रिटायर्ड आईएएस अशोक खेमका: ईमानदारी और साहस के पर्याय
अशोक खेमका की कहानी एक ऐसे अधिकारी की है, जिसने सत्ता और भ्रष्टाचार के सामने कभी घुटने नहीं टेके। उनके 57 तबादले और रॉबर्ट वाड्रा जैसे हाई-प्रोफाइल मामलों में साहसिक कदम नौकरशाही में ईमानदारी की कीमत को दर्शाते हैं। उनकी सेवानिवृत्ति एक युग का अंत हो सकता है, लेकिन वकालत के क्षेत्र में उनकी नई शुरुआत यह संकेत देती है कि वे जनहित के लिए अपनी लड़ाई जारी रखेंगे।

परिचय
अशोक खेमका, 1991 बैच के हरियाणा कैडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी, न केवल अपने 34 वर्षीय करियर में 57 तबादलों के लिए जाने जाते हैं, बल्कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी अटूट लड़ाई और सिस्टम में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के लिए भी प्रसिद्ध हैं। 30 अप्रैल 2025 को, अपने 60वें जन्मदिन पर, खेमका ने हरियाणा परिवहन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव के पद से सेवानिवृत्ति ली। उनकी यात्रा नौकरशाही में ईमानदारी, साहस और चुनौतियों का एक अनूठा दस्तावेज है। यह रिपोर्ट उनके जीवन, करियर, प्रमुख उपलब्धियों, विवादों और भविष्य की योजनाओं पर प्रकाश डालती है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
अशोक खेमका का जन्म 30 अप्रैल 1965 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ था। उन्होंने अपनी शैक्षणिक यात्रा में उत्कृष्टता का परिचय दिया। उनकी शैक्षणिक उपलब्धियों में शामिल हैं:
बी.टेक (कंप्यूटर साइंस): 1988 में आईआईटी खड़गपुर से।
पीएचडी (कंप्यूटर साइंस): टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर), मुंबई से।
एमबीए (बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन और फाइनेंस): विशेषज्ञता के साथ।
एलएलबी: पंजाब विश्वविद्यालय से, जो उन्होंने अपनी सेवा के दौरान पूरा किया।
एमए (अर्थशास्त्र): अतिरिक्त शैक्षणिक उपलब्धि।
इन शैक्षणिक उपलब्धियों ने खेमका को न केवल तकनीकी और प्रशासनिक दक्षता प्रदान की, बल्कि कानूनी और आर्थिक मामलों में भी उनकी समझ को मजबूत किया।
प्रशासनिक करियर: तबादलों की एक लंबी शृंखला
अशोक खेमका का करियर तबादलों की कहानी के लिए कुख्यात रहा। 34 साल की सेवा में 57 तबादले, यानी औसतन हर सात महीने में एक तबादला, उनके लिए एक रिकॉर्ड बन गया। ये तबादले अक्सर उनके भ्रष्टाचार विरोधी रुख और सत्ता के दबाव के खिलाफ खड़े होने के परिणामस्वरूप हुए।
खेमका ने हरियाणा में सात मुख्यमंत्रियों ओम प्रकाश चौटाला, भजन लाल, बंसी लाल, भूपेंद्र सिंह हुड्डा, मनोहर लाल खट्टरऔर नायब सिंह सैनी के अधीन काम किया। उनके तबादले कांग्रेस, भाजपा और आईएनएलडी सरकारों में समान रूप से हुए, जो दर्शाता है कि उनकी ईमानदारी और सिद्धांतों ने किसी भी राजनीतिक दल के साथ समझौता नहीं किया। उन्हें अक्सर कम प्रभावशाली विभागों जैसे पुरातत्व, अभिलेखागार, और स्टेशनरी में भेजा गया, जिसे वे स्वयं 'अपमान' और 'साइडलाइन' करने का प्रयास मानते थे। 2019 में, पुरातत्व विभाग में स्थानांतरण के बाद, खेमका ने सोशल मीडिया पर लिखा, 'ईमानदारी का पुरस्कार अपमान है।'
प्रमुख उपलब्धियाँ और विवाद
रॉबर्ट वाड्रा-डीएलएफ लैंड डील (2012)
खेमका ने 2012 में राष्ट्रीय सुर्खियां बटोरीं, जब उन्होंने गुरुग्राम (तब गुड़गांव) में रॉबर्ट वाड्रा (कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के दामाद) की कंपनी स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी और रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ के बीच 3.5 एकड़ जमीन के सौदे की म्यूटेशन (स्वामित्व हस्तांतरण) को रद्द कर दिया। यह जमीन 2008 में 7.5 करोड़ रुपये में खरीदी गई थी और कांग्रेस सरकार द्वारा व्यावसायिक कॉलोनी लाइसेंस मिलने के बाद 58 करोड़ रुपये में डीएलएफ को बेची गई। खेमका ने इसे "शम" (धोखाधड़ी) करार दिया और राजनीतिक प्रभाव का आरोप लगाया।
इस कदम के तुरंत बाद उनका तबादला कर दिया गया, और उन पर अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर सेवा नियमों के उल्लंघन का आरोप लगा। हालांकि, इस मामले ने हरियाणा और राष्ट्रीय राजनीति में भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी छवि को मजबूत किया। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) अभी भी इस सौदे की जांच कर रहा है।
भर्ती और अन्य अनियमितताओं पर सवाल
हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग में अपने संक्षिप्त कार्यकाल के दौरान, खेमका ने भर्ती प्रक्रियाओं में संभावित अनियमितताओं को उजागर किया, जिसके परिणामस्वरूप उनका फिर से तबादला हुआ।
सतर्कता विभाग में सेवा की पेशकश
2023 में खेमका ने तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को पत्र लिखकर सतर्कता विभाग में सेवा देने की इच्छा जताई, जिसमें उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई का वादा किया। हालांकि, उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हुई।
सेवानिवृत्ति और भविष्य की योजनाएँ
30 अप्रैल 2025 को, खेमका ने हरियाणा परिवहन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव के पद से सेवानिवृत्ति ली। उनकी सेवानिवृत्ति को हरियाणा आईएएस ऑफिसर्स एसोसिएशन ने मुख्य सचिव अनुराग रस्तोगी की उपस्थिति में औपचारिक विदाई के साथ चिह्नित किया।
सेवानिवृत्ति के बाद, खेमका ने वकालत में कदम रखने की योजना बनाई है। उन्होंने कहा, "मैं बार काउंसिल में वकील के रूप में प्रैक्टिस के लिए लाइसेंस के लिए आवेदन करूंगा।" यह निर्णय उनकी कानूनी शिक्षा (एलएलबी) और सार्वजनिक सेवा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। वे एक नई भूमिका में भी जनहित के लिए काम करना चाहते हैं।
सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव
खेमका की कहानी ने नौकरशाही में ईमानदारी और जवाबदेही के महत्व को रेखांकित किया है। उनके 57 तबादलों ने सिस्टम में सुधार की आवश्यकता पर बहस छेड़ी है। सोशल मीडिया पर उनकी सेवानिवृत्ति को एक ने 'ईमानदार क्रांति का पड़ाव' करार दिया। एक उपयोगकर्ता ने लिखा, "हमें क्षमा कीजिएगा अशोक खेमका जी, यह देश आप जैसे ईमानदार अफसरों को संभाल नहीं पाया।"
उनके रॉबर्ट वाड्रा-डीएलएफ सौदे को रद्द करने के फैसले ने हरियाणा की राजनीति को प्रभावित किया और कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के आरोपों को बल दिया।
चुनौतियाँ और आलोचनाएँ
खेमका को उनके करियर में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा:
तबादलों की अधिकता: उनके तबादले अक्सर प्रतिशोधात्मक माने गए, जिसने उनकी नीति-निर्माण में प्रभावशीलता को सीमित किया।
आरोप और जाँच: रॉबर्ट वाड्रा मामले में उन पर नियम तोड़ने का आरोप लगा, हालाँकि बाद में 2015 में भाजपा सरकार ने उनके खिलाफ प्रमुख दंडात्मक चार्जशीट को हटा दिया।
साइडलाइनिंग: उन्हें अक्सर कम महत्वपूर्ण विभागों में रखा गया, जिसे वे अपमानजनक मानते थे।
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