उत्तर प्रदेश पुलिस में भ्रष्टाचार: एक गंभीर चुनौती
उत्तर प्रदेश के पुलिस प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा प्रभाव जनता के विश्वास पर पड़ा है। अब लोग पुलिस को रक्षक के बजाय उत्पीड़क मानने लगे हैं। इससे अपराधियों के हौसले बुलंद हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि पैसों के बल पर वे बच सकते हैं। यह न्याय व्यवस्था को कमजोर कर रहा है, क्योंकि सत्य और साक्ष्य के बजाय पैसा हावी है। गरीब और कमजोर वर्ग इस भ्रष्टाचार के सबसे बड़े शिकार हैं, जिससे उत्तर प्रदेश में सामाजिक असमानता बढ़ी है।

उत्तर प्रदेश पुलिस प्रशासन में भ्रष्टाचार एक गंभीर और दीर्घकालिक समस्या है, जो कानून-व्यवस्था को कमजोर करने के साथ-साथ जनता के विश्वास को भी नष्ट कर रही है। यह भ्रष्टाचार रिश्वतखोरी, फर्जी मुकदमें, अवैध वसूली, साक्ष्य नष्ट करना, अपराधियों से साठगाँठ, और पीड़ितों की शिकायतों को नजरअंदाज करने जैसे रूपों में सामने आती है। उत्तर प्रदेश पुलिस पर अक्सर आरोप लगता है कि वह रिश्वत लेकर झूठे मुकदमें दर्ज करती है या उन्हें खत्म कर देती है, जिससे निर्दोष लोग फँसते हैं और दोषी बच निकलते हैं।
यह भ्रष्टाचार न केवल बाहरी लोगों से रिश्वत लेने तक सीमित है, बल्कि विभाग के अंदर भी तबादले, प्रमोशन, और जाँच में हेरफेर के लिए व्याप्त है। निचले स्तर के कर्मचारियों से लेकर उच्च अधिकारियों तक, भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी हैं। जवाबदेही की कमी और राजनीतिक हस्तक्षेप इसे और गंभीर बनाते हैं। पुलिस के खिलाफ शिकायतों की जाँच में पक्षपात होता ही है, जिससे भ्रष्ट अधिकारियों का मनोबल बढ़ता है। उच्च अधिकारियों से शिकायत करने पर पीड़ितों को और अधिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, गंभीर अपराधों को जमीनी विवाद का रूप देकर, अपराधियों के साथ साठगाँठ कर पीड़ितों पर हमले करवाए जाते हैं। कई बार पीड़ितों को ही पुराने मामलों में फँसाकर जेल भेज दिया जाता है।
फर्जी एनकाउंटर इस समस्या का एक और खतरनाक पहलू है। 2017 के बाद से उत्तर प्रदेश में हजारों एनकाउंटर हुए, जिनमें से कई पर सवाल उठे कि वे वास्तविक थे या मंचित। कई मामलों में यह साबित हुआ कि पुलिस ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया। यह असंवैधानिक कार्यशैली उत्तर प्रदेश पुलिस व्यवस्था में गहराई तक समाई हुई है।
भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा प्रभाव जनता के विश्वास पर पड़ता है। अब लोग पुलिस को रक्षक के बजाय उत्पीड़क मानने लगे हैं। इससे अपराधियों के हौसले बुलंद होते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि पैसों के बल पर वे बच सकते हैं। यह न्याय व्यवस्था को कमजोर करता है, क्योंकि सत्य और साक्ष्य के बजाय पैसा हावी है। गरीब और कमजोर वर्ग इस भ्रष्टाचार के सबसे बड़े शिकार हैं, जिससे सामाजिक असमानता बढ़ रही है।
कुछ घटनाएँ इस समस्या की गंभीरता को उजागर करती हैं। बलिया जिले के रुदल यादव को पुलिस ने रिश्वत के लिए धमकाया और एक लाख रुपये वसूले। उनकी शिकायत पर बलिया के ईमानदार SP ने दोषी पुलिसकर्मियों को निलंबित किया। लेकिन प्रयागराज में ऐसी किस्मत किसी की देखने को नहीं मिली। मिदुअरा गाँव के दिनेश पाण्डेय पर हंडिया थाना प्रभारी धर्मेन्द्र दूबे ने झूठा आपराधिक मुकदमा दर्ज किया, बाद में मानहानि का मुकदमा लिखा। थाना प्रभारी धर्मेन्द्र दूबे ने झूठे केस में जेल भेजने का डर दिखाकर 40 हजार लेने के बाद भी गाड़ी सीज की, विवेचक सुमित आनंद ने रिश्वत माँगी और 13 हजार ली। शिकायत सोशल मीडिया ‘X’ पर डालने पर हंडिया थाना प्रभारी ब्रज किशोर गौतम, सहायक पुलिस आयुक्त हंडिया पंकज लवानिया व उपायुक्त गंगानगर अभिषेक भारती ने पाँच महिने झूठे बनाए गए केस में 120बी जोड़कर दिनेश को 31 दिनों के लिए जेल भेज दिया। इसी तरह, हंडिया के एक व्यवसायी के चोरी गए 22 हजार रुपये की बरामदगी होने पर व्यवसायी से बरामदगी का आधा यानी 11 हजार नहीं मिलने पर, हल्का कांस्टेबल व थाना प्रभारी ब्रज किशोर गौतम ने व्यवसायी के परिवार पर हमला करवाकर, उसके बाद उनके परिवार को झूठे मामले में फँसा दिया। ये दो-चार घटनाएँ नहीं हैं, इस थाने की ऐसी सैकड़ों घटनाएँ हैं या यूँ कहें कि ऐसी तो प्रत्येक दिन यहाँ हो रही हैं; यह घटनाएँ यह दर्शाती हैं कि भ्रष्टाचार पूरे प्रदेश में व्याप्त है।
लोगों में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता की कमी भी इस समस्या को बढ़ाती है। पुलिस गरीब, कम पढ़े-लिखे, और रिश्वत न देने वालों को निशाना बनाती है। भ्रष्ट अधिकारी उनके भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने वालों को जेल भेजकर व अपराधी को सह देकर समाज में यह संदेश देने में सफल हो जाते हैं कि उनके खिलाफ बोलने वालों को हम किसी हद तक जाकर, विधि के निदेशों का किसी भी स्तर तक जाकर अवज्ञा करके बोलने वालों और उनके परिवार को बर्बाद कर देंगे।
2019 के एक सर्वे में 74% लोगों ने बताया कि उन्होंने पुलिस को रिश्वत दी। 2024 के भ्रष्टाचार सूचकांक में भारत का स्कोर गिरा, जो उत्तर प्रदेश की स्थिति को भी दर्शाता है। इस समस्या से निपटने के लिए स्वतंत्र निगरानी तंत्र की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में सभी जिलों में पुलिस शिकायत प्राधिकरण बनाने का आदेश दिया था, लेकिन उत्तर प्रदेश में इस प्राधिकरण का गठन आज तक नहीं हुआ। तकनीकी का उपयोग करने में उत्तर प्रदेश पुलिस कई अन्य प्रदेशों से आगे है, पर इनकी जानकारी माँगने पर पीड़ित को किसी भी हद तक जाकर समूल नष्ट करने के प्रयास से पुलिस प्रशासन और इसके उच्च अधिकारी जरा सा भी रहम नहीं करने वाले हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने भ्रष्टाचार रोकने के लिए कदम उठाया है, जैसे जनसुनवाई पोर्टल, जनता दर्शन, एंटी-करप्शन टीमें, लेकिन इनके प्रभाव पर बड़ा प्रश्न चिह्न है।
भ्रष्टाचार का समाधान सिस्टम में आमूल-चूल परिवर्तन, पारदर्शिता, जवाबदेही, और सामाजिक जागरूकता से ही संभव है। हालांकि कुछ ईमानदार अधिकारी हैं, लेकिन पूरे प्रदेश में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। एक मजबूत और भ्रष्टाचार-मुक्त पुलिस बल ही कानून-व्यवस्था और न्याय सुनिश्चित कर सकता है। समाज और सरकार को मिलकर इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।
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