परछाइयों के पीछे का प्रकाश: वी. के. मूर्ति और सिनेमाई तकनीक के अनसुने नायक
भारतीय सिनेमा की भव्यता जितनी अभिनेता-अभिनेत्रियों से सजी है, उतनी ही गहराई सिनेमैटोग्राफी, एडिटिंग, साउंड और पोस्टर आर्ट जैसे तकनीकी पहलुओं में भी है। वी. के. मूर्ति, हिंदी सिनेमा के पहले सिनेमैटोग्राफर हैं जिन्हें 2008 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाज़ा गया, यह भारतीय सिनेमा के 100 साल के इतिहास में एक तकनीशियन को मिला पहला सर्वोच्च सम्मान था।

भारतीय सिनेमा की भव्यता जितनी अभिनेता-अभिनेत्रियों से सजी है, उतनी ही गहराई सिनेमैटोग्राफी, एडिटिंग, साउंड और पोस्टर आर्ट जैसे तकनीकी पहलुओं में भी है। वी. के. मूर्ति, हिंदी सिनेमा के पहले सिनेमैटोग्राफर हैं जिन्हें 2008 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाज़ा गया, यह भारतीय सिनेमा के 100 साल के इतिहास में एक तकनीशियन को मिला पहला सर्वोच्च सम्मान था। उनकी सिनेमेटिक दृष्टि ने 'प्यासा', 'काग़ज़ के फूल' जैसी गुरुदत्त की फिल्मों को अमर बना दिया। यह रिपोर्टिंग उनके साथ-साथ उन अनदेखे तकनीकी नायकों की भी वकालत करती है जिन्हें आज भी समुचित पहचान नहीं मिली।
पूरा नाम: वेंकटरामा पंडित कृष्णमूर्ति (V.K. Murthy)
जन्म: 26 नवंबर 1923, मैसूर, कर्नाटक
निधन: 7 अप्रैल 2014, बेंगलुरु
पहचान: सिनेमैटोग्राफर, स्वतंत्रता सेनानी, वॉयलिनिस्ट
सम्मान: दादा साहब फाल्के पुरस्कार (2008, प्रदान 2010 में)
सिनेमाई योगदान की झलक:
गुरुदत्त के साथ अमर सहयोग:
आर-पार (1954)
मिस्टर एंड मिसेज़ 55 (1955)
प्यासा (1957) अमर प्रकाश रचनाएँ, फ्रेम दर फ्रेम कविता
काग़ज़ के फूल (1959) भारत की पहली सिनेमास्कोप फिल्म, तकनीकी और भावनात्मक प्रयोगों का उत्कृष्ट उदाहरण
चौदहवीं का चाँद (1960)
साहब बीवी और ग़ुलाम (1962) रोशनी और छाया का सिनेमा
अन्य फिल्में:
प्रमोद चक्रवर्ती के साथ जुगनू, नास्तिक, लव इन टोक्यो, दीदार
गोविंद निहलानी की तमस (1988) प्रकाश और पीड़ा की अभिव्यक्ति
तकनीकी कलाकारों की उपेक्षा और सुधार की ज़रूरत:
2010 में मूर्ति को सम्मानित करने से पहले किसी भी सिनेमैटोग्राफर को दादा साहब फाल्के पुरस्कार नहीं मिला था। यह 97 वर्षों के बाद तकनीकी क्षेत्र के पहले व्यक्ति को मिला सर्वोच्च राष्ट्रीय फिल्म सम्मान था। सिनेमा में पोस्टर आर्टिस्ट, स्टंटमैन, बॉडी डबल, साउंड डिजाइनर, लाइटिंग असिस्टेंट जैसे तकनीकी स्तंभों को आज भी नजरअंदाज किया जाता है। समय आ गया है जब तकनीशियनों के लिए अलग-अलग श्रेणियों में राष्ट्रीय सम्मान और वित्तीय सहयोग योजनाएँ बनाई जाएँ।
उदाहरणात्मक पहल की आवश्यकता:
ऑस्कर जैसे मंचों पर टेक्निकल केटेगरी में होता है उच्च सम्मान
भारत में भी ‘टेक्निकल फिल्म अवॉर्ड्स’ की नियमित शुरुआत जरूरी
स्कूलों और फिल्म संस्थानों में तकनीकी फिल्म शिक्षा को मुख्यधारा में लाना चाहिए
वी. के. मूर्ति की विरासत:
“उन्होंने परदे पर रौशनी नहीं डाली, उन्होंने सिनेमा की आत्मा को उजास दिया।” वे प्रकाश, छाया और भाव को कैमरे से व्यक्त करने वाले पहले भारतीय कलाकारों में से एक थे। आज की डिजिटल और रंगीन दुनिया के बीच उनकी ब्लैक-एंड-व्हाइट कला, कला और तकनीक के बीच एक सेतु है।
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