भोजपुरी लोकगीतों के साधक शिवानंद मिश्र 'शिकारी' नहीं रहे – ‘हमार बुझाता बबुआ डीएम होइहे’ के रचयिता का निधन
भोजपुरी के प्रसिद्ध लोकगीतकार, साहित्यकार और निर्गुण रचनाओं के पुरोधा शिवानंद मिश्र 'शिकारी' जी का हाल ही में हृदयाघात से निधन हो गया। ‘हमार बुझाता बबुआ डीएम होइहे...’ जैसे वायरल सोहर गीत के रचयिता शिकारी जी मूलतः बिहार के भोजपुर जिले के परसौड़ा टोला गाँव के निवासी थे और गुजरात के गांधीधाम स्थित केंद्रीय विद्यालय में कार्यरत थे। उन्होंने अपने लेखन से भोजपुरी लोकधुन, सोहर, निर्गुण, कजरी और भक्ति गीतों को एक नई पहचान दी। उनके निधन से भोजपुरी लोकसंगीत जगत में अपूरणीय क्षति हुई है।

भोजपुरी लोकगीत को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाले सुप्रसिद्ध गीतकार शिवानंद मिश्र उर्फ शिकारी जी अब हमारे बीच नहीं रहे। गुजरात के गांधीधाम में कार्यरत शिकारी जी का निधन कल 22 मई को दिन में 11 बजे हृदयाघात के कारण हो गया। उनके निधन से भोजपुरी लोकगीत और साहित्य के एक सुनहरे अध्याय का अंतिम पन्ना बंद हो गया।
भोजपुरी का एक अत्यंत चर्चित और वायरल सोहर —
“हमार बुझाता बबुआ डीएम होइहे, ए राजाजी राज के सिंगार CM होइहे...”
हाल के वर्षों में सोशल मीडिया पर जबरदस्त चर्चा में रहा। कथा वाचक राजन जी महाराज द्वारा प्रवचन में गाए जाने के बाद यह गीत व्यापक स्तर पर वायरल हुआ। अनेक गायकों ने इसे अपनाया, रीमिक्स और पैरोडी तक बनीं, परंतु इस गीत का मूल लेखक और रचयिता शिवानंद मिश्र ‘शिकारी’ ही थे।
गीत को गायत्री ठाकुर ने पारंपरिक लोकधुन और झाल-ढोलक-बैंजो के साथ गाया था। महिलाओं द्वारा 'मचिया बैठले सासु अरज गुनवा गावेली हो...' जैसी पंक्तियाँ इसकी मौलिकता को दर्शाती हैं।
उनकी अन्य प्रमुख रचनाएँ:
- निर्गुण: "झर-झर नयनवा बही, थर-थर बदनवा चुई..." (गायक: जियालाल ठाकुर)
- कजरी: "भोला भावे भांग के गोला..." (गायक: राजन जी महाराज)
- प्रसंग: "हो जाला नालायक, पूजे नायक..."
- सोहर (लड़की के जन्म पर): "बास जिन्ह करेली क्षीरसागर..."
- भिखारी ठाकुर पर गीत: "मन पारेले शिकारी आज भिखारी के..."
- गाँव का परिचय: "हमार घर त दियर परसौड़ा ह..."
शिकारी जी की लेखनी में भोजपुरी की गहराई, संवेदनशीलता और सामाजिक चेतना का गूढ़ समावेश था। उनके गीतों को राजन जी महाराज, गायत्री ठाकुर, भरत शर्मा व्यास, गोलू राजा, गौरांगी गौरी, जियालाल ठाकुर जैसे प्रसिद्ध गायकों ने स्वर दिया।
निजी जीवन व कर्मभूमि:
भोजपुर (बिहार) के परसौड़ा टोला गाँव से निकलकर उन्होंने गुजरात में शिक्षा सेवा दी। केंद्रीय विद्यालय, गांधीधाम में कार्यरत रहते हुए भी उन्होंने भोजपुरी साहित्य से अपना नाता कभी नहीं तोड़ा।
शिवानंद मिश्र 'शिकारी' का जाना भोजपुरी लोकसंस्कृति के लिए अवसान की तरह है। उनके गीत आम जनता के दिलों में आज भी जीवित हैं और आगे भी रहेंगे। भोजपुरी लोकगीतों की परंपरा को उन्होंने जो समृद्धि दी, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।
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