चन्द्रकोणा में शौचालय की हालत शर्मनाक: टूटा दरवाज़ा बना महिलाओं की गरिमा पर सवाल

पश्चिम मेदिनीपुर के चंद्रकोणा रोड स्थित सारेंगा जाने वाली सड़क पर एक पुलिस फांड़ी के पास महिलाओं के लिए बनाए गए शौचालय का दरवाजा लंबे समय से टूटा हुआ है। स्वच्छ भारत और निर्मल बंगाल जैसे अभियानों के बीच यह स्थिति प्रशासन की गंभीर उदासीनता को उजागर करती है। स्थानीय निवासियों ने कई बार संबंधित अधिकारियों को अवगत कराया, फिर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। यह न केवल स्वच्छता बल्कि महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा का प्रश्न बन गया है।

Jul 18, 2025 - 20:18
Jul 18, 2025 - 21:08
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चन्द्रकोणा में शौचालय की हालत शर्मनाक: टूटा दरवाज़ा बना महिलाओं की गरिमा पर सवाल
शौचालय का टूटा दरवाज़ा

चन्द्रकोणा (पश्चिम मेदिनीपुर): स्वच्छ भारत अभियान और निर्मल बंगाल जैसी सरकारी योजनाओं की ज़मीनी हकीकत को बयां करता है चन्द्रकोणा का यह मामला, जहाँ एक पुलिस फांड़ी के समीप महिलाओं के लिए बनाए गए सार्वजनिक शौचालय का दरवाजा महीनों से टूटा पड़ा है। यह स्थिति महिलाओं की निजता, सुरक्षा और सम्मान तीनों पर सवाल खड़े करती है।

स्थानीय निवासियों की चिंता:

स्थानीय निवासी गोपाल लोधा ने इस संबंध में प्रशासन से कई बार अनुरोध किया है। उनका कहना है, "समाज में महिलाओं की गरिमा सर्वोपरि है। प्रशासन को चाहिए कि वह जल्द से जल्द दरवाज़ा ठीक कराए और ऐसी लापरवाही दोबारा न हो।"

प्रशासन की चुप्पी:

पंचायत समिति के अध्यक्ष, बीडीओ, और स्थानीय क्षेत्र प्रमुख तक यह मामला पहुंचाने के बावजूद अब तक कोई मरम्मत नहीं की गई है। यह दर्शाता है कि निचले स्तर पर जनता की शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है।

प्रमुख समस्याएँ:

 निजता का अभाव: खुले दरवाजे के कारण महिलाएं असहज और असुरक्षित महसूस करती हैं।

 स्वच्छता का संकट: टूटा दरवाजा शौचालय की नियमित सफाई व रख-रखाव को भी प्रभावित करता है।

 महिला गरिमा पर हमला: यह एक सामाजिक-सांस्कृतिक मुद्दा है, जो महिलाओं के आत्मसम्मान से जुड़ा है।

संभावित समाधान:

1. तत्काल मरम्मत: प्राथमिकता के आधार पर दरवाज़े की मरम्मत कराई जाए।

2. स्थायी निगरानी: सार्वजनिक शौचालयों के लिए पंचायत या नगर निकाय स्तर पर निगरानी समिति बनाई जाए।

3. महिला हित केंद्रित नीतियाँ: महिला उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता और सुरक्षा के दृष्टिकोण से डिज़ाइन में बदलाव हो।

4. जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही: प्रशासनिक अधिकारियों और निर्वाचित प्रतिनिधियों को इस प्रकार की शिकायतों पर समयबद्ध कार्यवाही के लिए बाध्य किया जाए।

बात केवल एक दरवाजे की नहीं है, बात उस सोच की है जो महिलाओं की आवश्यकताओं और गरिमा को प्राथमिकता नहीं देती। यदि पुलिस चौकी के पास ऐसी स्थिति है तो दूरदराज़ क्षेत्रों की कल्पना की जा सकती है। यह ज़रूरी है कि जिम्मेदार तंत्र तुरंत हरकत में आए और महिला सम्मान को संरक्षित करे।

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तारकेश कुमार ओझा तारकेश कुमार ओझा पिछले तीन दशकों से पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में सक्रिय पत्रकार हैं। कोलकाता से प्रकाशित दैनिक विश्वमित्र से पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले ओझा पऱख, महानगर, चमकता आईना, प्रभात खबर और वर्तमान में दैनिक जागरण में वरिष्ठ उपसंपादक के रूप में कार्यरत हैं। आप समसामयिक विषयों, व्यंग्य, कविता और कहानियों के साथ-साथ ब्लॉग लेखन में भी सक्रिय हैं। माओवादी आंदोलन से लेकर महेंद्र सिंह धोनी के संघर्षपूर्ण दिनों तक, आपकी कई रिपोर्टें चर्चा में रही हैं। आपको मटुकधारी सिंह हिंदी पत्रकारिता पुरस्कार, लीलावती स्मृति सम्मान सहित कई बेस्ट ब्लॉगर अवार्ड प्राप्त हो चुके हैं।