डॉ. अर्चना मजूमदार पर दर्ज एफआईआर पर रोक
राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) की सदस्य डॉ. अर्चना मजूमदार के खिलाफ नर्केलडांगा पुलिस स्टेशन (कोलकाता) में एक एफआईआर दर्ज की गई थी। यह एफआईआर 2024 में दर्ज की गई और इसे राजनीतिक रूप से प्रेरित बताया गया है।

राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) की सदस्य डॉ. अर्चना मजूमदार के खिलाफ 2024 में कोलकाता के नर्केलडांगा पुलिस स्टेशन में एक एफआईआर दर्ज की गई थी। यह एफआईआर उस समय दर्ज हुई जब डॉ. मजूमदार एक कथित गैंगरेप मामले की जांच के लिए कोलकाता के एक लॉ कॉलेज गई थीं। उन्होंने पुलिस और प्रशासन पर पीड़िता और उसके परिवार से मिलने में असहयोग का आरोप लगाया था। डॉ. मजूमदार ने आरोप लगाया कि पुलिस ने न केवल उन्हें पीड़िता से मिलने से रोका, बल्कि अपराध स्थल पर जाने की अनुमति भी नहीं दी।
एफआईआर के कारण
डॉ. अर्चना मजूमदार ने पुलिस के रवैये की आलोचना की थी और कहा था कि पुलिस जानबूझकर पीड़िता और उसके परिवार को छुपा रही है। उन्होंने कहा कि एक संवैधानिक संस्था की सदस्य होने के बावजूद, उन्हें अपना कर्तव्य निभाने से रोका गया। इस घटनाक्रम के बाद, पुलिस ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की, जिसे डॉ. मजूमदार ने ‘राजनीतिक रूप से प्रेरित’ बताया।
हाई कोर्ट की दखल और रोक
डॉ. मजूमदार ने कोलकाता हाई कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें एफआईआर को चुनौती दी गई। कोलकाता हाई कोर्ट ने 9 जुलाई 2025 को इस एफआईआर पर अंतरिम रोक (Stay) लगा दी। इसका अर्थ है कि अब इस एफआईआर के तहत आगे कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं होगी, जब तक कि अदालत अंतिम निर्णय नहीं देती। डॉ. मजूमदार ने सोशल मीडिया पर लिखा कि यह उनके संवैधानिक दायित्वों के निर्वहन के दौरान दर्ज की गई ‘राजनीतिक रूप से प्रेरित’ एफआईआर है, और अदालत के फैसले से उन्हें अंतरिम राहत मिली है। डॉ. अर्चना मजूमदार का पक्ष, उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा कि वह अपने संवैधानिक कर्तव्यों का पालन करती रहेंगी और न्यायपालिका में उनका पूर्ण विश्वास है। उनका कहना है कि इस प्रकार की कार्रवाई संवैधानिक संस्थाओं की स्वतंत्रता और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए काम करने वालों के लिए हतोत्साहित करने वाली है।
कानूनी और सामाजिक संदर्भ
राष्ट्रीय महिला आयोग के सदस्य के रूप में, डॉ. मजूमदार का दायित्व है कि वह महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कार्य करें और पीड़िताओं को न्याय दिलाने में मदद करें।
उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर और उस पर हाई कोर्ट की रोक, दोनों ही घटनाएं इस बात को रेखांकित करती हैं कि संवैधानिक संस्थाओं और उनके प्रतिनिधियों को स्वतंत्र रूप से कार्य करने में बाधाएं आ सकती हैं, विशेषकर जब मामला संवेदनशील या राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हो।
यह मामला राज्य और केंद्र के बीच अधिकारों की खींचतान और संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता के सवाल को भी सामने लाता है। फिलहाल, डॉ. अर्चना मजूमदार के खिलाफ दर्ज एफआईआर पर कोई कार्रवाई नहीं होगी, जब तक कि अदालत अंतिम आदेश नहीं देती। हाई कोर्ट का आदेश डॉ. मजूमदार के लिए अंतरिम राहत है। यह मामला न्यायिक प्रक्रिया के अधीन है और अंतिम निर्णय अदालत द्वारा ही लिया जाएगा। यह प्रकरण संवैधानिक संस्थाओं की भूमिका, उनकी स्वतंत्रता और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए उठाए गए कदमों के संदर्भ में महत्वपूर्ण है।
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