उत्तर प्रदेश पुलिस पर तानाशाही का साया

उत्तर प्रदेश पुलिस, जो जनता की सुरक्षा और कानून व्यवस्था की रक्षा के लिए जिम्मेदार है, हाल के वर्षों में कई बार ऐसे कृत्यों में लिप्त पाई गई है, जो लोकतंत्र पर तानाशाही का साया डालते हैं।

Apr 15, 2025 - 10:08
Apr 24, 2025 - 06:15
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उत्तर प्रदेश पुलिस पर तानाशाही का साया

लोकतंत्र वह व्यवस्था है जो जनता की स्वतंत्रता, समानता और जवाबदेही पर टिकी होती है। लेकिन जब कानून के रखवाले ही लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर करने लगें, तो यह चिंता का विषय बन जाता है। उत्तर प्रदेश पुलिस, जो जनता की सुरक्षा और कानून व्यवस्था की रक्षा के लिए जिम्मेदार है, हाल के वर्षों में कई बार ऐसे कृत्यों में लिप्त पाई गई है, जो लोकतंत्र पर तानाशाही का साया डालते हैं।

उत्तर प्रदेश पुलिस का इतिहास गौरवशाली रहा है। 1863 में स्थापित यह विश्व की सबसे बड़ी पुलिस सेवाओं में से एक है, जिसका आदर्श वाक्य है-सुरक्षा आपकी, संकल्प हमारा। लेकिन हाल के कुछ घटनाक्रम इस आदर्श को धूमिल करते हैं। फर्जी मुठभेड़ों, मानवाधिकारों के उल्लंघन और असहमति को कुचलने की घटनाएँ सामने आई हैं। कई मामलों में पुलिस पर आरोप लगा है कि वह सत्ता का आनंद उठा रही है, जिससे स्वतंत्र और निष्पक्ष कानून व्यवस्था पर सवाल उठे हैं।

 

उदाहरण के लिए, कई बार पुलिस पर बिना ठोस सबूत के लोगों को फँसाने, हिंसा का सहारा लेने और अल्पसंख्यकों या कमजोर वर्गों के खिलाफ भेदभावपूर्ण रवैया अपनाने के आरोप लगे हैं। ऐसी घटनाएँ न केवल कानून के शासन को कमजोर करती हैं, बल्कि जनता के बीच पुलिस के प्रति अविश्वास को भी बढ़ाती हैं। जब पुलिस को न्यायालय और जल्लाददोनों की भूमिका में देखा जाने लगे, जैसा कि हम हाल के दिनों में प्रयागराज कमिश्नरेट अंतर्गत थानों में मानवाधिकार उल्लंघन की कुछ घटनाओं को देख सकते हैं, जो पुलिस की कार्यशैली और जवाबदेही पर सवाल उठातें हैं। और जो लोकतंत्र की जड़ों को खोखला करने में रीढ़ की हड्डी बन रहे हैं।

नीचे कुछ प्रमुख उदाहरणों का उल्लेख किया गया है, जो विभिन्न स्रोतों और शिकायतों पर आधारित हैं। ये मामले संदर्भ के रूप में लिए गए हैं, और इनमें से कुछ की पुष्टि के लिए स्वतंत्र जाँच की आवश्यकता हो सकती है।

1.     हंडिया थाने में कथित उत्पीड़न और उगाही (2024)
हंडिया थाना प्रभारी धर्मेन्द्र कुमार दूबे, ब्रज किशोर गौतम, इमामगंज चौकी प्रभारी अमित कुमार  और अन्य अधिकारियों पर स्थानीय निवासी मनोज कुमार पाण्डेय और उनके परिवार ने गंभीर आरोप लगाए हैं। मनोज के अनुसार, 13 अगस्त 2024 को उनके घर पर जमीन कब्जे के लिए हमला हुआ, जिसमें पुलिस ने निष्क्रियता दिखाई और उल्टा उन्हें धमकाया। थाना प्रभारी ब्रज किशोर गौतम ने कथित तौर पर मनोज पाण्डेय को गुंडा एक्ट में जेल भेजने, परिवार को गाड़ी से कुचलवाकर पूरे परिवार की हत्या करवाने की धमकी और माँ-बहन को अपमानजनक गालियाँ दी। पुलिस ने शिकायत दर्ज करने के लिए 50,000 रुपये की माँग की, और शिकायत दर्ज न करने की बात कही। इसके अलावा, 26 अक्तूबर 2023 से उनके परिवार पर कई हमले हुए, जिनमें पुलिस ने कई शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं की। 16 फरवरी 2024 को घटित एक घटना पर साल भर बाद राष्ट्रीय महिला आयोग के हस्तक्षेप पर भी उनके द्वारा दिए गए शिकायत पर एफआईआर न लिखकर महिला आयोग में किए गए शिकायत पर एफआईआर लिखी गई, जोकि महिला आयोग के निर्देशों के विरूद्ध है। इन घटनाओं में महिलाओं के साथ अभद्रता और मारपीट के आरोप थे।

 

2.     कोराँव थाने में महिला के साथ दुर्व्यवहार (अप्रैल 2025)
कोराँव थाना क्षेत्र में एक महिला को आधी रात पुलिस द्वारा घर से उठाकर थाने में बंद करने और पिटाई का आरोप लगा है। परिजनों ने पुलिस कमिश्नर से शिकायत की, जिसके बाद डीसीपी ने संज्ञान लेते हुए महिला को रिहा करवाया। इस घटना ने स्थानीय स्तर पर काफी चर्चा बटोरी और पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए।

3.     कौधियारा थाने में बलात्कार का मामला (फरवरी 2025)
कौधियारा थाना क्षेत्र में एक महिला सुश्री बिंद, ने चार लोगों पर बलात्कार का आरोप लगाया। शिकायत के अनुसार, आरोपियों ने पिस्तौल सटाकर अपराध किया, लेकिन पुलिस ने केवल एक आरोपी को गिरफ्तार किया। इस मामले में पुलिस पर कार्रवाई में ढिलाई और पीड़िता के साथ असंवेदनशील व्यवहार के आरोप लगे हैं।

4.     दलित व्यक्ति की हत्या और पुलिस की भूमिका (अप्रैल 2025)
प्रयागराज में एक दलित व्यक्ति को कथित तौर पर काम करने से मना करने पर जिंदा जलाने की घटना सामने आई। मृतक के परिजनों ने आरोप लगाया कि पुलिस ने बिना उनकी सहमति के शव का अंतिम संस्कार करवा दिया और प्रेम प्रसंग का हवाला देकर आरोपियों को बचाने की कोशिश की। इस मामले ने मानवाधिकार उल्लंघन और पुलिस की संदिग्ध भूमिका को उजागर किया।

5.     पुलिस हिरासत में दुर्व्यवहार (जून 2023)
एक पुरानी घटना में, रेहान शाह नामक व्यक्ति को गौ हत्या के मामले में पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया था। उनके परिवार ने आरोप लगाया कि पुलिस ने उन्हें बुरी तरह पीटा, बिजली का झटका दिया और अपमानजनक व्यवहार किया। रिहाई के लिए 5,000 रुपये की रिश्वत भी माँगी गई। इस मामले में पाँच पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई की गई, लेकिन यह घटना पुलिस हिरासत में होने वाले दुर्व्यवहार को दर्शाती है।

6.     पुलिस द्वारा लूटपाट, पेट में चाकू मारने और झूठे केस में नाम जोड़कर जेल (26 अगस्त 2024) हंडिया थाना प्रभारी धर्मेन्द्र कुमार दूबे द्वारा पीड़ित दिनेश चंद्र पाण्डेय को रात लगभग 8 बजे सादे ड्रेस में गए उपनिरीक्षक सुमित आनंद के नेतृत्व में उन्हें व उनकी पत्नी के साथ मारपीट और  उनकी पत्नी व बेटी के साथ दुर्व्यवहार, घर में लूटपाट का अपराध कारित किया गया, और दिनेश को चाकू मारकर पाँच महिना पूर्व बने झूठे केस में नाम जोड़कर जेल भेज दिया। 

यह स्थिति इसलिए और खतरनाक है, क्योंकि पुलिस लोकतंत्र की रक्षा करने वाली संस्था है। यदि यही संस्था अधिकारियों के दुरुपयोग का औजार बन जाए, तो जनता के मौलिक अधिकार-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, निष्पक्ष सुनवाई का हक, और जीवन का अधिकार खतरे में पड़ जाता है। पुलिस सुधारों की बात लंबे समय से हो रही है, लेकिन धरातल पर बदलाव नजर नहीं आता। स्वतंत्र निगरानी तंत्र की कमी और जवाबदेही का अभाव इस समस्या को और गहरा रहा है।

 

समाधान के लिए जरूरी है कि पुलिस को मनमाने ढंग से कानून विरूद्ध कार्य करने पर कड़े दंड से दण्डित करने के उदाहरण प्रस्तुत किया जाए और भ्रष्ट पुलिस अधिकारियों से पुलिस प्रशासन को मुक्त किया जाए। स्वतंत्र जाँच एजेंसियों को मजबूत करना, पुलिस प्रशिक्षण में मानवाधिकारों पर जोर देना और जनता के साथ संवाद बढ़ाना आवश्यक है। साथ ही, नागरिकों को भी जागरूक होकर अपनी आवाज उठानी होगी, ताकि लोकतंत्र का हर स्तंभ अपनी जिम्मेदारी निभाए।

उत्तर प्रदेश पुलिस को अपने गौरवशाली अतीत को याद रखते हुए यह सुनिश्चित करना होगा कि वह तानाशाही का प्रतीक न बने, बल्कि लोकतंत्र की रक्षक बनी रहे। यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो पुलिस तंत्र पर यह अदृश्य खतरा और भी गहरा सकता है।

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I