हिंदी पत्रकारिता की विरासत और बंगाल का योगदान

हिंदी पत्रकारिता की गौरवशाली विरासत उस मशाल की तरह है, जिसने सत्य, साहस और निष्पक्षता की रोशनी से भारतीय समाज को आलोकित किया। इस विरासत की जड़ें बंगाल की उस पावन धरती में गहरे धँसी हैं, जहाँ से 1826 में ‘उदंत मार्तंड’ के रूप में हिंदी पत्रकारिता ने पहला कदम रखा।

Apr 13, 2025 - 09:35
 0
हिंदी पत्रकारिता की विरासत और बंगाल का योगदान
पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ फोटो स्रोत: एजेंसी (फाइल फोटो)

हिंदी पत्रकारिता की गौरवशाली विरासत उस मशाल की तरह है, जिसने सत्य, साहस और निष्पक्षता की रोशनी से भारतीय समाज को आलोकित किया। इस विरासत की जड़ें बंगाल की उस पावन धरती में गहरे धँसी हैं, जहाँ से 1826 में उदंत मार्तंडके रूप में हिंदी पत्रकारिता ने पहला कदम रखा। बंगाल ने न केवल साहित्य और संस्कृति को समृद्ध किया, बल्कि हिंदी पत्रकारिता को वह वैचारिक उफान, सामाजिक जागरूकता और स्वतंत्रता की चेतना दी, जो आज भी इसके मूल में जीवंत है। बंगाल, वह भूमि है जिसने न सिर्फ साहित्य और संस्कृति को समृद्ध किया, बल्कि हिंदी पत्रकारिता को भी वह साहस, निष्पक्षता और सत्यनिष्ठा दी, जो आज भी पत्रकारिता का प्रेरणा स्रोत है।

पत्रकारिता का काम सत्य को उजागर करना है, न कि उसे छिपाना महात्मा गांधी का यह कथन जो हिंदी पत्रकारिता की आत्मा को प्रतिबिंबित करता है, को शायद उन्होंने 1920 में कही थी, लेकिन बंगाल में जन्मी हिंदी पत्रकारिता ने इसे अपने जन्म यानी 30 मई 1826 में कोलकाता से प्रकाशितउदंत मार्तंडके हिंदी पत्रकारिता की नींव से ही आत्मसात कर रखा था। बंगाल में जन्मी पत्रकारिता ने औपनिवेशिक शासन की सचाइयों को जनता तक पहुँचाया, जब सत्ता तथ्यों को दबाने में लगी थी। उदंत मार्तंडऔर समाचार सुधावर्षणजैसे प्रकाशनों ने बंगाल के पुनर्जागरण की लहर को हिंदी भाषी समाज तक ले जाकर स्वतंत्रता संग्राम में बंगाल और हिंदी पट्टी को एक सूत्र में बाँधा। यह सत्य की वह मशाल थी, जो बंगाल की धरती पर जली और पूरे देश को रोशन करती रही।

 भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने कहा था,कलम की ताकत तलवार से बड़ी होती है, बशर्ते वह सच्चाई के लिए उठेबंगाल का पुनर्जागरण सती प्रथा, बाल विवाह, विधवा विवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ संघर्ष और शिक्षा के प्रसार ने हिंदी पत्रकारिता को समाज जागरण का हथियार बनाया। इसने न केवल सामाजिक सुधारों की आवाज उठाई, बल्कि हिंदी भाषी प्रवासियों की चुनौतियों को भी उजागर किया। कोलकाता जैसे शहरों में बिहार, उत्तर प्रदेश और राजस्थान से आए लोगों की समस्याओं को यह पत्रकारिता दर्पण की तरह प्रतिबिंबित करती रही। बंगाल की सांस्कृतिक समावेशिता ने इसे वह संवेदनशीलता दी, जो रवींद्रनाथ टैगोर के कथन पत्रकार का धर्म समाज का दर्पण बनना है, न कि उसका मालिक को साकार करती है।

पत्रकारिता वह पहला मसौदा है जो इतिहास लिखता है फिलिप एल. ग्राहम की यह उक्ति बंगाल में हिंदी पत्रकारिता की ऐतिहासिक भूमिका को रेखांकित करती है। हिंदी के पहले समाचार पत्र से लेकर स्वतंत्रता संग्राम तक निकले भारतमित्र, दैनिक विश्वमित्र जैसे समाचार पत्रों ने औपनिवेशिक दमन, सामाजिक सुधार और स्वतंत्रता की चाह को अपने पन्नों में इसे ऐतिहासिक दस्तावेज की तरह दर्ज किया। बंगाल की साहित्यिक समृद्धि टैगोर, बंकिमचंद्र जैसे मनीषियों की प्रेरणा ने इसे इतिहास का प्रथम मसौदा बनाने की शक्ति दी। उस कठिन दौर में इन पत्रों ने बंगाल के प्रवासी हिंदी भाषी समुदाय की माँगों को प्रशासन तक पहुँचाकर सत्ता को जवाबदेह बनाने की पूरी कोशिश की, जैसा कि जॉर्ज ऑरवेल ने कहा है कि सच्ची पत्रकारिता सत्ता से सवाल करती है, न कि उसकी चापलूसी हिंदी पत्रकारिता की सबसे बड़ी पूँजी इसकी विश्वसनीयता है, जिसे इसने बड़े लंबे समय में अर्जित किया है। आज के इस डिजिटल युग में फेक न्यूज की चुनौतियों और बाजारवाद के इस कठिन दौर में भी समाचार पत्रों ने जो अपनी साख बनाए रखी है वह हिंदी पत्रकारिता के लंबे समय में अर्जित किए गए यश ही हैं। "पत्रकारिता वह आवाज है जो उन लोगों के लिए बोलती है, जिनकी आवाज दबा दी जाती है।" अनिता प्रताप का यह कथन बंगाल में हिंदी पत्रकारिता की संवेदनशीलता को रेखांकित करता है। इसने हिंदी भाषी प्रवासी जो बंगाली संस्कृति में अल्पसंख्यक थे, की आवाज को बुलंद किया। उनकी समस्याओं जैसे रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोटी, कपड़ा, रहन-सहन को हिंदी की पत्रकारिता ने उजागर किया। बंगाल की समावेशी संस्कृति ने इसे वंचितों का सहारा बनाया। गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे मूर्धन्य पत्रकारों को इसने सत्य को लिखने का साहस दिया।

बंगाल ने हिंदी पत्रकारिता को निष्पक्षता में पक्षधरता का संतुलन सिखाया। यह निष्पक्षता सत्य की खोज का आधार रही, और पक्षधरता समाज के हाशिए पर खड़े लोगों की आवाज बनी। समाचार सुधावर्षणजैसे प्रकाशनों ने सामाजिक न्याय के लिए कलम से लड़ाई लड़ी, तो वहीं हिंदी पत्रकारिता ने स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी विचारों को हिंदी पट्टी तक पहुँचाया। डिजिटल युग में भी यह विरासत फेक न्यूज़ के खिलाफ ढाल है। जैसा कि जोसेफ पुलित्जर  ने कहा है कि पत्रकारिता का लक्ष्य केवल समाचार देना नहीं, बल्कि समाज को शिक्षित और प्रेरित करना है बंगाल ने हिंदी पत्रकारिता को वह दृष्टि दी, जो समाज को बेहतर बनाने के लिए समर्पित रही। हिंदी पत्रकारिता की यह धरोहर केवल अतीत की कहानी नहीं, बल्कि भविष्य का मार्गदर्शन भी है। बंगाल ने इसे वह मिट्टी दी, जिसमें सत्य की जड़ें गहरी हुईं, और वह आकाश दिया, जिसमें स्वतंत्रता के सपने उड़े। आज, जब पत्रकारिता की विश्वसनीयता और निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं, बंगाल की यह विरासत हमें याद दिलाती है कि पत्रकारिता का मूल्य सत्य और न्याय के लिए खड़ा होना है। आइए, हम इस धरोहर को संजोएँ और डिजिटल युग में इसे और सशक्त बनाएँ। हिंदी पत्रकारिता की यह विरासत और बंगाल का पत्रकारिता में यह ऐतिहासिक योगदान ही पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ बनाता है।

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow

सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I