी एजेंसियाँ रायपुर की मिलों से फोर्टिफाइड चावल ले रही हैं।
अगले तीन महीनों में पीएनजी को 50 टन और भेजा जाएगा।
साल 2026 तक 500 टन का लक्ष्य यह केवल निर्यात आंकड़ा नहीं, बल्कि वैश्विक स्वास्थ्य डिप्लोमेसी का भारतीय मॉडल है।
एपेडा अब पीएनजी में छोटी फोर्टिफिकेशन यूनिट लगाने की तैयारी कर रहा है। इसका मतलब है भारत सिर्फ निर्यातक नहीं, तकनीक का प्रदाता भी है। यह वही भूमिका है जो कभी अमेरिका ने गेहूँ की मदद से निभाई थी। आज वही भूमिका भारत चावल के जरिए निभा रहा है।
छत्तीसगढ़ का धान का कटोरा, अब दुनिया का पोषण कटोरा
छत्तीसगढ़ की धरती पर उगने वाला धान आज दुनिया के बच्चों की थाली में स्वास्थ्य बनकर पहुँच रहा है।
यह कहानी किसानों के पसीने, मिलों के संकल्प और वैज्ञानिकों की तकनीक से लिखी गई है। भारत यह दिखा रहा है कि वैश्विक नेतृत्व युद्ध या हथियारों से नहीं, भोजन और पोषण से हासिल किया जा सकता है।
यह सिर्फ व्यापार नहीं, भारत की पोषण नीति का नया घोषणापत्र है
जब एक देश 20 टन फोर्टिफाइड चावल भेजकर हजारों बच्चों की सेहत बदल देता है, तो यह केवल निर्यात नहीं, यह घोषणा है कि भारत वैश्विक पोषण आंदोलन के केंद्र में है। और अब लक्ष्य स्पष्ट है, 2030 तक 50 देशों के 50 करोड़ बच्चों की थाली में भारत का पोषण। भारत नई दुनिया गढ़ रहा है, जहाँ विकास की भाषा भूख मिटाकर लिखी जाती है जब आने वाले समय में पीएनजी, अफ्रीका और लैटिन देशों के बच्चे बड़े होंगे और उनसे पूछा जाएगा, “तुम्हारे जीवन में पहली बार स्वास्थ्य और ताक़त का बीजारोपण कब हुआ?” तो वे शायद जवाब देंगे, “जब भारत का चावल हमारी थाली में आया।” और यही है असली वैश्विक नेतृत्व जहाँ हथियार नहीं, धान दुनिया बदलता है। जहाँ व्यापार नहीं, पोषण रिश्ते बनाता है। जहाँ मदद नहीं, सहयोग भविष्य गढ़ता है।
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