बेरोजगारी का संकट: बढ़ते आंकड़े, जटिल कारण और प्रभावी समाधान
भारत में बेरोजगारी एक लंबे समय से चुनौती बनी हुई है, लेकिन बीते कुछ वर्षों में इसके आंकड़े चिंताजनक स्तर पर पहुँच गए हैं। शिक्षित युवाओं से लेकर ग्रामीण श्रमिकों तक, सभी वर्ग इससे प्रभावित हैं। इस सम्पादकीय में हम बेरोजगारी के मुख्य कारणों, इसके सामाजिक और आर्थिक प्रभावों तथा संभावित समाधान पर विस्तृत चर्चा कर रहे हैं।

भारत आज दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है, लेकिन इस आर्थिक विकास के समानांतर बेरोजगारी का संकट दिन-प्रतिदिन गहराता जा रहा है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के अनुसार, अप्रैल 2025 में भारत की औसत बेरोजगारी दर 7.4% पर पहुँच गई है, जो कुछ राज्यों में 10% से भी अधिक है। यह आंकड़ा सिर्फ एक संख्या नहीं है, बल्कि उस युवा आबादी के सपनों का टूटना है, जो वर्षों तक शिक्षा ग्रहण कर योग्य बनती है और अंत में रोजगार के लिए भटकती रहती है।
बेरोजगारी के प्रमुख कारण
शिक्षा और कौशल में असंतुलन: भारत में शिक्षा प्रणाली आज भी largely थ्योरी आधारित है, जिससे छात्रों में रोजगार योग्य कौशल (employability skills) का अभाव रहता है। तकनीकी, डिजिटल और व्यावसायिक प्रशिक्षण की कमी युवाओं को उद्योगों की जरूरतों से अलग कर देती है।
औद्योगिक विकास में असमानता: देश के बड़े हिस्से में MSMEs (माइक्रो, स्मॉल और मीडियम एंटरप्राइजेज) के विकास की रफ्तार धीमी है। वहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी खेती पर ही अधिकांश निर्भर हैं, जहाँ रोजगार की संभावनाएं सीमित हैं।
स्वचालन (Automation) और तकनीकी बदलाव: AI, रोबोटिक्स और ऑटोमेशन के बढ़ते उपयोग से पारंपरिक नौकरियां खत्म हो रही हैं। इससे कम योग्य श्रमिकों को रोजगार मिलना कठिन होता जा रहा है।
सरकारी नौकरियों की सीमित संख्या: हर साल लाखों अभ्यर्थी सरकारी नौकरी के लिए परीक्षा देते हैं, लेकिन सीटें हजारों में ही सीमित रहती हैं। निजी क्षेत्र में भी स्थायी और सुरक्षित नौकरियां घट रही हैं।
जनसंख्या वृद्धि और संसाधनों की कमी: भारत की विशाल जनसंख्या और सीमित संसाधन बेरोजगारी को और अधिक जटिल बनाते हैं।
बेरोजगारी के प्रभाव
आर्थिक असमानता: बेरोजगारी के कारण समाज में अमीर-गरीब की खाई और अधिक गहरी हो रही है।
सामाजिक तनाव और अपराध: लंबे समय तक बेरोजगार रहने वाले युवाओं में हताशा और असंतोष जन्म लेता है, जिससे सामाजिक अशांति और अपराध दर में इज़ाफा होता है।
मानसिक स्वास्थ्य पर असर: बेरोजगारी अवसाद, तनाव और आत्महत्या जैसी गंभीर समस्याओं का कारण भी बन सकती है।
देश की उत्पादकता पर असर: जब बड़ी संख्या में योग्य युवा बेरोजगार रहते हैं, तो देश की आर्थिक प्रगति भी प्रभावित होती है।
✅ समाधान: आगे की राह
शिक्षा में सुधार और स्किल डेवलपमेंट: स्कूल से ही व्यावसायिक शिक्षा (Vocational Training) को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए। सरकार द्वारा चलाए जा रहे “स्किल इंडिया मिशन” जैसे कार्यक्रमों का क्रियान्वयन ज़मीनी स्तर पर प्रभावी बनाया जाए।
MSME सेक्टर का सशक्तिकरण: MSME क्षेत्र रोजगार सृजन का सबसे बड़ा स्रोत बन सकता है। इन्हें सस्ती दरों पर ऋण, डिजिटल प्रशिक्षण और बाजार तक पहुंच प्रदान करनी चाहिए।
नवाचार और स्टार्टअप संस्कृति को बढ़ावा देना: स्टार्टअप इंडिया, डिजिटल इंडिया जैसे अभियानों को सिर्फ शहरों तक सीमित न रखते हुए ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंचाना आवश्यक है। इससे स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजित होंगे।
निजी निवेश को आकर्षित करना: सरल लाइसेंसिंग, कर में रियायत और उद्योग के लिए अनुकूल माहौल बनाकर निजी क्षेत्र में निवेश बढ़ाया जाए।
ग्रामीण रोजगार योजनाओं का विस्तार: मनरेगा (MGNREGA) जैसी योजनाओं का दायरा बढ़ाकर ग्रामीण युवाओं को रोजगार के साथ-साथ कौशल विकास भी कराया जा सकता है।
नई तकनीकों के अनुसार कौशल प्रशिक्षण: AI, डेटा साइंस, ब्लॉकचेन जैसे क्षेत्रों में युवाओं को प्रशिक्षित कर भविष्य की नौकरियों के लिए तैयार करना होगा।
भारत में बेरोजगारी केवल एक आर्थिक समस्या नहीं है, बल्कि यह सामाजिक असंतुलन, मानसिक तनाव और राष्ट्र निर्माण की राह में सबसे बड़ी बाधा बनती जा रही है। सरकार, उद्योग और समाज सभी को मिलकर इस चुनौती से निपटने के लिए दीर्घकालिक रणनीति बनानी होगी। जब देश का हर युवा आत्मनिर्भर होगा, तभी भारत विकसित राष्ट्र बनने के अपने सपने को साकार कर पाएगा।
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