ध्रुवीकरण का धंधा
आज सभी पार्टियाँ अपने-अपने निजी हितों की खातिर कुछ एजेंडा तय करती हैं और उसे भोली-भाली जनता पर थोप देती हैं। उनके एजेंडे में बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, मँहगाई, देश की आर्थिक नीति न होकर क्रमशः जाति और धर्म होते हैं।

ग्रेट डे फ्रांसिस्को ने कहा था- "कपटी व्यक्ति के लिए यह फायदेमंद होता है कि भोले लोगों की संख्या इतनी ज्यादा है। इसी कारण उसके समर्थकों का समूह विशाल बनता है, जो उसकी सफलता की गारंटी है।"
यह बात, आजकल हमारे देश में राजनीति और धर्म के ठेकेदार बने बैठे लोगों पर बिलकुल फिट बैठती है। सभी पार्टियाँ अपने-अपने निजी हितों की खातिर कुछ एजेंडा तय करती हैं और उसे भोली-भाली जनता पर थोप देती हैं। उनके एजेंडे में बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, मँहगाई, देश की आर्थिक नीति न होकर क्रमशः जाति और धर्म होते हैं। जिनकी जड़ें आम जनमानस के मन-मस्तिष्क में बहुत गहरे रूप में जमी होती हैं। जाति और धर्म हमारे समाज का सबसे नाजुक पक्ष होता है। जिसके आधार पर ये समाज का ध्रुवीकरण कर अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकते हैं।
कभी औरंगजेब, कभी बाबर, कभी राणा सांगा, कभी पद्मावती तो कभी मंदिर-मस्जिद आए दिन हमारे समाज में यही मुद्दे देखने को मिल रहे हैं।
हमारे देश के युवाओं के हाथ में रोजगार के नाम पर अल्लाहु-अकबर, जय श्री राम के नारे और राणा सांगा की तलवारें लहरा रही हैं और इस रोजगार को हवा देने का काम कर रही है हमारे नेताओं की फिसलती हुई जुबान।
आधुनिकीकरण ने हमारे जीवन को सरल तो बनाया है, लेकिन पहले की अपेक्षा हमारी जीवनशैली को काफी मँहगी भी बना दिया है। उस पर से मँहगाई ने हमारी मूलभूत सुविधाओं के साथ-साथ शिक्षा व्यवस्था को भी काफी मँहगा कर दिया है। निम्नवर्ग की तो बात ही छोड़िए, एक मध्यमवर्गीय परिवार के लिए भी अपने बच्चों की अच्छी शिक्षा देना काफी भारी पड़ रहा है। समय के साथ बढ़ती बेरोजगारी से हमारा युवा निराश और दिशाहीन होता जा रहा है। इसी का फायदा उठाते हैं हमारे नेतागण।
ज्यादा से ज्यादा रोजगार के अवसर उपलब्ध करा, उन्हें देश निर्माण में लगाने के बजाय अपने निजी स्वार्थ के लिए जाति और धर्म का मसला उछाल कर वोटों का ध्रुवीकरण कर रहे हैं।
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