ग्रामीण भारत की आर्थिक क्रांति का नया आधार: बकरी पालन मॉडल

राष्ट्रीय बकरी शिखर सम्मेलन 2025 ने बकरी पालन को ग्रामीण भारत की आर्थिक क्रांति का एक मजबूत स्तंभ बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाया है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण, तकनीकी नवाचार, और सरकारी-निजी सहयोग के साथ यह मॉडल न केवल ग्रामीण परिवारों की आय बढ़ाएगा, बल्कि महिलाओं और छोटे किसानों के लिए सशक्तीकरण का नया रास्ता भी खोलेगा। यह समय है कि बकरी पालन को एक संगठित और आधुनिक उद्योग के रूप में विकसित किया जाए, जो ग्रामीण भारत के भविष्य को उज्जवल बनाए।

Apr 17, 2025 - 17:55
May 4, 2025 - 18:42
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ग्रामीण भारत की आर्थिक क्रांति का नया आधार: बकरी पालन मॉडल
बकरी पालन

बकरी पालन, ग्रामीण भारत में आजीविका का एक सशक्त साधन बनने की ओर अग्रसर है। हाल ही में आयोजित राष्ट्रीय बकरी शिखर सम्मेलन 2025 में सरकार, निजी क्षेत्र, और किसानों ने मिलकर इस क्षेत्र को संगठित, टिकाऊ, और लाभकारी बनाने के लिए एक दूरदर्शी योजना तैयार की। यह मॉडल न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देगा, बल्कि लाखों किसानों और विशेष रूप से महिलाओं के लिए आर्थिक सशक्तीकरण का मार्ग प्रशस्त करेगा।

सम्मेलन का आयोजन और भागीदारी : Passing Gifts, जो Heifer International की सहयोगी संस्था है, ने इस सम्मेलन का आयोजन किया। इसमें ICAR-केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (CIRG), GIZ India, सरकारी विभाग, निजी कंपनियाँ, किसान संगठन, वित्तीय संस्थान, और जमीनी स्तर के उद्यमी शामिल हुए। यह मंच बकरी पालन से जुड़ी चुनौतियों का समाधान खोजने और इस क्षेत्र को एक व्यवस्थित उद्योग के रूप में विकसित करने के लिए समर्पित था।

बकरी पालन- संभावनाएँ और चुनौतियाँ : वर्तमान में भारत में 14.8 करोड़ बकरियाँ हैं, और लगभग 3.3 करोड़ ग्रामीण परिवारों की आजीविका इस क्षेत्र पर निर्भर है। फिर भी, बकरी पालन कई समस्याओं से जूझ रहा है, जैसे:

  • पशु चिकित्सा सेवाओं की कमी
  • गुणवत्तापूर्ण चारे की अनुपलब्धता
  • कम उत्पादकता
  • बाजार तक सीमित पहुंच

सम्मेलन का उद्देश्य इन समस्याओं का समाधान ढूंढना और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ बकरी पालन को आधुनिक बनाना था।

सरकार और विशेषज्ञों की राय : पशुपालन और डेयरी विभाग की सचिव अल्का उपाध्याय ने बकरी पालन को ग्रामीण भारत के आर्थिक परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण साधन बताया। उन्होंने सुझाव दिया कि एक राष्ट्रीय संसाधन संगठन की स्थापना की जाए, जो नस्ल सुधार, तकनीकी सहायता, और ज्ञान साझा करने जैसे कार्यों को समन्वित करे। उन्होंने पश्चिम बंगाल के ब्लैक बंगाल बकरी क्लस्टर का उदाहरण देते हुए बताया कि क्लस्टर-आधारित मॉडल और डेटा-संचालित दृष्टिकोण से टीकाकरण, कृत्रिम गर्भाधान, और बाजार पहुंच में उल्लेखनीय सुधार हो सकता है। इससे निजी निवेश को आकर्षित करने और योजनाओं के प्रभाव को बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।

CIRG के निदेशक डॉ. मनीष कुमार चतली नेविकसित भारत रोडमैप फॉर द बकरी सेक्टरप्रस्तुत किया। इस रणनीति का लक्ष्य है:

  • उत्पादकता में वृद्धि
  • जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन
  • विज्ञान और तकनीक आधारित नवाचारों के माध्यम से मूल्य श्रृंखला का विकास

उन्होंने जोर देकर कहा कि वैज्ञानिक और टिकाऊ तरीकों से बकरी पालन ग्रामीण अर्थव्यवस्था में क्रांति ला सकता है।

इंडो-जर्मन सहयोग और योजनाओं का एकीकरण : GIZ India ने बताया कि इंडो-जर्मन परियोजनाओं के तहत बकरी पालन, मछली पालन, और सहजन जैसे क्षेत्रों में आजीविका मॉडल विकसित किए गए हैं। इन मॉडलों को मनरेगा और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) जैसी योजनाओं के साथ जोड़कर राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार दिया जा सकता है। इससे अधिक से अधिक ग्रामीण परिवार लाभान्वित होंगे।

प्रमुख चर्चाएँ और सुझाव : सम्मेलन में कई महत्वपूर्ण विषयों पर विचार-विमर्श हुआ:

  • छोटे किसानों के लिए सुलभ वित्त व्यवस्था
  • ग्रामीण क्षेत्रों में पशु चिकित्सा सेवाओं की पहुंच
  • निजी और सरकारी क्षेत्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा
  • महिलाओं और छोटे किसानों को सशक्त बनाने के लिए बकरी-आधारित आजीविका मॉडल

Passing Gifts की कार्यकारी निदेशक रीना सोनी ने कहा कि उनका लक्ष्य महिलाओं और छोटे किसानों को केंद्र में रखकर बकरी पालन को एक स्थायी और लाभकारी आजीविका बनाना है। GIZ की वरिष्ठ सलाहकार मीखा हन्ना पॉल ने इसे एक सामूहिक प्रयास बताते हुए सभी सहयोगियों का आभार व्यक्त किया। GIZ के फरहाद वानिया ने बकरी पालन, कृषि, और एग्रोफॉरेस्ट्री में जर्मन सहयोग को और मजबूत करने की प्रतिबद्धता दोहराई।

 

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