'डॉ. डेथ' देवेंद्र शर्मा: जब एक आयुर्वेदाचार्य बना सीरियल किलर
आयुर्वेदिक चिकित्सा की प्रतिष्ठा को गहरा आघात पहुँचाने वाले डॉ. देवेंद्र शर्मा, जिन्हें 'डॉ. डेथ' के नाम से जाना जाता है, ने अपने अपराधों से चिकित्सा जगत को हिला दिया। बीएएमएस डिग्री धारक शर्मा ने 2002 से 2004 के बीच टैक्सी ड्राइवरों की हत्या कर उनके शव मगरमच्छों से भरे नहरों में फेंक दिए। उन्होंने अवैध किडनी ट्रांसप्लांट रैकेट भी चलाया। उनके इन कृत्यों ने आयुर्वेदिक चिकित्सा की छवि को धूमिल किया है।

आयुर्वेद को किया शर्मसार, अपराध की दुनिया में रच डाले दर्जनों खौफनाक अध्याय
जिस चिकित्सा प्रणाली का मूल उद्देश्य जीवन की रक्षा करना हो, अगर वहीं से कोई व्यक्ति जीवन हरने का सिलसिला शुरू कर दे तो यह न सिर्फ कानून, बल्कि नैतिकता, मानवता और चिकित्सा दर्शन-सबका अपमान है। कुछ ऐसा ही किया डॉ. देवेंद्र शर्मा ने, जिन्हें दुनिया अब 'डॉ. डेथ' के नाम से जानती है।
कौन है डॉ. देवेंद्र शर्मा?
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के रहने वाले।
शिक्षा: बीएएमएस (बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एँड सर्जरी) की डिग्री प्राप्त की।
प्रारंभिक जीवन में कुछ वर्षों तक आयुर्वेदिक डॉक्टर के रूप में काम किया।
परंतु 1990 के दशक के अंत में उनका झुकाव अवैध गतिविधियों की ओर हो गया। शुरुआती तौर पर गैस वितरण कंपनी में निवेश किया, जिसमें उन्हें नुकसान हुआ। इसके बाद उन्होंने अवैध अंग प्रत्यारोपण रैकेट और फिर हत्या का सिलसिला शुरू किया।
अपराधों की विस्तृत शृंखला
किडनी ट्रांसप्लांट रैकेट (1994–2004)
10 वर्षों तक देश के कई शहरों में अवैध रूप से किडनी प्रत्यारोपण करवाता रहा।
दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम, जयपुर, फरीदाबाद में सक्रिय रैकेट।
125 से अधिक किडनी ट्रांसप्लांट में शामिल होने की बात स्वीकार की।
एक ट्रांसप्लांट से ₹5–7 लाख रुपये की कमाई करता था।
टैक्सी ड्राइवर हत्याकांड (2002–2004)
दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में 50 से अधिक टैक्सी चालकों को निशाना बनाया। टैक्सी बुक करता, फिर सुनसान जगह पर हत्या कर देता और शव को मगरमच्छों से भरी नहर में फेंक देता। टैक्सी को बेचकर पैसे कमाता। पुलिस पूछताछ में कहा:'इतनी हत्याएँ कीं कि अब गिनती याद नहीं।'
गिरफ्तारी और सजा
पहली बार 2004 में गिरफ्तार हुआ।
2008 में दोष सिद्ध; विभिन्न मुकदमों में अनेक आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
जुलाई 2020 में पैरोल पर बाहर आया लेकिन फरार हो गया।
6 महीने बाद दिल्ली पुलिस ने उसे फिर से गिरफ्तार किया।
अपराध का मनोविज्ञान: 'एक डॉक्टर जो जीवन नहीं, मृत्यु बाँटता था'
उसकी हत्याएँ केवल लाभ के लिए नहीं थीं, बल्कि एक संगठित और योजनाबद्ध पैटर्न में होती थीं।
मेडिकल ज्ञान का इस्तेमाल वह लाश को छिपाने और दोषमुक्त दिखने के लिए करता था।
अपराधशास्त्रियों के अनुसार, यह मामला 'डार्क ट्रायाड' (साइकोपैथी, मैकियावेलियनिज्म, और नॉर्सिसिज्म) का उदाहरण है।
आयुर्वेद और प्रतिष्ठा पर प्रभाव
डॉ. शर्मा के अपराधों ने आयुर्वेद के समुदाय को गहरा धक्का दिया।
मीडिया में आयुर्वेद और आयुर्वेदाचार्यों की भूमिका पर संदेह उभरा।
चिकित्सा विशेषज्ञों ने माँग की कि आयुर्वेदिक डॉक्टरों पर भी उतनी ही कड़ी निगरानी हो जितनी एलोपैथिक डॉक्टरों पर।
भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद (CCIM) ने बाद में बयान जारी किया कि यह 'व्यक्तिगत अपराध' है, न कि प्रणालीगत दोष।
डॉ. देवेंद्र शर्मा का मामला सिर्फ एक सीरियल किलर की कहानी नहीं है, यह एक प्रश्न है उस नैतिकता और ज़िम्मेदारी पर जो चिकित्सा पेशे से जुड़ी होती है। आयुर्वेद जैसे शास्त्र को मानने वाले लाखों वैद्यों और डॉक्टरों की मेहनत और आस्था को ऐसे व्यक्तियों से अलग पहचाना जाना चाहिए।
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