आदि शंकराचार्य जयंती: अद्वैत के प्रकाश से आधुनिक युग तक

आदि शंकराचार्य जयंती भारतीय संस्कृति, धर्म और दर्शन के महान प्रतीक की याद दिलाती है। इस अवसर पर हमें उनके अद्वैत दर्शन और राष्ट्रीय एकता के संदेश को याद करना चाहिए। उनका जीवन और कार्य आज भी प्रासंगिक है और भारत की आध्यात्मिक विरासत को समृद्ध करता है।

May 7, 2025 - 07:54
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आदि शंकराचार्य जयंती: अद्वैत के प्रकाश से आधुनिक युग तक
आदि शंकराचार्य जयंती विशेष

आदि शंकराचार्य जयंती के पावन अवसर पर भारतीय संस्कृति, दर्शन और आध्यात्म के एक ऐसे विराट व्यक्तित्व का स्मरण होता है, जिन्होंने न केवल धर्म और दर्शन को नई ऊर्जा दी, बल्कि समूचे राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने का भी कार्य किया। आदि शंकराचार्य का जन्म 788 ईस्वी में केरल के कालड़ी (कलादी) गाँव में हुआ था। उनके पिता शिवगुरु और माता आर्यम्बा थीं। बचपन से ही असाधारण प्रतिभा के धनी शंकर ने कम आयु में ही वेदों और शास्त्रों में महारत हासिल कर ली थी।

उनकी जीवन यात्रा में कई चमत्कारिक प्रसंग हैं। आठ वर्ष की उम्र में ही उन्होंने संन्यास लेने का संकल्प किया और माँ की अनुमति प्राप्त कर आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़े। उन्होंने गुरु गोविंदपाद से योग और अद्वैत ब्रह्मज्ञान की शिक्षा ली। उनका अद्वैत वेदांत दर्शन-ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या-आज भी दुनिया भर में लोकप्रिय है। उन्होंने भगवद्गीता, उपनिषद और ब्रह्मसूत्र पर विस्तृत टीकाएँ लिखीं, जो आज भी दार्शनिक अध्ययन का प्रमुख आधार हैं।

आदि शंकराचार्य ने भारत के चारों कोनों में चार मठों की स्थापना की-ज्योतिर्मठ (उत्तर), शृंगेरी मठ (दक्षिण), द्वारका शारदामठ (पश्चिम) और गोवर्धन मठ (पूर्व)। इन मठों ने भारतीय ज्ञान परंपरा को सुरक्षित रखने और उसे आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने दशनामी संन्यासी परंपरा की भी स्थापना की, जिसने हिंदू धर्म की रक्षा और प्रसार में योगदान दिया।

उनका जीवन शास्त्रार्थ और संवाद का भी प्रतीक है। उन्होंने तत्कालीन बौद्ध, सांख्य और मीमांसा दर्शनों से शास्त्रार्थ किया और अपने तर्कों से उन्हें प्रभावित किया। मण्डन मिश्र और उनकी पत्नी भारती के साथ हुए शास्त्रार्थ की कथा आज भी प्रेरणादायी है। उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने और सनातन धर्म को पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

आज के समय में, जब दुनिया भौतिकवाद और अर्थहीनता के बीच भटक रही है, आदि शंकराचार्य का जीवन और दर्शन हमें आत्मबोध और सही मार्ग दिखाता है। उनकी जयंती पर हमें उनके विचारों को अपने जीवन में उतारने का संकल्प लेना चाहिए। उनका संदेश था-सत्य की खोज, आत्मज्ञान और मानवता की सेवा। उन्होंने सिखाया कि सभी धर्मों और मतों में समन्वय संभव है और सभी मनुष्यों में एक ही परमात्मा का वास है।

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I