जनसूचना : स्वराज का रास्ता

जनसूचना स्वराज का रास्ता तभी बन सकती है, जब हम इसे एक अधिकार से आगे बढ़कर एक संस्कृति के रूप में अपनाएं। यह केवल प्रशासन को जवाबदेह बनाने का साधन नहीं, बल्कि लोकतंत्र को जीवंत और समावेशी बनाने का आधार है।

Apr 27, 2025 - 09:53
Apr 27, 2025 - 10:05
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जनसूचना : स्वराज का रास्ता
पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी व जागो टीवी के प्रबंध संपादक सुशील कुमार पाण्डेय

सूचना का अधिकार (RTI) भारत के लोकतांत्रिक ढांचे की एक क्रांतिकारी उपलब्धि है, जो नागरिकों को सत्ता के गलियारों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने का हथियार देता है। 'जनसूचना' न केवल जानकारी तक पहुंच है, बल्कि यह स्वराज का वह रास्ता है, जो नागरिकों को अपनी सरकार और प्रशासन के प्रति सजग और सशक्त बनाता है। आज, जब लोकतांत्रिक मूल्यों पर नई चुनौतियां उभर रही हैं, जनसूचना के महत्व पर गंभीर चिंतन अपरिहार्य हो गया है।

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 ने भारत में नागरिकों को यह शक्ति दी कि वे सरकारी कार्यप्रणाली, नीतियों और निर्णयों की पड़ताल कर सकें। यह कानून न केवल भ्रष्टाचार के खिलाफ एक हथियार है, बल्कि यह सामान्य जन को अपनी आवाज बुलंद करने का साहस भी देता है। लेकिन क्या यह अधिकार वास्तव में स्वराज की दिशा में एक ठोस कदम बन पाया है? यह प्रश्न गंभीर चिंतन मांगता है।

आज RTI के सामने कई चुनौतियां हैं। सूचना देने में देरी, अस्पष्ट जवाब, और कुछ मामलों में सूचना मांगने वालों पर दबाव या धमकियां इसकी प्रभावशीलता को कमजोर करती हैं। इसके अलावा, डिजिटल युग में सूचना का अतिप्रवाह और गलत सूचनाओं का प्रसार भी जनता को भ्रमित करता है। ऐसे में, जनसूचना को स्वराज का आधार बनाने के लिए हमें न केवल कानूनी ढांचे को मजबूत करना होगा, बल्कि नागरिकों में सूचना साक्षरता को भी बढ़ावा देना होगा।

स्वराज का अर्थ केवल स्वशासन नहीं, बल्कि एक ऐसी व्यवस्था है जहां हर नागरिक सशक्त और जागरूक हो। जनसूचना इस दिशा में एक पुल का काम करती है। यह सरकार को जवाबदेह बनाती है और नागरिकों को अपनी भागीदारी बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। लेकिन इसके लिए समाज में जागरूकता, शिक्षा, और सामूहिक प्रयासों की जरूरत है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि सूचना का अधिकार केवल कागजी हक न रहे, बल्कि यह हर गांव, हर गली तक पहुंचे और समाज के सबसे वंचित वर्ग को भी सशक्त करे।

इसके लिए कुछ ठोस कदम उठाए जा सकते हैं। पहला, RTI प्रक्रिया को और सरल, त्वरित और डिजिटल रूप से सुलभ बनाया जाए। दूसरा, सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। तीसरा, स्कूलों और कॉलेजों में सूचना साक्षरता को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए, ताकि नई पीढ़ी इस अधिकार का उपयोग प्रभावी ढंग से कर सके। साथ ही, सरकार को स्वेच्छा से महत्वपूर्ण सूचनाएं सार्वजनिक करने की संस्कृति अपनानी होगी, ताकि पारदर्शिता व्यवस्था का हिस्सा बने।

जनसूचना स्वराज का रास्ता तभी बन सकती है, जब हम इसे एक अधिकार से आगे बढ़कर एक संस्कृति के रूप में अपनाएं। यह केवल प्रशासन को जवाबदेह बनाने का साधन नहीं, बल्कि लोकतंत्र को जीवंत और समावेशी बनाने का आधार है। आइए, इस दिशा में गंभीर चिंतन और सामूहिक प्रयास करें, ताकि जनसूचना के माध्यम से हम सच्चे स्वराज की ओर बढ़ सकें।

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I