डॉ. कमल किशोर गोयनका: प्रेमचंद के अप्रतिम शोधक और हिंदी साहित्य के सजग संरक्षक
डॉ. कमल किशोर गोयनका समकालीन हिंदी आलोचना और शोध के उन विशिष्ट रचनाकारों में अग्रगण्य हैं, जिन्होंने विशेष रूप से प्रेमचंद साहित्य का गहराई से अनुशीलन कर एक ऐतिहासिक कार्य किया। उनका लेखन केवल अकादमिक विमर्श तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने साहित्य, संस्कृति और समाज के अंतर्संबंधों को उजागर किया। वे प्रेमचंद के सबसे महत्वपूर्ण जीवनीकार, पाठालोचक और संपादक माने जाते हैं। प्रस्तुत आलेख उनके समग्र साहित्यिक योगदान, विमर्शात्मक दृष्टिकोण और हिंदी साहित्य में उनकी महनीय भूमिका पर प्रकाश डालता है।

डॉ. कमल किशोर गोयनका: शोध, साहित्य और संवेदना की त्रयी
हिंदी साहित्य का यदि गंभीरतापूर्वक इतिहास लिखा जाए, तो डॉ. कमल किशोर गोयनका का नाम न केवल आलोचक और संपादक के रूप में ही नहीं, बल्कि हिंदी साहित्य के इतिहास-संरक्षक के रूप में भी लिया जाएगा। उनका साहित्यिक जीवन प्रेमचंद की खोज, उनकी रचनाओं के पुनर्पाठ और इतिहास के पुनर्लेखन को समर्पित रहा है।
प्रेमचंद के प्रति जीवन समर्पित
डॉ. गोयनका को सबसे अधिक प्रसिद्धि उनके प्रेमचंद विषयक कार्य के कारण मिली। उन्होंने न केवल प्रेमचंद की रचनाओं को शोधपूर्वक पुनर्प्रकाशित किया, बल्कि उनके जीवन, भाषा, दृष्टिकोण और सामाजिक प्रतिबद्धता पर व्यापक विमर्श प्रस्तुत किया। उनकी प्रसिद्ध कृतियाँ इस दिशा में मील का पत्थर हैं:
· ‘प्रेमचंद: कलम का सिपाही’ – प्रेमचंद की जीवनी जिसे व्यापक स्वीकृति प्राप्त हुई।
· ‘प्रेमचंद साहित्य का वस्तुनिष्ठ अध्ययन’ – प्रेमचंद की कहानियों, उपन्यासों और निबंधों का वैज्ञानिक विश्लेषण।
· ‘प्रेमचंद की कहानी कला’, ‘प्रेमचंद: विचार और दृष्टि’, ‘प्रेमचंद समग्र’ (28 खंडों में) – एक अनुकरणीय कार्य जो न केवल प्रेमचंद साहित्य का पुनरावलोकन करता है, बल्कि हिंदी में पाठ-संपादन की गुणवत्ता का भी उदाहरण प्रस्तुत करता है।
उनका यह प्रयास प्रेमचंद को 'क्लासिक' के रूप में पुनर्स्थापित करता है, जिसे केवल पढ़ा नहीं, समझा और जीवन में उतारा जाना चाहिए।
आलोचना में गहराई, शोध में प्रामाणिकता
डॉ. गोयनका का आलोचनात्मक दृष्टिकोण तार्किक, वस्तुनिष्ठ और ऐतिहासिक चेतना से परिपूर्ण है। उन्होंने साहित्य को केवल सौंदर्य का विषय नहीं, बल्कि समाज का आईना माना। उनके शोध में तथ्यों की पृष्ठभूमि, संदर्भों की गहराई और भाषा की सघनता देखते ही बनती है। उन्होंने हिंदी आलोचना को एक नई भाषा और शैली प्रदान की जो ‘आलोचना की आलोचना’ से आगे निकल कर ‘संवेदना की आलोचना’ बनती है।
अन्य साहित्यिक योगदान
यद्यपि उनका कार्य प्रेमचंद केंद्रित रहा, परंतु उन्होंने हिंदी कहानी, उपन्यास और समकालीन साहित्यिक विमर्श पर भी प्रभावी लेखन किया। उन्होंने ‘हिंदी में संपादन शास्त्र’ को एक नया शास्त्र रूप दिया। हिंदी अकादमिक जगत में उनके संपादित ग्रंथ मानक माने जाते हैं।
उनके अन्य प्रमुख ग्रंथ हैं:
· ‘हिंदी कहानी का विकास’
· ‘भारतीय साहित्य की सांस्कृतिक चेतना’
· ‘साहित्य और संस्कृति’
अकादमिक और सांस्कृतिक योगदान
डॉ. गोयनका ने दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी विभागाध्यक्ष के रूप में कार्य करते हुए शोध की संस्कृति को मजबूत किया। वे अनेक विश्वविद्यालयों और अकादमियों के सदस्य रहे हैं। भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया – यह केवल उनके लिए नहीं, हिंदी आलोचना के लिए भी मान्यता थी।
डॉ. गोयनका की समकालीन प्रासंगिकता
आज के समय में जब आलोचना ‘पक्षधरता’ और ‘पूर्वाग्रह’ से ग्रस्त हो चली है, डॉ. गोयनका का कार्य निष्पक्षता और तथ्यपरकता की मिसाल है। वे यह सिद्ध करते हैं कि लेखक की आत्मा को समझे बिना उसकी कृति को पढ़ा नहीं जा सकता। उनके लिए आलोचना केवल ‘विश्लेषण’ नहीं, ‘संवाद’ है।
डॉ. कमल किशोर गोयनका का साहित्यिक जीवन हिंदी साहित्य के अनुशीलन, पाठमूल्य और शोध को नई ऊँचाइयाँ देने वाला रहा है। उन्होंने प्रेमचंद को साहित्य के नए शिखर पर पुनः प्रतिष्ठित किया, और आलोचना को एक मानवीय आयाम प्रदान किया। उनके लेखन से निकली दृष्टि आज भी प्रासंगिक है, और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत बनी रहेगी। वे सचमुच हिंदी साहित्य के संवेदनशील संरक्षक और शोध की विश्वसनीय आवाज़ हैं।
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