प्रतिरोध से हुई भारतीय पत्रकारिता की शुरुआत : प्रो. शंभुनाथ
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पहल पर पश्चिम बंग हिंदी अकादमी के अध्यक्ष विवेक गुप्ता के प्रोत्साहन से भारतीय भाषा परिषद में 'हिंदी पत्रकारिता की विरासत और बंगाल' विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

कोलकाता 12 अप्रैल : मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पहल पर पश्चिम बंग हिंदी अकादमी के अध्यक्ष विवेक गुप्ता के प्रोत्साहन से भारतीय भाषा परिषद में 'हिंदी पत्रकारिता की विरासत और बंगाल' विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। उद्घाटन सत्र में उपस्थित डॉ. शंभुनाथ, उत्पल पाल, रामनिवास द्विवेदी, ओम प्रकाश अश्क, प्रो. मीनल पारीक, प्रो. हितेंद्र पटेल, रविशंकर सिंह, विनीत कुमार, डॉ. श्राबंती बनर्जी ने दीप प्रज्ज्वललित कर, 'संगोष्ठी कार्यवाही एवं शोधपत्र सार' पुस्तिका का लोकार्पण कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। कार्यक्रम के प्रथम सत्र में पत्रकार गंगा प्रसाद ने कहा बंगाल में पत्रकारिता की विरासत नवजागरण के विचार से प्रारंभ होती हैं, किन्तु आज हम जिन परिस्थितियों में जहाँ खड़े वहाँ इस विरासत को देखने, समझने और उससे सीखने की जरूरत है। डॉ. इतु सिंह ने कहा उस समय के संपादकों की स्थिति और पत्रिकाओं को चला पाना अपने आप में एक चुनौती थी। हिंदी पत्रकारिता की विरासत हमारा आदर्श है और आदर्श के बिना प्रगतिशीलता की संभावना नहीं की जा सकती। डॉ. प्रदीप्त मुखर्जी ने कहा आज पत्रकारिता के समक्ष विश्वसनीयता का प्रश्न खड़ा हो गया है। पत्रकार रविशंकर सिंह ने कहा 'उदन्त मार्तण्ड' हिंदी पत्रकारिता में एक चिंगारी थी जो आज पूरे देश में मौजूद है। आज देश में हिंदी अथवा हिंदी पत्र-पत्रिकाओं का प्रचार-प्रसार हो रहा है वह उसी की देन है। दिल्ली से आए विनीत कुमार ने कहा, भारत को स्वाधीन करने में हिंदी पत्रिका की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आज पत्रकार और पत्रकारिता दोनों के समक्ष बहुत सी चुनौतियाँ हैं। मौजूदा पत्रकारिता की दृष्टि और भाषा को भी फिर से देखने की जरूरत है। प्रो. हितेंद्र पटेल ने कहा अपनी विरासत को बचाना आज के समय में बहुत जरूरी और अनिवार्य है। हिंदी आज जैसे फैल रही है वह मनोरंजन के रूप में अधिक है। ज्ञान-विज्ञान की भाषा और आदर्श की रक्षा के रूप में कम है। डॉ. शंभुनाथ ने कहा कि आधुनिकता के मामले में पत्रकारिता की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आज मीडिया अंधकार पात करता है, पत्रकारिता एक समय प्रकाश पात करती थी। अखबार प्रजा के प्रतिनिधि हैं। आज संपादक नाम की संस्था नष्ट हो चुकी है। भारतीय पत्रकारिता की शुरुआत प्रतिरोध से हुई थी, समाप्ति मीडिया में आत्म समर्पण से नहीं होनी चाहिए। उत्पल पॉल ने कहा आज पत्रकारिता अपनी वास्तविक भूमिका से बहुत दूर खड़ा है वह प्रजा के लिए कम, विज्ञापन इत्यादि के लिए अधिक कार्य कर रहा है। द्वितीय सत्र में प्रो. मीनल पारीक ने कहा, हिंदी पत्रकारिता की छवि बहुत बदली है, जो बदलाव हुआ है वह डरावना भी है। युवाओं को इस दौर की पत्रकारिता को देखने, समझने और जानने की जरूरत है। डॉ. गीता दूबे ने कहा इस युग की पत्रकारिता का योगदान साहित्यिक पत्रकारिता में भी है। प्रो. एकता हेला ने कहा उस समय की पत्रकारिता में जवारी खबरों के लिए स्थान था, वह राजनीति से प्रभावित नहीं थी। डिजिटल मीडिया ने प्रिंट मीडिया के अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न खड़ा कर दिया है। डॉ. इबरार खान ने कहा आज शहर को केंद्र में रखकर जो विकास हो रहा है वहाँ ग्रामीण समस्याओं, कृषि समस्याओं आदि को दरकिनार कर दिया जा रहा है; ऐसे में पत्रकारिता में भी उसके लिए जगह नहीं बची है। ओम प्रकाश अश्क ने कहा, अहिंदी प्रदेश में हिंदी को जितना सम्मान और सहयोग मिला वह अतुलनीय है।
तृतीय सत्र में राज्यवर्द्धन ने कहा, आज पत्रिका क्यों और किन पाठकों के लिए निकल रही है यह भी समझने की जरूरत है। डॉ. रामप्रवेश रजक ने कहा, बंगाल हिंदी पत्रकारिता की जन्मभूमि है। सृजन, संवाद का जो स्वरूप हिंदी और बांग्ला एवं अन्य भाषाओं का रहा है वह पत्रकारिता की विरासत में देखी जा सकती है। रामाशीष साह ने कहा, आज हमें गोदी मीडिया अथवा गोदी पत्रकार बनने से बचना चाहिए। डॉ. कलावती कुमारी ने कहा, इस दौर के कई सत्य हैं और एक सत्य के साथ नहीं चला जा सकता। वर्तमान दौर को समझने के लिए हमें अपने जड़ों से जुड़ना होगा। प्रो. एन चंद्रा राव ने कहा, बंगाल ने हिंदी पत्रकारिता के विकसित होने का अवसर प्रदान किया। डॉ. नम्रता कोठारी ने कहा कि युवाओं को पत्रकारिता में रोजगार के अवसर तलाशने चाहिए। मृत्युंजय श्रीवास्तव ने कहा, हिंदी पत्रकारिता का मूल स्वर चेतना की यात्रा है। आज पत्रकारिता और मीडिया उपभोक्ता उत्पाद है।
कार्यक्रम के संयोजक एवं हिंदी अकादमी के डॉ. संजय जायसवाल ने कहा, बंगाल नवजागरण का केंद्र होने के साथ हिंदी पत्रकारिता की जन्मभूमि भी है। बंगाल ने समय-समय पर हिंदी पत्रकारिता की दो सौ साल की परंपरा को संरक्षित किया है। बंगाल के मनीषियों ने हिंदी की व्यापकता को स्वीकार्य करते हुए उसे आगे बढ़ाया। पश्चिम बंग हिंदी अकादमी का मूल उद्देश्य है बंगाल में हिंदी की विरासत को समृद्ध करना।
शोध संवाद सत्र की अध्यक्षता सुरेश शॉ ने किया। इस सत्र में डॉ. रेशमी पांडा मुखर्जी, प्रो. आदित्य गिरी, उपदेश दर्जी, सुशील कुमार पांडेय, सूर्य देव रॉय, प्रीतम रजक, सुषमा कुमारी ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम के सफल संयोजन में कुसुम भगत, कंचन भगत, प्रो. मटू दास, अनिल साह, अनुराधा भगत, प्रभाकर साव, संजना जायसवाल, प्रभाकर व्यास, रूपेश यादव, गायत्री वाल्मीकि, टीना परवीन, रिया श्रीवास्तव, उष्मिता गौड़ ने विशेष सहयोग दिया। कार्यक्रम का सफल संचालन प्रो. राहुल गौड़, डॉ. मधु सिंह, प्रो. लिली साह, मधु साव एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. अनीता राय, सपना खरवार, ज्योति चौरसिया एवं विकास जायसवाल ने किया। इस अवसर पर भारी संख्या में विद्यार्थियों, शोधार्थियों एवं साहित्य प्रेमियों ने हिस्सा लिया।
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