इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बिना कारण बताए गिरफ्तारी को अवैध ठहराया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बिना कारण और आधार बताए किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी को अवैध करार देते हुए इस पर सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को निर्देश दिया है कि वे एक सर्कुलर जारी कर सभी पुलिस अधिकारियों को संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों का सख्ती से पालन करने का आदेश दें।

न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने रामपुर के मंजीत सिंह उर्फ इंदर की याचिका पर यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। याचिका में कहा गया था कि याची के खिलाफ थाना मिलाक, रामपुर में धोखाधड़ी सहित अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया था। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर रिमांड मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया, जहाँ से उन्हें जेल भेज दिया गया। याची के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि पुलिस ने गिरफ्तारी के समय न तो लिखित रूप में कारण बताया और न ही आधार स्पष्ट किया। इसके बजाय, पहले से छपे प्रोफार्मा पर गिरफ्तारी मेमो दिया गया, जिसमें कोई विवरण नहीं था। यह संविधान के अनुच्छेद 22(1) और सीआरपीसी की धारा 50 (अब बीएनएसएस की धारा 47) का उल्लंघन है, जो गिरफ्तारी के समय अभियुक्त को कारण बताना अनिवार्य बनाता है। साथ ही, याची को न्यायिक हिरासत में भेजते समय प्रतिवाद का अवसर भी नहीं दिया गया।
हाईकोर्ट ने कहा कि याची के गिरफ्तारी मेमो में न तो आधार और न ही कारण उल्लेखित था, जो संविधान के अनुच्छेद 22(1) और सीआरपीसी की धारा 50 का स्पष्ट उल्लंघन है। कोर्ट ने विधिक सहायता को अभियुक्त का मौलिक अधिकार बताते हुए याचिका स्वीकार कर ली और 26 दिसंबर 2024 के गिरफ्तारी आदेश को रद्द कर दिया। इसके साथ ही, डीजीपी को सर्कुलर जारी कर सभी जिला पुलिस प्रमुखों को वैधानिक प्रावधानों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया।
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