चलती ट्रेन से पूर्व IPS अमिताभ ठाकुर की गिरफ्तारी
यूपी के पूर्व IPS अमिताभ ठाकुर को शाहजहांपुर में चलती ट्रेन से गिरफ्तार कर देवरिया ले जाया गया। 26 साल पुरानी इंडस्ट्रियल प्लॉट डील में धोखाधड़ी व पद के दुरुपयोग के आरोप, X अकाउंट भी सस्पेंड।
सिस्टम से टकराते पूर्व पुलिस IG अमिताभ ठाकुर ट्रेन से गिरफ्तार
मंगलवार देर रात लखनऊ से दिल्ली जा रही लखनऊ सुपरफास्ट एक्सप्रेस जैसे ही शाहजहांपुर जंक्शन पर रुकी, पहले से प्लेटफॉर्म पर मौजूद लखनऊ क्राइम ब्रांच की टीम सादे कपड़ों में सीधे एसी कोच में पहुँची। चश्मदीदों के अनुसार, टीम ने बिना देर किए पूर्व IPS अमिताभ ठाकुर को कोच से उतारा और अपनी हिरासत में ले लिया। कार्रवाई रात लगभग 1:50–2 बजे के बीच हुई बताई जा रही है।
शुरुआत में परिवार और समर्थकों के बीच अपहरण जैसी आशंका फैल गई, क्योंकि कुछ समय तक यह स्पष्ट नहीं था कि उन्हें कौन ले गया और कहाँ ले जाया जा रहा है। बाद में लखनऊ पुलिस ने आधिकारिक रूप से पुष्टि की कि उन्हें देवरिया से जुड़े एक मुकदमे में गिरफ्तार किया गया है।
देवरिया की 26 साल पुरानी ज़मीन डील: केस की जड़ क्या है?
मामला वर्ष 1999 का बताया जा रहा है, जब अमिताभ ठाकुर देवरिया के पुलिस अधीक्षक (SP) थे। पुलिस और मीडिया रिपोर्टों के अनुसार:
- देवरिया के औद्योगिक क्षेत्र में एक प्लॉट उनकी पत्नी नूतन ठाकुर के नाम से लिया गया।
- आरोप है कि लीज़ लेते समय पत्नी का नाम ‘नूतन देवी’ और पति का नाम ‘अभिजात ठाकुर/अभिताप ठाकुर’ लिखा गया, साथ ही पता खैरा, जिला सीतामढ़ी, बिहार दर्शाया गया।
- बाद में यही संपत्ति वास्तविक नाम और पते के आधार पर बेची गई, जिससे कथित रूप से सरकारी विभागों, बैंकों और राज्य सरकार को धोखे में रखा गया।
सितंबर 2025 में लखनऊ के तालकटोरा थाने में संजय शर्मा नामक शिकायतकर्ता की तहरीर पर इस प्रकरण में धोखाधड़ी और पद के दुरुपयोग संबंधित धाराओं में एफआईआर दर्ज की गई। बाद में केस को देवरिया ट्रांसफर किया गया।
एफआईआर में मुख्य आरोप यह भी है कि उस समय जिले के पुलिस कप्तान रहते हुए अमिताभ ठाकुर को इस तरह की कथित अनियमितता पर मुकदमा दर्ज कराना चाहिए था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और अपने पद का इस्तेमाल प्रणाली को प्रभावित करने में किया।
गिरफ्तारी की कानूनी स्थिति
लखनऊ पुलिस के अनुसार, अमिताभ ठाकुर की गिरफ्तारी थाना तालकटोरा, अपराध संख्या 183/25 में की गई, जो देवरिया की जमीन डील से जुड़ा मामला है। गिरफ्तारी शाहजहांपुर रेलवे स्टेशन पर हुई और उसके बाद उन्हें सीधे देवरिया ले जाया गया, जहाँ सदर कोतवाली में उनसे घंटों पूछताछ की गई।
देवरिया में कोतवाली परिसर को व्यावहारिक रूप से ‘छावनी’ में तब्दील कर भारी पुलिसबल की तैनाती की गई और मीडिया व फरियादियों के प्रवेश को सीमित रखा गया, जिससे पूरे घटनाक्रम की संवेदनशीलता और बढ़ गई।
‘मोबाइल बंद, X अकाउंट सस्पेंड’: परिवार की आशंका
अमिताभ ठाकुर की पत्नी और सामाजिक कार्यकर्ता नूतन ठाकुर ने मीडिया को बताया कि रात 1:50 बजे के आसपास ट्रेन में अचानक कुछ लोग कोच में आए और उनके पति को अपने साथ ले गए, जिसके बाद उनका मोबाइल बंद हो गया।
घटना के तुरंत बाद नूतन ठाकुर ने रेलवे और RPF को शिकायत भेजी तथा सोशल मीडिया पर पोस्ट कर ‘अनहोनी’ की आशंका जताई। बाद में सुबह करीब 9:40 बजे तालकटोरा थाने से SHO का फोन आने पर उन्हें जानकारी दी गई कि अमिताभ ठाकुर को देवरिया केस में गिरफ्तार किया गया है और उन्हें वहीं ले जाया जा रहा है।
महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि:
- लखनऊ पुलिस के डीसीपी (पश्चिम) विश्वजीत श्रीवास्तव की ओर से जारी बाइट में न केवल गिरफ्तारी की पुष्टि की गई,
- बल्कि यह भी बताया गया कि अमिताभ ठाकुर और उनकी पत्नी के X (पूर्व ट्विटर) अकाउंट को भी सस्पेंड कराया गया।
परिवार व समर्थक इसे 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' और डिजिटल स्पेस पर भी कार्रवाई के रूप में देख रहे हैं, जबकि पुलिस इसे मामला संबंधित 'कानूनी प्रक्रिया' का हिस्सा बता रही है।
नूतन ठाकुर का पक्ष: “जमीन हमने पहले ही सरेंडर कर दी थी”
एनडीटीवी से बातचीत में नूतन ठाकुर ने कहा कि इंडस्ट्रियल एरिया में जो जमीन ली गई थी, उसमें नाम लिखने में “कुछ एरर” हो गया था, लेकिन बाद में वह जमीन संस्था को वापस सरेंडर कर दी गई थी, क्योंकि प्रोजेक्ट चल नहीं पाया। उनका दावा है कि:
- जमीन से संबंधित संपूर्ण प्रक्रिया काफी पुरानी है,
- परिवार को 25 वर्ष पहले ही उस संपत्ति से कोई प्रत्यक्ष लाभ नहीं रहा,
- और अब इस पुराने प्रकरण को खोलकर ‘सरकार अपने आलोचकों और सिस्टम से सवाल करने वालों को संदेश दे रही है।‘
उनका आरोप है कि जब राज्य सत्ता बहुत ताकतवर हो जाती है, तो वह इस तरह के मुकदमों के ज़रिए असहमति जताने वालों को दबाने की कोशिश करती है।
‘सिस्टम से टकराने वाला अफसर’: पृष्ठभूमि और पुराने विवाद
अमिताभ ठाकुर 1992 बैच के IPS अधिकारी रहे हैं और उत्तर प्रदेश के कई जिलों में SP तथा बाद में IG के पद पर तैनात रहे। 2021 में राज्य सरकार ने उन्हें “पब्लिक इंटरेस्ट” के आधार पर जबरन सेवानिवृत्त किया था।
वे लंबे समय से-
- RTI,
- भ्रष्टाचार के आरोपों,
- और सत्ताधारी नेताओं व अफसरों के खिलाफ शिकायतों और PIL के कारण चर्चा में रहे हैं। 2015 में उन्होंने तत्कालीन सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के खिलाफ कथित धमकी के मामले में शिकायत की थी, जिसके बाद वे निलंबन और विभागीय कार्रवाई की मार झेलते रहे। उनके खिलाफ पहले भी कई आपराधिक व विभागीय मामले दर्ज हुए हैं, जिनमें से कई विवादास्पद रहे और कुछ में उन्हें राहत भी मिली।
हाल के वर्षों में वे ‘आज़ाद अधिकार सेना’ नामक राजनीतिक संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में सक्रिय हैं और प्रदेश सरकार व पुलिस सिस्टम पर लगातार सार्वजनिक सवाल उठाते रहे हैं। इसी पृष्ठभूमि में देवरिया ज़मीन केस में उनकी अचानक हुई गिरफ्तारी को कई राजनीतिक पर्यवेक्षक ‘कानून बनाम सक्रियतावाद’ की नई कड़ी के रूप में देख रहे हैं।
आगे की कानूनी प्रक्रिया और अनुत्तरित सवाल
उपलब्ध जानकारी के अनुसार:
- पुलिस ने उन्हें देवरिया ले जाकर कोतवाली में विस्तृत पूछताछ की है,
- स्थानीय कोर्ट में पेशी की तैयारी की जा रही है,
- और FIR 183/25 में लगाए गए आरोपों की जाँच आगे बढ़ाई जाएगी।
फिलहाल कई प्रश्न अनुत्तरित हैं:
1. 26 साल पुराने लेन–देन में इतने समय बाद अचानक कार्रवाई क्यों तेज की गई?
2. नाम और पते में कथित ‘भ्रम/फर्जीवाड़ा’ का वास्तविक कानूनी प्रभाव कितना गंभीर है, खासकर तब जब परिवार का दावा है कि जमीन वापस सरेंडर कर दी गई थी?
3. गिरफ्तारी के ठीक साथ-साथ दोनों के X अकाउंट सस्पेंड कराए जाने का कानूनी आधार और प्रक्रिया क्या है? क्या यह कदम केवल सुरक्षा/जाँच के मद्देनजर उठाया गया या फिर यह डिजिटल स्पेस में भी नियंत्रण की कोशिश है?
4. क्या जाँच में देवरिया इंडस्ट्रियल क्षेत्र के अन्य प्लॉट आवंटन मामलों को भी खंगाला जाएगा, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि यह ‘सिंगल केस’ है या व्यापक पैटर्न का हिस्सा?
जब तक अदालत में आरोपों की जाँच और बहस नहीं हो जाती, तब तक यह मामला उत्तर प्रदेश में कानून, राजनीति और एक्टिविज़्म की टकराहट का प्रतीक बना रहेगा।
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