वकालत: ज्ञान, संघर्ष और सेवा का पेशा

वकालत केवल पेशा नहीं, बल्कि ज्ञान, संघर्ष, सेवा और नैतिकता का संगम है। यह पेशा उसी के लिए है, जो न्याय की तलाश में अपनी नींद, सुख और व्यक्तिगत स्वार्थों को त्यागने का साहस रखता है। श्लोक का मर्म यही है-सच्चा वकील वही है, जो ज्ञान के लिए बेचैन, न्याय के लिए प्रतिबद्ध और समाज के लिए समर्पित हो। वकालत का पेशा समाज में न्याय, शांति और विधिक व्यवस्था की स्थायी मशाल है-जिसे थामना गर्व और जिम्मेदारी दोनों है।

May 13, 2025 - 08:54
May 15, 2025 - 14:42
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वकालत: ज्ञान, संघर्ष और सेवा का पेशा
वकील

अर्थातुराणां न गुरु न बन्धुः क्षुधातुराणां न पक्वा न रुचिः।

कामातुराणां न लज्जा न भयं विद्यातुराणां न निद्रा न सुखम्॥

यह श्लोक मानव जीवन की तीव्र आकांक्षाओं और उनकी परिणति को सटीकता से दर्शाता है। धन, भूख, कामना और ज्ञान इन चारों के वशीभूत व्यक्ति अपनी सामान्य संवेदनाओं और सामाजिक बंधनों को भूल जाता है। वकालत का पेशा भी इसी गहरे सत्य के इर्द-गिर्द घूमता है-जहाँ वकील न केवल ज्ञान के लिए सतत बेचैन रहते हैं, बल्कि समाज की सेवा, संघर्ष और न्याय की तलाश में अपनी नींद और सुख भी त्याग देते हैं।

वकालत: केवल आजीविका नहीं, सामाजिक जिम्मेदारी

वकालत का अर्थ केवल किसी की पैरवी करना या अदालत में तर्क रखना नहीं है, बल्कि यह पेशा समाज में विधि, न्याय और अधिकारों के संरक्षण की रीढ़ है। एक वकील का कर्तव्य है कि वह अपने मुवक्किल के अधिकारों की रक्षा करे, परंतु साथ ही समाज में विधिक व्यवस्था, शांति और न्याय का भी संवर्धन करे।

ज्ञान और संघर्ष: वकील का जीवन

श्लोक में वर्णित "विद्यातुराणां न निद्रा न सुखम्"-ज्ञान की तृष्णा वकील के जीवन का मूल है। वकील को निरंतर अध्ययन, अद्यतन कानूनों की जानकारी और तर्कशक्ति का विकास करना होता है।

·         नए वकीलों के लिए यह पेशा अत्यंत चुनौतीपूर्ण है; प्रारंभ में संघर्ष, धैर्य और नि:स्वार्थ सेवा की आवश्यकता होती है।

·         वकील को अपने विधिक ज्ञान, नैतिकता और समाज के प्रति उत्तरदायित्व का निर्वहन करना होता है।

·         वाकपटुता, अध्ययन, सामाजिक संपर्क और छोटे-छोटे मुकदमों से सीखना वकालत के शुरुआती वर्षों की पहचान है।

सेवा और परोपकार: वकील की भूमिका

वकील का पेशा "परोपकारार्थ वयं अधिवक्तारः" के भाव से जुड़ा है-हम अधिवक्ता समाज के परोपकार के लिए हैं।

·         वकील न्यायालय और समाज के बीच सेतु का कार्य करता है।

·         उसका उद्देश्य केवल मुकदमे जीतना नहीं, बल्कि न्याय का मार्ग प्रशस्त करना और समाज में विधिक चेतना का प्रसार करना है।

·         वकील को धनलोलुपता से बचना चाहिए; उसका पेशा विद्वत्ता और सेवा का है, व्यापार का नहीं1

नैतिकता और कर्तव्य

एक वकील के लिए 'कर्मण्येवाधिकारस्ते' का सिद्धांत सर्वोपरि है-अपने कर्तव्य का पालन निष्काम भाव से करना।

·         उसे अपने मुवक्किल की सहायता करते हुए भी सत्य, न्याय और संविधान के प्रति निष्ठावान रहना चाहिए।

·         वकील की सबसे बड़ी पूँजी समाज का विश्वास और सम्मान है, जिसे वह अपनी ईमानदारी, ज्ञान और सेवा से अर्जित करता है।

 

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सुशील कुमार पाण्डेय मैं, अपने देश का एक जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा पर हूँ, यही मेरी पहचान है I