महाराणा प्रताप : आत्मसम्मान, स्वाभिमान और स्वराज्य के अमर प्रतीक
इस लेख में महाराणा प्रताप की जयंती के अवसर पर उनके जीवन, संघर्ष, शौर्य और स्वाभिमान के अद्वितीय आदर्शों पर प्रकाश डाला गया है। इसमें बताया गया है कि किस प्रकार महाराणा प्रताप ने न केवल मेवाड़ की भूमि की रक्षा की, बल्कि संपूर्ण भारत के लिए आत्मगौरव और स्वतंत्रता का संदेश दिया।

महाराणा प्रताप - यह नाम ही वीरता, त्याग, आत्मबलिदान और स्वराज्य के अद्वितीय संकल्प का प्रतीक है। उनका जीवन एक ऐसी लौ है, जो भारतीय जनमानस को आज भी आत्मसम्मान और मातृभूमि की स्वतंत्रता हेतु संघर्ष की प्रेरणा देता है।
महाराणा प्रताप का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया विक्रम संवत 1597 को कुम्भलगढ़ दुर्ग में हुआ था। वे मेवाड़ के राजा महाराणा उदयसिंह द्वितीय एवं रानी जयवंता बाई के पुत्र थे। इतिहास के अनेक पृष्ठों में अनेक वीर पुरुषों का उल्लेख मिलता है, परंतु प्रताप का चरित्र विलक्षण है। न किसी लालच में झुके, न ही किसी सत्ता के आगे नतमस्तक हुए।
हल्दीघाटी : युद्ध नहीं, आत्मसम्मान की रणभूमि
18 जून 1576 को हल्दीघाटी की रणभूमि में जो कुछ घटित हुआ, वह मात्र एक युद्ध नहीं था, वह भारतीय स्वाभिमान की गाथा थी। अकबर की विशाल सेना के सम्मुख प्रताप की सीमित शक्ति थी, लेकिन मनोबल असीम। चेतक जैसे वीर अश्व ने भी इस समर में अपने प्राणों की आहुति दी।
प्रताप पराजित नहीं हुए, अपितु उन्होंने संघर्ष की वह दीर्घगाथा रची, जो भारतीय इतिहास में अपराजेयता की मिसाल बन गई। उन्होंने घास की रोटियाँ खाकर, जंगलों में रहकर संघर्ष किया, पर मेवाड़ की आज़ादी से समझौता नहीं किया।
राजनीति नहीं, सिद्धांतों की विजय
महाराणा प्रताप की राजनीति का मूल तत्व था - धर्म और मातृभूमि के प्रति निष्ठा। अकबर ने जब अनेक हिंदू राजाओं को अपने दरबार का अंग बना लिया था, तब प्रताप अकेले ऐसे राजपुरुष थे जिन्होंने समर्पण के मार्ग को ठुकरा दिया। उनके जीवन का हर निर्णय सिद्धांतों पर आधारित था, न कि सुविधा और अवसरवाद पर।
आज के भारत के लिए प्रेरणा
आज जब भारत एक वैश्विक शक्ति बनने की ओर अग्रसर है, तब महाराणा प्रताप की जयंती हमें स्मरण कराती है कि आत्मनिर्भरता, स्वाभिमान और सिद्धांतों के प्रति अडिग रहना ही सच्ची राष्ट्रसेवा है। आधुनिक भारत में भ्रष्टाचार, अवसरवाद और मूल्यहीन राजनीति के अंधकार में प्रताप की जीवनगाथा एक आलोकस्तंभ के समान है।
शिक्षा, प्रशासन और सार्वजनिक जीवन में यदि प्रताप जैसे चरित्र की प्रेरणा को आत्मसात किया जाए, तो भारत न केवल भौतिक रूप से ही नहीं, बल्कि नैतिक रूप से भी विश्वगुरु बनने की दिशा में अग्रसर हो सकता है।
महाराणा प्रताप केवल एक ऐतिहासिक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक विचार हैं - स्वतंत्रता का विचार, स्वाभिमान का विचार, और सत्य के लिए अविचल संघर्ष का विचार। उनकी जयंती न केवल श्रद्धांजलि का अवसर है, बल्कि आत्मपरीक्षण का भी क्षण है कि क्या हम आज प्रताप की उस धरोहर के योग्य हैं?
आइए, इस दिन उनके पदचिह्नों पर चलने का संकल्प लें - अन्याय के विरुद्ध मुखर हों, राष्ट्र की अखंडता और गरिमा की रक्षा करें, और अपने कर्मों से भारतभूमि को गौरवशाली बनाएँ।
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