सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों को समन भेजने की प्रवृत्ति पर जताई चिंता, न्याय प्रशासन की स्वतंत्रता दाँव पर, स्वत: लिया संज्ञान
सुप्रीम कोर्ट ने जाँच एजेंसियों द्वारा वकीलों को उनके मुवक्किलों के मामलों के संबंध में समन भेजने की बढ़ती प्रवृत्ति पर स्वत: संज्ञान लेते हुए गंभीर चिंता व्यक्त की है। यह घटनाक्रम तब सामने आया जब ईडी ने वरिष्ठ अधिवक्ताओं अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल को समन भेजा था, जिस पर देशभर के बार निकायों ने विरोध दर्ज किया और बाद में ईडी को समन वापस लेने पड़े।

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि वकीलों को उनके मुवक्किलों के मामलों के संबंध में जाँच एजेंसियों द्वारा सीधे तलब करना न्याय व्यवस्था की स्वतंत्रता को कमजोर करता है। यह टिप्पणी उस समय आई जब अदालत ने एक वकील को गुजरात पुलिस द्वारा भेजे गए समन पर याचिका पर सुनवाई की।
जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस एन कोटिस्वर सिंह की पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि वकील केवल पेशेवर सलाह दे रहा है, तो उसे समन भेजना न केवल अवैधानिक है, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया के लिए खतरा भी है। अदालत ने इस मामले को व्यापक संदर्भ में देखा और कहा कि इससे पूरे वकालत पेशे की स्वतंत्रता पर आघात होता है।
इस संदर्भ में, अदालत ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, बार काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन मनन कुमार मिश्रा तथा अन्य प्रमुख बार निकायों से मार्गदर्शन माँगा है।
न्यायालय ने दो मुख्य प्रश्नों को चिह्नित किया:
1. क्या वकील को केवल मुवक्किल को सलाह देने के लिए तलब किया जा सकता है?
2. यदि वकील की भूमिका संदेहास्पद हो तो भी क्या उसे सीधे समन भेजा जाना उचित है या न्यायिक निगरानी आवश्यक है?
यह घटनाक्रम अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल जैसे वरिष्ठ अधिवक्ताओं को प्रवर्तन निदेशालय द्वारा समन भेजे जाने के बाद सामने आया है, जिससे बार निकायों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। बाद में ईडी ने समन वापस लिए और अपने अधिकारियों को वकीलों को समन न भेजने का निर्देश भी दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने इस संवेदनशील मामले को भारत के मुख्य न्यायाधीश के पास उचित निर्देशों के लिए भेजा है और याचिकाकर्ता को अंतरिम राहत प्रदान करते हुए सभी समन और नोटिसों पर रोक लगा दी है।
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