लेपा रादिच : फाँसी के फंदे पर मुस्कान के साथ खड़ी वह किशोरी, जिसे नाजी भी तोड़ नहीं पाए

बोस्निया के एक छोटे से कस्बे बोसांस्का क्रुपा में 17 वर्षीय लेपा रादिच ने इतिहास में वह जगह बनाई, जो साहस, बलिदान और दृढ़ संकल्प का प्रतीक बन गई। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब जर्मन सैनिकों ने उसे पकड़ लिया, तो उन्होंने जीवन दान के बदले अपने साथियों के नाम उजागर करने को कहा। लेकिन लेपा ने मुस्कुराते हुए कहा, “मेरे साथी आपको बताएंगे कि वे कौन हैं - जब वे आपको हराएँगे।” नाजियों ने उसे सार्वजनिक रूप से फाँसी दे दी, पर उसकी आत्मा अजेय रही। यह कहानी उन असंख्य अनसुने नायकों की है, जिन्होंने नाजी अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाई।

Jun 20, 2025 - 18:32
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लेपा रादिच : फाँसी के फंदे पर मुस्कान के साथ खड़ी वह किशोरी, जिसे नाजी भी तोड़ नहीं पाए
लेपा रादिच Lepa Radic : फाँसी के फंदे पर

लेपा रादिच : नाजियों के सामने अडिग साहस की कहानी

इतिहास में बहुतसी ऐसी कहानियाँ हैं, जिनके नायकों को हम भूल चुके हैं। ऐसी ही एक कहानी है लेपा रादिच की  एक किशोरी, जिसने अपने बलिदान से पूरी दुनिया को यह संदेश दिया कि अत्याचार के सामने झुकना मनुष्य की नियति नहीं है।

कौन थी लेपा रादिच?

लेपा रादिच 19 दिसंबर 1925 को तत्कालीन यूगोस्लाविया (आज का बोस्निया और हर्जेगोविना) के बोसांस्का क्रुपा में जन्मी थी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वह यूगोस्लाविया की कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ी और जल्द ही नाजी कब्जे के खिलाफ लड़ाई में सक्रिय हो गई। उसकी उम्र महज 15-16 वर्ष थी जब वह एक प्रशिक्षित लड़ाकू बनी।

नवंबर 1941 में उन्हें और उनके परिवार को उस्ताशा (फासीवादी क्रोएशियाई शासन) ने गिरफ्तार किया, लेकिन कुछ हफ्तों बाद वे अपनी बहन के साथ भाग निकलीं और फिर से प्रतिरोध में शामिल हो गईं।

फरवरी 1943 में, बोसांस्का क्रुपा क्षेत्र में घायल नागरिकों को सुरक्षित स्थान तक पहुँचाते समय, जर्मन सैनिकों ने उन्हें पकड़ लिया। उन्हें तीन दिन तक यातना दी गई, लेकिन उन्होंने अपने साथियों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी।

गिरफ्तारी और फाँसी का दृश्य

1943 में जर्मन सैनिकों ने उसे पकड़ लिया। पूछताछ में नाजी अधिकारियों ने उसे जान बख्शने का वादा किया, बशर्ते वह अपने साथियों के नाम बता दे। लेकिन लेपा ने साफ इनकार कर दिया। 8 फरवरी 1943 को बोसांस्का क्रुपा के मुख्य चौराहे पर उसे फाँसी दी गई।

फाँसी के तख्ते पर खड़े होकर भी उसने कहा: मैंने अपने साथियों को धोखा नहीं दिया और कभी नहीं दूंगी। वे आएँगे और आपके साथियों से बदला लेंगे। लंबी उम्र हो कम्युनिस्ट पार्टी और पार्टिज़ानों की! लोगों, अपनी आज़ादी के लिए लड़ो! दुष्टों के सामने कभी मत झुको! मुझे मार दिया जाएगा, लेकिन ऐसे लोग हैं जो मेरा बदला लेंगे!" 

और उन्होंने कहा, "मैं अपने लोगों की गद्दार नहीं हूँ। जिनके बारे में आप पूछ रहे हैं, वे खुद सामने आएंगे जब वे आप सब दुष्टों का सफाया कर देंगे।"

मरणोपरांत सम्मान

लेपा रादिच को मरणोपरांत ‘पीपुल्स हीरो ऑफ यूगोस्लाविया’ के खिताब से सम्मानित किया गया।

लेपा रादिच की कहानी क्यों महत्वपूर्ण है?

  • युवाओं में जागरूकता और प्रेरणा का प्रतीक
  • महिलाओं की भूमिका केवल युद्ध में ही नहीं, बल्कि विचारधारा की रक्षा में भी अद्वितीय रही
  • नाजी अत्याचारों के खिलाफ साहसी संघर्ष का दुर्लभ उदाहरण

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I