मेजर मोहित शर्मा: इफ्तिखार भट्ट बनकर हिजबुल का खात्मा करने वाले अनसुने नायक

मेजर मोहित शर्मा, 1 पैरा स्पेशल फोर्स के एक भारतीय सेना अधिकारी, ने 2003 में कश्मीर के शोपियां में हिजबुल मुजाहिदीन में 'इफ्तिखार भट्ट' बनकर घुसपैठ की। लंबे बाल, दाढ़ी और पारंपरिक कश्मीरी पोशाक में उन्होंने आतंकियों का भरोसा जीता, पाकिस्तान में प्रशिक्षण लिया, और 2004 में दो बड़े कमांडरों अबू सबजार और अबू तोरा को मार गिराया। इस मिशन के लिए उन्हें सेना मेडल मिला। 2009 में कुपवाड़ा में एक सर्च ऑपरेशन के दौरान वे शहीद हो गए और मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित हुए। उनकी कहानी साहस, बलिदान और देशभक्ति की मिसाल है।

May 19, 2025 - 09:18
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मेजर मोहित शर्मा: इफ्तिखार भट्ट बनकर हिजबुल का खात्मा करने वाले अनसुने नायक
मेजर मोहित शर्मा

मेजर मोहित शर्मा का परिचय

मेजर मोहित शर्मा का जन्म 13 जनवरी 1978 को हरियाणा के रोहतक में एक हिंदू ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम राजेंद्र प्रसाद शर्मा और माता का नाम सुशीला शर्मा था। उनका परिवार मूल रूप से उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के रसना गाँव से था। मोहित ने 1998 में भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) में प्रवेश लिया, जहाँ वे बटालियन कैडेट एडजुटेंट बने। IMA में प्रशिक्षण के दौरान ही उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर. नारायणन से राष्ट्रपति भवन में मुलाकात करने का अवसर मिला।

मोहित शर्मा को उनकी बहादुरी और रणनीतिक सोच के लिए जाना जाता था। वे मद्रास रेजिमेंट से थे और बाद में 1 पैरा स्पेशल फोर्स में शामिल हुए, जो भारतीय सेना की सबसे खतरनाक और विशिष्ट इकाइयों में से एक है। यह इकाई आतंकवाद-रोधी अभियानों, गुप्त मिशनों और विशेष टोही कार्यों के लिए जानी जाती है।

ऑपरेशन की शुरुआत: इफ्तिखार भट्ट बनकर हिजबुल में घुसपैठ

साल 2003 में, कश्मीर के शोपियां में, जो श्रीनगर से 50 किलोमीटर दक्षिण में है, मेजर मोहित शर्मा ने एक खतरनाक मिशन को अंजाम देने की योजना बनाई। उनका लक्ष्य था हिजबुल मुजाहिदीन, एक खूंखार आतंकी संगठन, में घुसपैठ करना और उसके बड़े कमांडरों को खत्म करना।

मोहित शर्मा ने खुद को एक कश्मीरी नौजवान 'इफ्तिखार भट्ट' के रूप में पेश किया। उन्होंने अपने बाल कंधों तक बढ़ा लिए, दाढ़ी रखी और पारंपरिक कश्मीरी पोशाक 'फेरन' पहनी। उनकी आँखों में नफरत और बदले की आग दिखाई देती थी। उन्होंने हिजबुल मुजाहिदीन के दरवाजे पर दस्तक दी और कहा कि वे अपने भाई की मौत का बदला लेना चाहते हैं, जो कथित तौर पर भारतीय सेना के हाथों मारा गया था। उनकी बातों में इतना जोश और नफरत थी कि आतंकियों को उन पर भरोसा हो गया।

पाकिस्तान में प्रशिक्षण और आतंकियों का भरोसा जीतना

हिजबुल मुजाहिदीन ने 'इफ्तिखार भट्ट' को पाकिस्तान भेजा, जहाँ उसे आतंकी प्रशिक्षण दिया गया। वहाँ उसे हथियार चलाना, बम बनाना और जिहाद की विचारधारा सिखाई गई। इस प्रशिक्षण के दौरान, मोहित शर्मा ने अपनी फुर्ती, तेजी और समर्पण से सभी को हैरान कर दिया। वे बाकी जिहादियों से कहीं ज्यादा तेज और कुशल थे। आतंकियों को लगा कि यह नौजवान उनके संगठन के लिए बहुत उपयोगी साबित होगा।

इसके बाद, उसे विशेष नेतृत्व प्रशिक्षण के लिए चुना गया और फिर उसे नियंत्रण रेखा (LOC) पार कर भारत वापस भेजा गया। उसका मिशन था भारतीय सेना की चौकी पर एक बड़ा हमला करना। इस मिशन के लिए हिजबुल के दो बड़े कमांडर, अबू सबजार और अबू तोरा, उसके मेंटर बनाए गए।

मिशन का चरम: आतंकियों का खात्मा

2004 में, 'इफ्तिखार भट्ट' ने अबू सबजार और अबू तोरा को एक ऐसी जगह पर ले जाकर हमले की योजना बनानी शुरू की, जहाँ से सेना की चौकी पर हमला आसान हो सकता था। उसने नक्शे, रणनीति और मोर्चे की योजना इतने विस्तार से बताई कि दोनों कमांडरों को शक हो गया। उन्होंने उससे उसकी पृष्ठभूमि के बारे में सवाल पूछने शुरू किए।

मोहित शर्मा ने स्थिति को भाँप लिया। उन्होंने दोनों कमांडरों के हाथ में AK-47 थमाई और कहा, "अगर भरोसा नहीं है, तो गोली मार दो।" फिर वे पीछे हट गए। इससे पहले कि आतंकी कुछ समझ पाते, मोहित ने अपनी कमर से TT-30 टोक्रेव पिस्टल निकाली और दोनों कमांडरों पर गोलियाँ दाग दीं। उन्होंने दोनों की छाती में दो-दो गोलियाँ और सिर में एक-एक गोली मारी। यह पैरा स्पेशल फोर्स की 'सिग्नेचर स्टाइल' थी तीन गोलियों से करीबी रेंज में हत्या।

इसके बाद, मोहित शर्मा ने हथियार समेटे और पास के आर्मी कैंप तक पैदल चलकर वापस लौट आए। इस ऑपरेशन के लिए उन्हें 2005 में सेना मेडल (वीरता) से सम्मानित किया गया।

मोहित शर्मा का बलिदान

मोहित शर्मा का यह एकमात्र मिशन नहीं था। वे 2008 में कश्मीर में तैनात हुए और 21 मार्च 2009 को कुपवाड़ा में एक सर्च ऑपरेशन के दौरान वीरगति को प्राप्त हुए। इस ऑपरेशन के दौरान, उन्होंने आतंकियों से मुकाबला करते हुए अपनी जान की परवाह नहीं की। उनके आखिरी शब्द थे, "सुनिश्चित करो कि कोई भी बचकर न जाए।" इस साहस और बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च शांतिकालीन सैन्य सम्मान, अशोक चक्र, से 26 जनवरी 2010 को सम्मानित किया गया।

इससे पहले भी, उन्हें ऑपरेशन रक्षक के दौरान उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए COAS कमेंडेशन कार्ड और 2005 में एक गुप्त ऑपरेशन के बाद सेना मेडल (वीरता) से सम्मानित किया गया था।

मोहित शर्मा की विरासत

मोहित शर्मा की शहादत के बाद उनकी कहानी को ज्यादा प्रचार नहीं मिला। न कोई फिल्म बनी, न कोई वेबसीरीज, और न ही कोई बड़ा पुरस्कार समारोह। लेकिन उनकी कहानी हर हिंदुस्तानी के लिए प्रेरणा है। 2019 में, दिल्ली मेट्रो कॉर्पोरेशन ने राजेंद्र नगर मेट्रो स्टेशन का नाम बदलकर "मेजर मोहित शर्मा राजेंद्र नगर मेट्रो स्टेशन" कर दिया, ताकि उनकी वीरता को याद रखा जाए।

यह कहानी हमें क्या सिखाती है?

मोहित शर्मा की यह कहानी हमें याद दिलाती है कि असली हीरो लाल कालीनों पर नहीं चलते। वे बर्फ से ढके पहाड़ों में, मौत की परछाइयों के बीच, देश की रक्षा करते हुए शहीद हो जाते हैं। उनका बलिदान हमें यह सिखाता है कि देश के लिए कुछ करने का जज्बा कितना बड़ा हो सकता है। वे एक सैनिक नहीं, बल्कि भारत माता की 'चुपचाप गरजती हुई तलवार' थे। उनकी बहादुरी और बलिदान को हमेशा याद रखना हमारा कर्तव्य है।

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I