परमाणु वैज्ञानिक एम.आर. श्रीनिवासन – भारत के ऊर्जा स्वावलंबन के शिल्पकार
डॉ. एम.आर. श्रीनिवासन भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र के अग्रणी वैज्ञानिकों में से एक थे, जिनके नेतृत्व में देश ने स्वदेशी परमाणु तकनीक विकसित की और ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया। उनका योगदान न केवल वैज्ञानिक प्रगति बल्कि नीति-निर्माण में भी अविस्मरणीय है।

भारत की वैज्ञानिक उपलब्धियों में परमाणु ऊर्जा एक प्रमुख स्तंभ है, और इस स्तंभ की नींव को सुदृढ़ करने वालों में डॉ. एम.आर. श्रीनिवासन का नाम अत्यंत आदरपूर्वक लिया जाता है। उनके वैज्ञानिक नेतृत्व, दूरदर्शिता और नीति-निर्माण में सक्रिय भागीदारी ने भारत को न केवल ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में अग्रसर किया, बल्कि वैश्विक मंच पर एक वैज्ञानिक राष्ट्र के रूप में भी प्रतिष्ठा दिलाई।
विकास की आधारशिला:
एम.आर. श्रीनिवासन ने भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर (BARC) और बाद में भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग (AEC) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे 1987 से 1990 तक AEC के अध्यक्ष रहे। इस दौरान उन्होंने भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को वैज्ञानिक शोध से आगे बढ़ाकर व्यावसायिक उत्पादन और राष्ट्रहित में लागू करने की दिशा दी।
उनकी अगुवाई में 'प्रेसराइज्ड हेवी वॉटर रिएक्टर' (PHWR) तकनीक को घरेलू स्तर पर विकसित किया गया, जिससे भारत ने पश्चिमी देशों पर अपनी निर्भरता कम की। यह तकनीकी आत्मनिर्भरता भारत के लिए सामरिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण रही।
नीति निर्माण में योगदान:
डॉ. श्रीनिवासन न केवल प्रयोगशाला के वैज्ञानिक थे, बल्कि वे नीतियों के निर्माण में भी समान रूप से सक्रिय थे। उन्होंने भारत की ऊर्जा नीति को वैकल्पिक स्रोतों की ओर मोड़ा और परमाणु ऊर्जा को दीर्घकालिक समाधान के रूप में प्रस्तुत किया। उनके विचारों में सतत विकास, स्वदेशी तकनीक और पर्यावरणीय संतुलन का अद्भुत समन्वय था।
विरासत:
डॉ. श्रीनिवासन को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया, जो उनके योगदान का राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता है। उन्होंने अपने विचारों, लेखों और नीति सुझावों के माध्यम से युवा वैज्ञानिकों को प्रेरित किया। उनका जीवन संदेश देता है कि विज्ञान केवल प्रयोगशालाओं तक सीमित नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण की एक अनिवार्य आधारशिला है।
आज जब भारत ऊर्जा संकट, जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा सुरक्षा जैसे वैश्विक मुद्दों से जूझ रहा है, डॉ. एम.आर. श्रीनिवासन जैसे वैज्ञानिकों की दूरदर्शिता हमारे लिए मार्गदर्शक बन सकती है। उनका जीवन, वैज्ञानिक उत्कृष्टता और राष्ट्रसेवा का संगम है। भारत को यदि ऊर्जा क्षेत्र में सशक्त बनना है, तो उनकी नीतियों और दृष्टिकोण को अपनाना ही होगा।
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