व्हाट्सएप्प पर प्रचारित, प्रसारित हो रहे कुछ झूठे तथ्य
अजय शुक्ला

1. क्या नेहरू ने पटेल के अंतिम संस्कार में किसी के जाने पर रोक लगाई थी?
ऐसा कोई तथ्य सही नहीं है। तथ्यों के मुताबिक, सरदार वल्लभभाई पटेल की मृत्यु 15 दिसंबर 1950 को मुंबई (बॉम्बे) में हुई थी। उनके अंतिम संस्कार में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए थे, जिसमें आम जनता के साथ-साथ कई प्रमुख राजनेता भी थे। ऐसा कोई प्रामाणिक ऐतिहासिक दस्तावेज या समकालीन रिपोर्ट नहीं मिलती, जो यह साबित करे कि नेहरू ने किसी के अंतिम संस्कार में शामिल होने पर रोक लगाई थी। यह सोशल मीडिया तथा फर्जी वेबसाइट्स में प्रसारित होता है, लेकिन इसके समर्थन के लिए न कोई ठोस तथ्य है और न सबूत।
2. क्या नेहरू ने पटेल की मृत्यु के तत्काल बाद कार वापस ले ली थी?
यह भी गलत कहा जाता है। इस तरह की पोस्ट सोशल मीडिया में ही देखी जाती हैं। जैसे कि X, फेसबुक, व्हाट्सएप्प पर कुछ यूजर्स ने लिखा है कि पटेल की मृत्यु के एक घंटे बाद नेहरू ने उनकी सरकारी कार वापस लेने का आदेश दिया था। हालांकि, इसकी पुष्टि के लिए कोई आधिकारिक रिकॉर्ड, पत्राचार, या समकालीन समाचार रिपोर्ट उपलब्ध नहीं है। पटेल उस समय भारत के गृहमंत्री थे, और उनकी मृत्यु के बाद सरकारी संपत्ति का प्रबंधन सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया के तहत हो सकता था। यह कहना कि नेहरू ने व्यक्तिगत रूप से और तुरंत उनकी कार 'वापस ले ली', एक अतिशयोक्ति प्रतीत होती है, जिसका कोई ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं जो इसका समर्थन करता हो।
3. क्या नेहरू ने राष्ट्रपति को पटेल के अंतिम संस्कार में जाने से रोका था?
तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे, और यह सच है कि उनके और नेहरू जी के बीच कुछ मुद्दों पर वैचारिक मतभेद थे, मगर कोई व्यक्तिगत द्वेष नहीं था। कुछ सोशल मीडिया पोस्ट्स में दावा किया जाता है कि नेहरू ने राजेंद्र प्रसाद को पटेल के अंतिम संस्कार में शामिल होने से मना करने की सलाह दी थी। इसका भी कोई रिकॉर्ड नहीं है। राजेंद्र प्रसाद पटेल के अंतिम संस्कार में शामिल हुए। प्रसिद्ध इतिहासकार रामचंद्र गुहा की किताब 'India After Gandhi' और अन्य विश्वसनीय स्रोतों में इस घटना का उल्लेख है, लेकिन यह नहीं कहा गया कि नेहरू ने किसी को 'रोका'था। उस वक्त हालात अच्छे नहीं थे तो संभव है दिल्ली में कुछ वरिष्ठ नेताओं को प्रोटोकॉल या राजनीतिक कारणों से रुकने की सलाह दी गई होगी, परंतु न कैबिनेट का कोई आदेश था और न ही व्यक्तिगत तौर पर कोई पीएमओ का आदेश था। अगर ऐसा हुआ होता तो अखबारों में रिपोर्ट होती, लेकिन वह भी कहीं नहीं है।
इससे साबित होता है कि ये सभी दावे मनगढ़ंत कहानियाँ मात्र हैं। इनकी जड़ें ज्यादातर अफवाहों, सोशल मीडिया पोस्ट्स, और राजनीतिक प्रचार में दिखती हैं, न कि प्रामाणिक ऐतिहासिक साक्ष्यों में। पटेल की मृत्यु के बाद नेहरू ने उनके योगदान को सार्वजनिक रूप से सराहा था। नेहरू ने अपने जीते जी कभी इंदिरा गांधी को न सांसद बनाया और न ही सरकार में कोई पद दिया, मगर पटेल के बेटे और बेटी दोनों को लगातार संसद भेजा। नेहरू ने संसद में पटेल को श्रद्धांजलि देते हुए कहा था कि वे "भारत के एकीकरण के महान शिल्पी थे"। पंडित नेहरू ने उनके नाम पर योजनाएँ भी शुरू कीं।
इसलिए, यह कहना सही नहीं होगा कि नेहरू ने पटेल के अंतिम संस्कार में किसी के जाने पर रोक लगाई, उनकी कार छीन ली, या राष्ट्रपति को जबरन रोका। ये दावे ऐतिहासिक तथ्यों से नहीं, बल्कि किंवदंतियों और अतिरंजित कथाओं पर आधारित हैं। चरित्रहनन की साजिश मात्र है।
स्रोत: अजय शुक्ला, फेसबुक वाल
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